कहा उन्होंने हम तो एक चैतन्य राष्ट्र हैं,
मंत्र हमारा सदा रहा 'वसुधैव कुटुम्बकम् ।
अनगिनत जातियों, भाषाओं, रीति-रिवाजों के समन्वय से,
एक इन्द्रधनुषी संस्कृति के पोषक हैं हम ।।1।।
काफिर हैं वे जो इस गंगा-जमुनी संस्कृति से विमुख हों,
अन्तर्मन में द्वेष रखें और ऊपर मेल-जोल का दिखाव करें ।
चाहे जिस वर्ग, पार्टी, संघ, समूह या धारणा के हों,
प्रकटतः सहिष्णुता के हामी हों, भीतर विद्वेषी अलगाव करें ।। 2 ।।
अब हम एक सशक्त राष्ट्र हैं दुनिया में,
एक उदारवादी, सामंजस्यी साख हमारी है ।
अब न करेंगे सहन विघटनवादियों को
छद्द्म सिद्धान्तों के नक़ाब में,
अब सारे नक़ाब उलट देने की तैयारी है ।। 3।।
उभरते राष्ट्र की बेल में घुन हैं ये सब,
निर्मल राष्ट्रीय धारा में छुपे हुए प्रदूषण हैं ।
सत्ता के लिए सिद्धांतहीन जोड़-तोड़ करते,