बदलते भारत में सेक्स बदलने की होड़, हॉर्मोन की गड़बड़ी या कोई मनोविकृति?

आपका सेक्‍स क्‍या है? अगर अचानक कोई ये सवाल पूछ लें तो चौंकना लाजिमी है— क्‍योंकि आमतौर पर सेक्‍स दो धारणाओं के बीच परिभाषित होता रहा है। एक औरत और दूसरा मर्द। लेकिन अब सेक्‍स की कई शाखाएं फूट आईं हैं। यह इतनी ज्‍यादा पसरी और उलझी हुई हैं कि इन्‍हें जानना और समझना किसी भी मनोविशेषज्ञ के बस की बात नहीं है।

अपनी सांस्‍कृतिक तहजीब के लिए मशहूर उभरते महानगर इंदौर की बात करें तो यहां एलजीबीटीक्‍यू कैटेगरी के लोगों की संख्‍या में पिछले 5 सालों में 2 से 3 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। यह तो सिर्फ एक क्‍लिनिक का डेटा है। इंदौर में ऐसे कई मनोचिकित्‍सक हैं, जिनके पास बड़ी संख्‍या में लोग पहुंच रहे हैं। हालांकि महिलाएं अभी भी दबाव में हैं, जबकि अपनी सेक्‍शुअल प्रिपंरेंस को सामने लाने में पुरुषों की संख्‍या ज्‍यादा है।
आखिर आपका सेक्‍स क्‍या है : आम मान्‍यता है दुनिया में दो तरह की प्रकृति होती हैं। एक स्‍त्री और दूसरा पुरुष। सदियों से दुनिया इन दो प्रकृतियों या धारणाओं के इर्द-गिर्द ही चलती आ रही है। हालांकि स्‍त्री और पुरुष के बीच थर्ड जेंडर का भी अस्‍तित्‍व और मौजूदगी रही है— जिन्‍हें किन्‍नर, हिजड़ा और वृहन्‍नला आदि नामों से जाना जाता रहा है। लेकिन अब बदलते जमाने के साथ अपनी लैंगिक प्राथमिकताओं (सेक्शुअल ओरिएंटेशन) को लेकर पूरी दुनिया में जबरदस्‍त क्रांति आई है। इस क्रांति में न सिर्फ अपनी लैंगिक प्राथमिकता को लेकर व्‍यक्‍तिगत स्‍वीकृति बढ़ी है, बल्‍कि उसे सार्वजनिक करने का साहस और दम-खम भी नजर आ रहा है। अब तो फेसबुक, इंस्‍टाग्राम, टेलीग्राम, रील्‍स और शॉट्स के दौर में यह तय करना मुश्‍किल हो गया है कि स्‍त्री और पुरुषों को किस तरह से परिभाषित किया जाए। रंग- रूप और पहनावें के बीच की खाई लगातार मिट रही है, उस पर भी हाव-भाव और आचार-व्‍यवहार के आधार पर जो फर्क अब तक नजर आता रहा है, वो खत्‍म हो रहा है। हालांकि रील्‍स, फॉलोअर्स और कमाई के लिए औरतों का मर्द और मर्दों का औरत बनने का जो सिलसिला चल पड़ा है, उसमें से उनकी बिल्‍कुल असल लैंगिक प्राथमिकता का पता लगाना भी मुश्‍किल हो गया है।

इंदौर की क्‍या स्‍थिति है : इंदौर में कई डॉक्‍टर लोगों की लैंगिक प्राथमिकता के बारे में स्‍वीकृति और उनके सामने आने वाली बात को जागरूकता मान रहे हैं। मनोचिकित्‍सकों का कहना है कि उनके पास कॉलेज स्टूडेंट्स से लेकर वर्किंग प्रोफेशनल्स तक, पुरुष और महिलाएं दोनों आते हैं। ज़्यादातर लोग 18 से 35 की उम्र के होते हैं और सभी सामाजिक वर्गों से आते हैं।

हालांकि डॉक्‍टरों के पास LGBTQ+ की कैटेगरी के लोगों का कोई आधिकारिक राष्ट्रीय डेटा नहीं है, लेकिन क्लिनिकल अनुभव और LGBTQ+ संगठनों की रिपोर्ट्स से साफ है कि अब ज़्यादा लोग अपनी जेंडर या सेक्शुअल पहचान को लेकर मनोवैज्ञानिकों की मदद लेने के लिए आ रहे हैं।

इंदौर की मनोचिकित्‍सक डॉ अपूर्वा तिवारी से वेबदुनिया ने इस बारे में विस्‍तार से चर्चा की है। उन्‍होंने बताया कि सिर्फ इंदौर में ही उनकी निजी प्रैक्टिस के दौरान पिछले 5 सालों में ऐसे मामलों में लगभग 2 से 3 गुना तक वृद्धि हुई है— खासकर युवाओं और अर्बन वर्ग में। उनका मानना है कि ये वृद्धि ‘संख्या में इज़ाफा’ नहीं बल्कि ‘स्वीकृति और जागरूकता’ का संकेत है।

पुरुष सामने आ रहे, महिलाएं दबाब में : डॉ अपूर्वा ने बताया कि इंदौर में महिलाएं अपनी सेक्‍शुअलिटी को लेकर दबाव में है। उन्‍होंने बताया कि पुरुष ज़्यादा आते हैं। महिलाएं आज भी सामाजिक दबाव की वजह से अपनी पहचान छुपा लेती हैं— यही चिंता की बात है।

इंदौर के जाने माने यूरोलॉजिस्‍ट एंड रिकंस्‍ट्रक्‍शन सर्जन डॉ विपिन शर्मा ने वेबदुनिया को बताया कि सेक्‍स चेंज के लिए उनके पास बहुत फ्रिक्‍वेंटली मरीज आते हैं। उन्‍होंने बताया कि आंकडा बताना ठीक नहीं है, लेकिन काफी लोग आ रहे हैं। वहीं, ज्‍यादातर लोग प्राइवेसी के लिए दिल्‍ली, मुंबई और बैंगलोर जा रहे हैं।

मैं एक गलत शरीर में थी- अनाया बांगर : अनाया बांगर पूर्व भारतीय क्रिकेटर संजय बांगर की बेटी हैं, जिन्होंने हाल ही में एक ट्रांसजेंडर महिला के रूप में अपनी पहचान सार्वजनिक की है। उन्‍होंने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई है और अब महिला क्रिकेट में शामिल होना चाहती हैं। उन्होंने आईसीसी और बीसीसीआई से ट्रांसजेंडर को क्रिकेट में शामिल करने की पैरवी की है। अनाया पहले आर्यन बांगर के नाम से जाना जाता था। उन्होंने 9-10 साल की उम्र से ही महसूस किया था कि वह एक गलत शरीर में हैं, लेकिन 20 साल की उम्र तक उन्होंने इसे छिपा कर रखा। 2024 में, उन्होंने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई और अपना नाम अनाया रखा। आर्यन के अनाया बनने से एक बार फिर यह विषय चर्चा में है।

अब स्‍वीकार कर रहे लोग और यह इंसानी विविधता का हिस्सा है : इस बारे में वेबदुनिया ने मनोचिकित्‍सक डॉ अपूर्वा तिवारी से चर्चा की। उन्‍होंने कई सवालों के जवाब दिए। भारत में बढ़ती  LGBTQ की आबादी के बारे में उन्‍होंने बताया कि इनकी संख्या नहीं बढ़ रही है, बल्‍कि अब लोग अपनी पहचान छुपाने की बजाय स्वीकार करने लगे हैं। पहले जो बातें दबा दी जाती थीं, वे अब सामने आ रही हैं। हार्मोन की गड़बड़ी या कोई मनोविकृति के सवाल पर वे कहती हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है— न ही हार्मोन की गड़बड़ी, न मनोविकृति। यह इंसानी विविधता का हिस्सा है। DSM-5 ने भी इस सोच में बदलाव करते हुए “Gender Identity Disorder” को हटाकर “Gender Dysphoria” कहा है। यानी जेंडर पहचान को बीमारी नहीं, बल्कि उस मानसिक पीड़ा के रूप में समझा जाता है जो व्यक्ति को तब होती है जब उसकी पहचान को समाज से स्वीकृति नहीं मिलती। केवल उसी distress को इलाज की दृष्टि से देखा जाता है— न कि स्वयं पहचान को।

सेक्शुअल ओरिएंटेशन को लेकर किस तरह के बदलाव आ रहे हैं?
अब युवा खुलकर अपनी सेक्शुअल पहचान को समझ और स्वीकार कर रहे हैं। यह जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए सकारात्मक संकेत है।

क्या मर्द और औरत के बीच का फर्क मिट रहा है?
इस पर डॉक्‍टर अपूर्वा का कहना है कि फर्क नहीं मिट रहा, पर जेंडर रोल्स ज़रूर लचीले हो रहे हैं। अब हर व्यक्ति को अपनी पहचान के अनुसार जीने की आज़ादी मिल रही है— यही मानसिक स्वास्थ्य का भी आधार है।

सोशल मीडिया में लड़के लड़कियां और लड़कियां लड़के बनकर नाच रहे हैं— ये किस तरह की मानसिक स्थिति है?
यह मानसिक विकृति नहीं है। कई बार लोग अपनी जेंडर आइडेंटिटी, परफॉर्मेंस या अभिव्यक्ति के ज़रिए खुद को तलाशते हैं। सोशल मीडिया आज के युवाओं के लिए खुद को बिना डर ज़ाहिर करने का माध्यम बन चुका है। हमें हर अभिव्यक्ति को बीमारी की नज़र से नहीं देखना चाहिए।

लड़कियां अपनी देह को दिखाने में ज़रा भी नहीं हिचक रहीं — वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं?
इस बारे में डॉ अपूर्वा का मानना है कि यह मानसिक रोग का मामला नहीं है। आज की महिलाएं अपने शरीर और अभिव्यक्ति पर अधिकार जताने लगी हैं। आत्मविश्वास और बॉडी पॉजिटिविटी को हमें विकृति नहीं, सामाजिक बदलाव के रूप में समझना चाहिए— जब तक इसमें कोई हानि या शोषण शामिल न हो।

अब रिश्तों के कई विकल्प सामने आ रहे हैं— ये कितना सही है?
DSM-5 के अनुसार सेक्शुअलिटी एक स्पेक्ट्रम है। जब तक कोई रिश्ता आपसी सहमति और सम्मान पर आधारित है, उसे मानसिक रूप से स्वस्थ माना जाता है। रिश्तों के विकल्प व्यक्तिगत आज़ादी का हिस्सा हैं।

क्या सेक्शुअल ओरिएंटेशन ऐसी चीज़ है जिसे लोग देर से पहचानते हैं?
हाँ, ऐसा हो सकता है। सेक्शुअल ओरिएंटेशन समय के साथ स्पष्ट हो सकता है। कई लोग इसे किशोरावस्था में समझते हैं, तो कुछ लोगों को ज़िंदगी के किसी और मोड़ पर अहसास होता है। यह पूरी तरह सामान्य है।

जब मोनिका डोगरा ने सेक्शुअलिटी से मचाया तहलका : इसके बाद करीब दो साल पहले अमेरिकी सिंगर और एक्ट्रेस मोनिका डोगरा अपनी सेक्शुअलिटी के बारे में एक नई बात उजागर कर के पूरी दुनिया में हंगामा मचा दिया था। मोनिका डोगरा ने कहा था— वे पैनसेक्सुअल हैं। उन्‍होंने कहा कि 33 साल तक की उम्र तक उन्‍हें नहीं पता था कि उनका सेक्शुअल झुकाव किस तरफ है। अंतत: उन्‍हें पता चला कि वे पैनसेक्सुअल हैं। दरअसल, पैनसेक्सुअल वे लोग होते हैं जो हर तरह के जेंडर की तरफ आकर्षित होते हैं। इस कैटेगरी के लोग पुरुष, स्त्री, गे, लेस्बियन और बाइसेक्सुअल हर सेक्शुअलिटी वाले लोगों की तरफ झुकाव रखते हैं और उनके साथ संबंध बनाने के लिए उत्‍सुक रहते हैं। उनके लिए यह मायने नहीं रखता कि वे अपने शारीरिक सुख के लिए किसके साथ सेक्‍स कर रहे हैं। दे आर ओपन टू एवरीवन।

सेक्शुअल प्राथमिकताएं : अब तक सामने आईं लैंगिक प्राथमिकताएं मोटेतौर पर गे, लेस्बियन और बाइसेक्शुअल, होमोसेक्शुअल जैसे टर्म के इर्दगिर्द सुनी देखी जाती रही हैं, लेकिन इसके बाद क्वीर, असेक्शुअल, डेमीसेक्शुअल, सैपियोसेक्शुअल, पॉलीसेक्शुअल, ग्रेसेक्शुअल, एंड्रोजेन सेक्शुअल, गायने सेक्शुअल और स्कोलियो सेक्शुअल भी सुनने में आने लगा है, इन्‍हें समझना एक बेहद मुश्‍किल काम है।

आउटर कोर्स- एक सेक्शुअल विकल्‍प : हालांकि सेक्शुअल डिजायर सिर्फ प्राथमिकताओं तक ही सीमित नहीं है, इन सेक्शुअल प्राथमिकताओं के अलावा आजकल नई जनरेशन में एक और सेक्शुअल प्‍लेजर का चलन है। ‘सेक्शुअल डेब्यू’ अंग्रेजी की डिक्शनरी में इस शब्द का अर्थ होता है ‘अपना कौमार्य खोने के बारे में बताते वाला एक शब्द’! यह इससे ज्‍यादा का अर्थ बताता है। दरअसल, सेक्शुअल डेब्यू सिर्फ योनि सेक्स तक सीमित नहीं है, इसमें दूसरे तरीके से किए गए नॉन-पेनेट्रेटिव और ओरल सेक्स भी शामिल हैं। इसलिए आजकल के यंगस्‍टर्स सीधे- सीधे संभोग के बजाय दूसरे तरीके भी अपना रहे हैं जिन्हें एक तरीके का ‘ऑउटरकोर्स’ भी कहा जाता है। यह पूरी तरह से इंटरकोर्स नहीं है। इसके पीछे की भावना दरअसल यह है कि इससे प्‍लेजर तो मिल जाता है, लेकिन नॉन- पेनेट्रेटिव होने की वजह से किसी तरह के गर्भधारण की रिस्‍क भी नहीं होती है। बिहार में पापुलेशन कौंसिल के द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 14.1 प्रतिशत अविवाहित किशोर युवकों और 6.3 प्रतिशत अविवाहित किशोर युवतियों ने शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाए। जिनमें ज्‍यादातर कपल्‍स ने ‘आउटर कोर्स’ जैसे विकल्‍प को अपनाया था।

भारत में 20 करोड़ समलैंगिक : अब जिस तरह से लोग अपनी सेक्शुअल प्रायोरिटी को सामने ला रहे हैं, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में बड़ी संख्‍या में मर्द और औरत के अलावा तमाम तरह की कैटेगरी के लोग मौजूद हैं। हालांकि कई केसेस में देखा गया है कि खुद उस शख्‍स को अपनी सेक्शुअल  प्रायोरिटी काफी उम्र हो जाने तक भी समझ नहीं आती है। कई लोगों के साथ ऐसा हुआ है कि 30, 35 और यहां तक कि 40 की उम्र के बाद उन्‍हें अपना शारीरिक आकर्षण या झुकाव समझ में आया है। भारत की बात करें तो यहां अलग-अलग रिपोर्ट में समलैंगिकों की संख्या 5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक बताई जाती है।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ?
यह मनोविकार नहीं है : यह आवश्‍यक नहीं है कि हमारी लैंगिक आसक्‍ति सिर्फ विपरीत जेंडर के लिए ही हो और ऐसा नहीं होना मानसिक विकार नहीं है। जैसे- जैसे जागरूकता बढ़ती जाएगी बहुत से लोग सार्वजनिक रूप से इस बारे में बताते जाएंगे, ऐसे में कलंक का भाव भी खत्‍म होता जाएगा।- डॉ सत्‍यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्‍सक, भोपाल।

क्‍या कहती है रिपोर्ट : एक स्टडी में सामने आया था कि 1990 के बाद से बाइसेक्शुअल रिश्ते 3 गुना बढ़ गए हैं। अमेरिका के बाद अगर भारत की बात करें तो यहां की भी स्थिति अलग नहीं है। अलग-अलग रिपोर्ट में भारत में भी समलैंगिकों की संख्या 5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक बताई जाती है। ‘द जर्नल ऑफ सेक्स रिसर्च’ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक सर्वे में अमेरिका में पहले बाइसेक्शुअल लोगों की संख्या 3.1% थी, जबकि यह आंकड़ा वर्तमान में 9.3% से ज्‍यादा हो गया है। इस मामले के जानकारों का कहना है कि 9% का आंकड़ा कोई शॉकिंग नहीं है। ऐसा होना था, क्योंकि अवेयरनेस के जरिए लोग जो हैं वह अपनी बात बता रहे हैं। ऐसे लोग आगे आ रहे हैं और ऐसे रिश्ते पहले से चलते आ रहे हैं। यह जनसंख्या के अनुसार बढ़ रहे हैं।

रिश्ते कैसे कैसे ! 
हेट्रोसेक्शुअल : मेल और फीमेल के बीच का संबंध। दुनिया में सबसे ज्यादा इसी तरह के रिश्ते बनते हैं।
होमोसेक्शुअल : सेम जेंडर के बीच बना संबंध। मेल-मेल या फिर फीमेल-फीमेल का रिश्ता।
बाइसेक्शुअल : दोनों जेंडर (मेल-फीमेल) के प्रति आकर्षण।
असेक्शुअल : किसी भी जेंडर के प्रति किसी तरह का सेक्शुअल ओरिएंटेशन नहीं।

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