कुण्डलिया छंद 1
योगी मन को साधिए, तन-मन रहे निरोग।
प्राण शक्ति संचार हो, तन-मन का हो योग।
तन मन का हो योग, रोग, पीड़ा सब भागें।
दृढ़ होता विश्वास, भाव शुभ मन में जागें।
होता सत्यानाश, बने जो जीवन भोगी।
पावन हो हर श्वास, निकट प्रभु के हो योगी।
कुण्डलिया छंद 2
जीवन को सुखमय करे, अष्ट योग का ध्यान।
विश्व करे अभ्यास अब, पाए सुख-सम्मान।
पाए सुख-सम्मान, रोग प्रतिरोधक जीवन।
नित प्रति कर अभ्यास, योग है कष्ट नशावन।