कविता : अब कैसे मने दिवाली

महंगाई ने कमर तोड़ दी, 
छाई है कंगाली
अब कैसे मने दिवाली 
 
छत्तीस दीये जलाना मुश्किल   
महंगा हो गया तेल 
तंगहाली से जूझ रहा हूं 
झेल रहा हूं झमेल 
 

 
बीवी-बच्चे सब रूठे हैं 
खुली पड़ी किवाड़ी 
अब कैसे मने दिवाली 
 
मेवा और मिठाई महंगी
महंगी हो गई दाल
रिश्तेदारों को क्या खिलाऊं 
बन बैठा कंगाल 
 
अब पड़ोसी ताना पर
उड़ी गाल की लाली
अब कैसे मने दिवाली 

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