नवीन रांगियाल की कविताएं देश के लगभग हर साहित्यिक मंच पर मौजूद हैं। उनका गद्य उनकी कविताओं से ज़्यादा उपस्थित और मुखर रहा है। नवीन ज़िंदगी और अदब दोनों में संगीत के समीप रहना पसंद करते हैं। उन्हें हिंदी के चालू संसार ने अपने फूहड़ इशारों से अब तक खींचा नहीं है, जबकि वह लगभग इस सदी के शुरू से पढ़-लिख रहे हैं। वह अपने दुखों में रहते हैं और इस रहने में दुनिया के दख़ल को कम से कम चाहते हैं। उनकी कविताएँ विषय के व्यभिचार से बचकर अपने रचयिता के निजी का पीछा करती रहती हैं। इंतजार में आ की मात्रा शीर्षक से उनका पहला कविता-संग्रह वर्ष 2023 में सेतु प्रकाशन से आया है।
पुकारना
जिसे पुकारा
वह खो गया
पुकारना
गुम हो जाना है
मैंने कहा सफ़र
सड़कें गुम हो गईं
नदी कहा
मैं डूब गया पानी में
मैं बहुत ऊपर तक उठ गया
जब मैंने कहा पहाड़
रंग कहा
मैं सिमट आया आँखों में
मैंने एक बार कहा था दिल
बहुत सारे घाव लिए खड़े थे चाक़ू
प्यार कहने पर
तुम चली गईं
मैंने कहा तुम्हारी याद
गुम हो गया मैं
मैंने सुना एक बार नाम तुम्हारा
लेकिन पुकारा नहीं
मैं नाम को तुम्हारे देखता हूँ
बस देखता ही रहता हूँ
और उसे खो देता हूँ
सारी देह को समेट कर
जब वह उठती है बिस्तर से
हेयर बैंड को मुँह में दबाए
अपने सारे बालों को बाँधती है
तो उसकी गर्दन में याद आता है
मंदिर का गुंबद
रात भर से जागी
थकी हुई उसकी मदालस आँखों में
शिव ने फूँक दी हो
अपनी निगाह जैसे
सोचता हूँ अपने जूड़े में
कितना कसके बाँध लेती है
वह अपनी आवारगी
अपने टूटे हुए बालों में
चुनती है एक-एक लम्हे
जो इसी रात
टूट कर बिखरे थे
इधर-उधर
जैसे शिव बिखेरते हैं
और फिर समेटते हैं ये सृष्टि
बनाते हैं
फिर मिटाते हैं
हमारी दुनिया बनती है
बनते-बनते रह जाती है
उस क्षण
कितनी चाहत भरी थी
तुम्हारी देह में
कितना शोर था मेरे हाथों में
चाहत और शोर के इस द्वंद्व में
मै बार-बार बिखरता और सँभलता हूँ
उसके साथ
वहीं उसके क़रीब
इस बिखरी हुई दुनिया में
अपने आज्ञाचक्र पर
टिक कर बैठ जाता हूँ
उसके प्यार में
पा लेता हूँ अपना ईश्वर
उसे खो देता हूँ
गुमनाम पुल अच्छे थे
गुमनाम पुल सबसे अच्छे थे
जिन्होंने सबसे जर्ज़र और खतरनाक होते हुए भी उन्हें सुरक्षित रखा जो यहां आए और अंधेरों में घण्टों बैठे रहे
उनके वादों को याद रखा
उन्हें अपनी आदिम दीवारों से सटकर खड़े रहने के मौके दिए
जंग लगी लोहे की कमज़ोर जालियां अच्छी थीं
जिनसे उड़कर ज़्यादातर मुर्गियां भागने में कामयाब रहीं
वो सारी बरसातें अच्छी थीं, जिनके थमने पर मजदूर काम के लिए निकले
और लड़कियां अपने प्रेमियों के साथ भीगकर घर लौटीं
सारे बेनाम पेड़ सबसे सुंदर थे जिनकी टहनियों पर हमने कुरेदकर अपने नाम लिखे
वो सब जगहें अच्छी थी जहां- जहां हमने हाथ पकड़े
अंधेरे अच्छे थे जिन्होंने पहली- पहली बार चूमने के मौके दिए
सारे फूल अच्छे थे जिन्हें उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ कभी अर्थियों पर रखा गया, कभी देवताओं के सिर पर
सबसे अच्छा था तुम्हारा निर्ममता के साथ चले जाना, और पीछे मुड़कर नहीं देखना
तुम्हारे जाने के बाद ही मैंने इंतज़ार सीखे, देर तक एक ही जगह पर खड़े रहना सीखा
मुझे पसंद है तह कर के टेबल पर रखे हुए रुमाल
जिन्हें देखकर मैं सोचता था तुम वापस आओगी और मेरी जिंदगी को ठीक करोगी
अगर तुम पूछो–
अगर तुम पूछो मुझसे
मुझे सबसे ज़्यादा क्या पसंद है तो मैं कहूंगा
मुझे सबसे ज़्यादा तुम्हारी पीठ अच्छी लगती है
मैं जानता हूँ–
मुझे सबसे ज़्यादा जी भरकर उसी ने चाहा
बादल हमारे लिए टहलते हैं
तुम्हारा हाथ पकड़कर चलते हुए
मैंने यह जाना कि आकाश में बादल बरसातों के लिए नहीं
मेरे और तुम्हारे लिए टहलते हैं
कोई दिन उग कर वापस आता है
तो उसका मतलब मैं यह निकालता हूं कि वो हमारे लिए लौटा है
रात हम दोनों को बांधने आती है
इतनी बड़ी दुनिया में
मैं सिर्फ बादलों के आने-जाने
दिन के उगने और डूबने के बारे में सोचता हूं
धूप और बारिश के बारे में सोचता हूं
यही वो सब है जो हमारे लिए होता है
दुनिया सिर्फ इसलिए है
कि हर शाम को मैं तुमसे मिलने आता हूं
अगर मैं तुमसे मिलने आता और तुम मुझे वहां नहीं मिलती
जहां हमारा मिलना तय था
तो भीड़ और आतंक से भरी यह दुनिया कब से खत्म हो चुकी होती
मिलते रहने से ही दुनिया चलती है
जब घांस को धूप से मिलते देखता हूँ
और पत्तों को हवाओं से
जब छांव मिलने आती है गलियों से
और आकाश को पृथ्वी पर झुकते हुए देखता हूँ
तो सोचता हूँ यह दुनिया तब तक रहेगी जब तक हम किसी से मिलने जाते रहेंगे
मैंने उन सब से प्रेम किया
मैं उन सीढ़ियों से भी प्रेम करता हूं
जिन पर चलकर उससे मिलने जाया करता था
और उस खिड़की से भी
जिसके बाहर देखती थी उसकी उदास आंखें
मुझे अब भी उस अंधेरे से प्रेम है
जिसके उजालों में चलकर पहुंचा था उसके पास
मैंने उन सारी चीजों से प्रेम किया
जो उसके हाथों से छूई गई थी कभी न कभी
जैसे दीवार
काजल लगा आईना
कपड़े सुखाने की रस्सियां
रूम की चाबियां
और कमरे की सारी खूंटियां
जहां हमने अपनी प्रार्थनाएं लटकाई थीं कभी
मैंने अलमारी में लटके उन सारे हेंगर्स से भी प्रेम किया
जिनमें सफेद झाग वाले सर्फ की तरह महकते थे उसके हाथ