जन्माष्टमी कविता : अबके मेरे घर भी आना

तरसी यशोदा, सुन सुन कान्हा
अबके मेरे घर भी आना 
 


अंगना सूना आंखें सूनी 
इनमें ख्वाब कोई भर जाना 
 
कितना ढूंढू कित कित ढूंढू 
कि‍धर छुपे हो मुझे बताना 
 
ममता माखन लिए खड़ी है 
आकर इसको अधर लगाना 
 
मेरे कान हैं तरसे लल्ला 
तू मुझको अम्मा कह जाना  ...

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