बेवजह ही कोई बात जब रुला जाती है,
ऐसे में, मां बहुत याद आती है
मेरी ठोकर की मिट्टी, सिर्फ वो ही
बेगरज मेरे घुटनों से हटाती थी
मेरे कंधे को वो हाथ लगाती थी
वो थकन रातभर फिर से थकाती है,
ऐसे में, मां बहुत याद आती है
वो दूर से ही, मेरे हारे हुए कदमों को
अनकहे ही वो मुझको, आंसुओं का मोल समझाती थी
बेमोल मोतियों की लड़ी, जब भी आंखों से टपक जाती है,