कविता : आजाद, सदा रहे आजाद
जो सदा स्वयं रहे नाम और काम से आजाद,
उस आजाद का हमारी आजादी में बड़ा हाथ।
उस वीर क्रांतिकारी पं. चंद्रशेखर आजाद की,
पुण्यतिथि पर नमन करकर, झुकाऊं मैं माथ।।
23 जुलाई 1906 भामरा, म.प्र. में वे जन्में,
जगरानी देवी, पं. सीताराम तिवारी के घर में।
अंग्रेजों की नीतियों से आक्रोश छाया मन में,
पढ़ाई छोड़, उतरे वे असहयोग आंदोलन में।।
पंद्रह वर्ष की उम्र में जज के समक्ष हुई पेशी,
नाम आजाद, पिता स्वतंत्रता, घर जेल कहा।
सजा में पंद्रह कोडे मारो, जज ने आदेश दिया,
तो भी आजाद ने हंसते हुए वंदे मातरम कहा।।
सदैव रहूंगा आजाद मैं, यह दृढ़निश्चय किया,
काकोरी कांड में, निडरता से सहयोग दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लिया,
अफसर सांडर्स को यमलोक में भेज दिया।।
सिंह, गुरु, देव की फांसी भी रुकवानी चाही,
दुर्गा भाभी से गांधीजी को याचना पहुंचवाई।
नेहरू जी को भी अपने मन की बात बताई,
पर गरम दल के लिए यह नीति रास न आई।।
किसी ने भी सहयोगी भूमिका नहीं निभाई,
तब योजना में अल्फ्रेड पार्क में बैठक बुलाई।
तो अंग्रेजों ने आजाद की मुख़बिरी करवाई,
उस पार्क की चारों ओर से घेराबंदी कराई।।
आजाद बिना घबराए निर्भीकता से डटे रहे,
गोली से घायल पर बीस मिनिट लड़ते रहे।
अंत तक अंग्रेजों से पराजय नहीं स्वीकारी,
जीते जी हाथ न आऊं, खुद को गोली मारी।।
ऐसे चंद्रशेखर आजाद सदैव आजाद रहे,
स्वतंत्रता-समानता-भाईचारे को धर्म कहे।
दुश्मनों के थप्पड़ खाने से न होगे आजाद,
आजाद, मौत को मात दे, रहे सदा आजाद।।