धूम्रपान पर कविता : क्यों मौत बुला रहे हो?

क्यों कश लगा रहे हो, 
धुआं उड़ा रहे हो। 


 
अपने आप अपनी, 
क्यों मौत बुला रहे हो।।
 
क्यूं यार मेरे खुद ही, 
खुद का गला दबा रहे हो। 
 
अनमोल जिंदगी है, 
बर्बाद न कीजिए। 
उसके बदले सुबह-शाम, 
दूध पीजिए।।
 
औरों को बुरी लत का, 
नशेड़ी बना रहे हो।
 
40 की उम्र पार करते, 
खांसी सताएगी।
दम उखड़ जाएगी, 
जिंदगी रुलाएगी।।
 
फोकट में यार अपनी, 
सेहत गला रहे हो।।

 

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