अहमदाबाद विमान हादसे पर मार्मिक कविता: आकाश से गिरीं आहें
कल दोपहर, जब सूरज भी थमा-थमा था,
अहमदाबाद के आकाश में,
उड़ता हुआ एक सपना
धुएं में घिरा, लहराया, और फिर
हॉस्टल से आ टकराया
जैसे कोई प्रार्थना
अधूरी रह गई हो।
कुछ चेहरों पर मुस्कान थी,
कुछ आंखों में इंतज़ार,
कोई पहली बार उड़ा था,
कोई अंतिम बार उतर रहा था।
जिन्होंने अलविदा कहा था सुबह,
उन्हें क्या पता था
वह 'अलविदा'
कितनी सच निकलेगी।
धातु की चादरें मुड़ीं,
नीले आसमान से
लाल धुंआ उठा,
और एक चीख
जो सबके भीतर थरथराई,
फैल गई
शहर के हर कोने में
जैसे हवा भी रो पड़ी हो।
वो बच्चा, जो खिड़की से बाहर
बादलों में परियां ढूंढ रहा था,
वो मां, जो दिल में
अपने बेटे की शादी का सपना लिए बैठी थी,
वो जवान, जो
नौकरी का पहला दिन गिन रहा था,
वो सब
अब समय की तह में हैं
अनकहे, अनछुए, अनदेखे।
क्या कहे कोई?
शब्द बौने हैं
इस शोक की ऊंचाई के सामने।
कांधे नहीं बचे इतने
कि हर शव उठाया जा सके
और न ही दिल बचे इतने मजबूत
कि हर परिवार को
ढांढस बंधाया जा सके।
कल जो गए,
वो हमारे अपने थे,
शहर के, देश के,
हम सबके
कभी सहकर्मी, कभी सहयात्री, कभी संगी
अब सिर्फ स्मृति।
हम पूछते हैं
क्या उड़ानों का यही अंत है?
क्या तकनीक के इस युग में
इतनी असहाय हो गई है जान?
लेकिन पूछने से उत्तर नहीं मिलते,
सिर्फ आंखें नम होती हैं
और एक मौन
जो पूरे देश पर छा जाता है।
आज मोमबत्तियां नहीं जलतीं,
क्योंकि रोशनी से डर लगता है,
आज प्रार्थनाएं भी चुप हैं
क्योंकि ईश्वर के पास भी
शायद उत्तर नहीं।
हम श्रद्धांजलि नहीं देते,
हम अपने आंसुओं से
एक छोटा-सा दीप जलाते हैं
जो हर उस आत्मा के लिए
जलता रहे
जो इस हादसे में
अनंत आकाश की ओर चली गई।
जिनके सपने वहीं छूट गए,
रनवे पर,
हम उन्हें उठा नहीं सकते,
पर उन्हें याद रख सकते हैं
हर उड़ान में,
हर आसमान को देखते समय,
हर बार जब हम कहें
'सुरक्षित यात्रा हो।'
श्रद्धांजलि उन सभी को,
जिन्होंने जीवन की इस उड़ान में
असमय विदा ली।
हम आपकी स्मृति में मौन हैं।
विनम्र श्रद्धांजलि
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