हालात के मारे हार जाता हूँ, कई बार
फिर भी खड़ा हो जाता हूँ, हर बार, बार बार
इंसान हूँ, इंसान की तरह जीता हूँ
टूटा हुआ पत्थर नहीं, जो फिर ना जुड़ पाऊँगा।
तेज धूप के बाद, ढलती हुई साँझ
आती जाती देख रहा बरसों से
इसी लिए चुन लेता हूँ हर बार नये
नीड नया बनाऊँगा।
इंसान हूँ, इंसान की तरह जीता हूँ
टूटा हुआ पत्थर नहीं, जो फिर ना जुड़ पाऊँगा।