रेस्टोरेंट से लेकर पार्क तक...हर कहीं पहुंचती है यह हिन्दी शिक्षिका
विदेशियों को रोचक ढंग से हिन्दी पढ़ाती पल्लवी
हिन्दी की महत्ता को समझा रही है पल्लवी
अब तक 100 से ज्यादा विदेशियों को हिन्दी पढ़ाया पल्लवी सिंह ने
पल्लवी सिंह, सिर्फ नाम ही पहचान है इस भारतीय कन्या का। जिस उम्र में करियर की दो राह पर खड़े युवा अपना लक्ष्य तय कर रहे होते हैं उस उम्र में उन्होंने अपने जीवन को एक ऐसे उद्देश्यपूर्ण काम में लगाया कि उनकी ख्याति आज चारों तरफ है। मुंबई की पल्लवी ने तय किया कि क्यों न वह भारत आने वाले विदेशियों को सरल और रोचक ढंग से हिन्दी पढ़ाए। पल्लवी ने समझा उन परेशानियों को जो हिन्दी न जानने पर भारत आने वाले विदेशी मित्रों को उठानी पड़ती है।
पल्लवी का मानना है कि हिन्दी बड़ी सुंदर भाषा है, इस भाषा का सौंधापन, रंगबिरंगी विविधता, सरसता और रोचकता को हम जानते नहीं है जानने लगेंगे तो इस भाषा से प्यार करने लगेंगे। पल्लवी ने भारत आने वाले 100 से ज्यादा विदेशियों को अब तक हिन्दी सिखाई है और उनकी यह यात्रा अबाध गति से जारी है। प्रस्तुत है पल्लवी से की गई बातचीत के अंश :
प्रश्न : हिन्दी पढ़ाने के इस दिलचस्प अंदाज का विचार कैसे आया? शुरुआत कैसे की?
पल्लवी : जब मैं पढ़ रही थी तभी इस बात को मैंने महसूस किया कि जो लोग भारत की संस्कृति से प्रभावित होकर यहां आते हैं उन्हें भाषा की जानकारी न होने पर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि हमारे यहां एक सोच चलती है कि विदेश से आए हैं तो इनके पास ज्यादा पैसा है। इनसे हमें कैसे अधिक पैसा लेना है। मुझे लगा कि अगर उन्हें अपनी जरूरत के मुताबिक भी हिन्दी आती है तो वे इस तरह परेशान होने से बच सकते हैं। अक्सर विदेशी लोग भाषा न जानने के चक्कर में हैरान होते हैं और अंतत: खिन्न होकर भारत यात्रा पूरी करते हैं।
शुरुआत में तो शौक के बतौर ही इसे अपनाया फिर स्पष्ट होने लगा कि मेरा काम लोगों को पसंद आ रहा है। एक विश्वास और रिश्ता पनप रहा है तो कब यह मेरा लक्ष्य और व्यवसाय बन गया पता ही नहीं चला। मुझे खुशी है कि मेरे इस प्रयास से भारत आने वाले पर्यटकों और छात्रों को अच्छा अनुभव होता है।
प्रश्न : पहला अनुभव कैसा रहा?
पल्लवी : मेरा पहला विद्यार्थी दक्षिण अफ्रीका का था। दिल्ली विश्वविद्यालय से वह अपनी डिग्री ले रहा था। वह इतना शांत और समझदार था कि उसे पढ़ाने में खूब मजा आया। सबसे बड़ी बात उसे और मुझे दोनों को पता था कि यह हमारा पहला और प्रायोगिक प्रयास है इसलिए ज्यादा अपेक्षा भी नहीं थी। फिर मैंने कोई क्लास रूम जैसी व्यवस्था तो रखी नहीं थी। मैं विद्यार्थी की सुविधा और उपलब्धता के अनुसार उस तक पहुंच रही थी तो एक सांमंजस्य था। अगर किसी दिन किसी वजह से मैं लेट हो रही हूं तो उसे वह समझता था। मैंने अपने पहले विद्यार्थी को भी कई बंधनों से आजाद रखा और आज भी मैं रेस्टोरेंट, पार्क, बस, कॉलेज, ऑफिस कहीं भी पढ़ाने पहूंचती हूं जहां मेरा छात्र पढ़ना चाहता है। मुझे लगता है इस काम में मुझे सफलता भी इसी वजह से मिली कि पढ़ने और पढ़ाने के लिए माहौल की अनुकूलता और भाषा की सरलता पर मैंने ज्यादा जोर दिया।
प्रश्न : परिवार और मित्रों की प्रतिक्रिया क्या रही?
पल्लवी : मैं 4 साल से पढ़ा रही हूं। कॉलेज में क्लास के बाद जब दोस्त मूवी या घूमने -फिरने का प्लान करते हैं तो मैं अपनी ट्यूशन के लिए जाने की जल्दी में होती हूं। शुरु में दिक्कतें आई पर मैं अपने काम को लेकर गंभीर रही। काम के प्रति समर्पण को मैंने कमजोर नहीं होने दिया। आसपास के कुछ लोग खुश होते हैं, कुछ ईर्ष्या का भाव भी रखते हैं। ऐसा नहीं है कि दोस्तों के साथ कहीं जाने को मैं गलत मानती हूं पर अपने काम के प्रति जवाबदेही भी तो कोई चीज होती है। और सबसे बड़ी बात मेरी थोड़ी सी भी लापरवाही एक विदेशी के मन में भारत के प्रति गलत धारणा को जन्म दे सकती है। मैं मानती हूं कि मेरी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में मैं अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही हूं।
प्रश्न : पढ़ाने का आपका तरीका क्या होता है?
पल्लवी : मैंने हिन्दी पढ़ाने के अपने मॉड्यूल्स खुद बनाए हैं। थोड़े समय के लिए आया पर्यटक अभी इतना फुरसत में नहीं है कि वह हिन्दी के व्याकरण और लिपि को लिखना और पढ़ना सीखें। वह चाहता है उससे जितने दिन भारत में रहना है उसके अनुसार जरूरत की हिन्दी वह बोलना सीख जाए और उसे किसी तरह का कोई नुकसान भी ना हो। मैं 30 से 35 घंटे में हिन्दी को इतना और ऐसा सीखा सकती हूं जो उस पर किसी तरह का मानसिक दबाव भी न बनाए और उसकी भारत यात्रा भी मजेदार, शांतिप्रिय और मनोरंजक बनी रहे।
प्रश्न : आप किन बातों पर अधिक जोर देती हैं?
पल्लवी : सामान्य से सामान्य जरूरत की बातचीत पर। एक पर्यटक जब एयरपोर्ट पर आता है तो सबसे पहले उसका सामना टैक्सी चालक से होता है, फिर उसे कहां जाना है, कहां घूमना है, कहां ठहरना है, क्या खाना है, क्या खरीदना है, कैसे पता पूछना है, यहां के लोगों के मिजाज कैसे समझना है, संस्कृति और इतिहास की सामान्य जानकारी कैसे समझनी है, इन सब बातों को समझाना मेरी प्राथमिकता में शामिल है।
प्रश्न : आप तक इच्छक विद्यार्थी कैसे पहुंचते हैं, दूसरे शब्दों में आपसे जुड़ने का सरल रास्ता क्या होता है?
पल्लवी : मैंने फेसबुक पर एक पेज बनाया है Hindi Lessons for Foreigners in India यहां मैंने सारी सूचना उपलब्ध कराने की कोशिश की है। जैसे- मेरा पढ़ाने का तरीका क्या है? फीस कितनी हैं? अब तक मैं 100 से ज्यादा लोग पढ़ा चुकी हूं तो उनके माध्यम से भी मौखिक प्रचार मिलता है और मेरा अपना एक ब्रोशर भी है जिसमें सब विस्तार से दर्ज है।
प्रश्न : मूल रूप से विदेशी मित्रों को क्या परेशानी आती है?
पल्लवी : देखिए, हिन्दी सीखना एक अलग बात है और भारत के अलग-अलग हिस्सों में बोली जाने वाली हिन्दी को उसके उच्चारण के साथ समझना और अलग बात है। पर्यटक कहां और किस क्षेत्र की सैर करने जाने वाले हैं यह जानना जरूरी है क्योंकि एक मराठी यहां को 'इधर' और वहां को 'उधर' बोलता है जबकि एक पंजाबी अपनी भाषा की खुशबू हिन्दी में मिलाएगा ही यह तय है। ऐसे में उन्हें यह समझाना जरूरी होता है कि अलग-अलग हिस्सों में जैसे अंगरेजी के अलग-अलग स्वरूप है वैसे ही हिन्दी भी देश के विविध प्रांतों में अपनी स्थानीय छाप के साथ थोड़ी अलग हो जाती है।
प्रश्न : आपकी नजर में हिन्दी सीखना सरल है या चुनौतीपूर्ण?
पल्लवी : किसी भी भाषा को सरलतम ढंग से छोटे-छोटे हिस्सों में बांट कर रोचक बनाकर बताया जाए तो वह मनोरंजक भी होता है और सरल भी। हिन्दी सरल है पर उसके प्रायोगिक रुप को समझाना मेरे लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण है और सीखने वाले के लिए उससे भी ज्यादा। मैं जिस उम्र के लोगों को हिन्दी सिखाती हूं वह बच्चे नहीं है। परिपक्व हैं। वह भी हिन्दी को लेकर उत्साहित रहते हैं क्योंकि उन्हें मेरा तरीका रूचिकर लगता है। मुझे लगता है हिन्दी के साथ दोनों ही बातें हैं। समझने और समझाने का नजरिया सकारात्मक है तो भाषा सरल है और किसी भी चुनौती को मजबूत इरादों के साथ स्वीकार किया जाए तो रास्ते अपने आप खुलते हैं।
प्रश्न : पिछले दिनों लेखक चेतन भगत ने कहा कि हिन्दी को आगे बढ़ाना है तो रोमन अपना लेना चाहिए, आपको क्या लगता है, क्या देवनागरी लिपि को सीखना या लिखना कठिन है?
पल्लवी : हिन्दी भाषा के लिए देवनागरी उसका आधार है उससे तो आप खत्म कर ही नहीं सकते। हां, यह जरूर संभव है कि दोनों समान रूप से साथ-साथ चलें। मेरे व्यवसाय को लेकर अगर मैं बात करूं तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि एक विदेशी पर्यटक जिसे सिर्फ कुछ समय घूमना-फिरना और चले जाना है वह आरंभिक तौर पर उसकी अपनी लिपि में ही भारतीय भाषा सीखना पसंद करेगा क्योंकि उसके पास इतना समय नहीं है कि वह लिपि और व्याकरण भी सीखे। लेकिन जिस तरह से विदेशों में भारतीयों का अब प्रवेश कम हो रहा है उसे देखते हुए हमें जान लेना चाहिए कि हिन्दी के बिना हमारा गुजारा नहीं। हमारा बरसों का साहित्य, संस्कृति और संगीत इसी देवनागरी में सहेजा हुआ है आप कहां-कहां से देवनागरी को खत्म करेंगे?
प्रश्न : विदेशियों का हिन्दी के प्रति मोह क्यों बढ़ रहा है?
पल्लवी : देखिए अगर मैं कहीं विदेश में घूमने जाती हूं तो मैं वहां सिर्फ घूम कर या फोटो लेकर वापिस नहीं आ सकती। मैं वहां की भाषा, संस्कृति, परिधान, खानपान, जीवनशैली, फिल्में सभी का पूरा अनुभव लेकर आना चाहूंगी उसी तरह भारत आए पर्यटकों की भी यही दिलचस्पी होती है। दूसरा कारण मैं मानती हूं कि आजकल दोस्त बनाने की सीमा-रेखा तो रही नहीं किसी का ब्वॉय फ्रेंड भारतीय है तो किसी की गर्लफ्रेंड। वे चाहते हैं कि अपने प्रेमी/प्रेमिका से उनकी भाषा में बात करें और इसलिए भी वे सीखते हैं।
प्रश्न : आप हिन्दी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं या आश्वस्त?
पल्लवी : हिन्दी बहुत ही सुंदर, सरल और सहज भाषा है। इसमें अनेक भाषाओं की खुशबू मिली है यही इसकी खूबसूरती है। हमारी भाषा में अपनी बात को अभिव्यक्त करने के जितने स्वरूप हैं उतने आपको और किसी भाषा में नहीं मिलेंगे। यह जितनी गहरी है उतनी ही विस्तृत भी। इसकी मिठास का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि विदेशियों को भी इसे सीखते हुए इससे लगाव हो जाता है और सीखने के बाद वे इसे जरा भी पराया नहीं मानते।
मैं पूर्णत: आश्वस्त हूं। आज जो लोग इसकी महत्ता नहीं समझ रहे हैं वे कल इसे जरूर मानेंगे। हर किसी को अपनी भाषा के पास लौटना ही होगा। लोग देर से समझेगें पर समझेंगे जरूर।
अपने बारे में पल्लवी :मुझे बस इतना ही कहना है कि मैं अपना काम बहुत ईमानदारी से करती हूं। बहुत मन लगा कर करती हूं। अपने काम को लेकर बहुत गंभीर हूं। सबसे बड़ी बात कि मेरे व्यवहार से, मेरे काम से विदेशियों में यह विश्वास स्थापित हो रहा है कि भारतीय लोग अच्छे होते हैं और यही मेरी पूंजी है। मेरे इस छोटे से प्रयास से अगर किसी के दिल में भारत प्रति शुभ भावना जाग्रत होती है, मेरे देश में गुजारे उनके लम्हे खूबसूरत हो जाते हैं तो मेरा फैसला भी सही है और मेरा लक्ष्य भी।