धूमिल हुए ओढ़नी के रंग सारे,
बदरंग हुए ऋतुओं के रंग सारे।
हूक उठी चिमनी के धुंए-सी
बालक पूछें, बालिका पूछें...
मां कौन यह ऋतुराज बसंत,
धरती की चूनर कहां रंग-बिरंगी,
देखो ना तुम मां, धरती कांप रही,
मां यह कैसी वंदना के स्वर?
बस विद्यालय में गूंज रहे…
सरस्वती जी रूठी जन-जन से..
मानव, मानव को ही लील रहे
शर्मसार और धिक्कार तुम्हें मानव,
बच्चे ऋतुराज बसंत को ढूंढ रहे !