लोभ नहीं था कुर्सी का ना स्वार्थ ही था उनके मन में,
ज्वाला थी उनकी आंखों में, था ओजस उनके प्रण में।
शिल्पकार थे उस भारत के जिसपर तुम इतराते हो,
फिर क्यूं उन्हें याद करने में इतना तुम संकुचाते हो,
देह चली जाती फिर भी बलिदान रह जाते हैं
चरणों में उनके वंदन है जो सरदार कहलाते हैं।
अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।