बच्चों के लिए नए और प्रासंगिक विषयों पर नाटक लिखे जाने की बहुत ज़रूरत - शकील अख़्तर
बड़ों के लिए नाटक तो बहुत से लिखे जा रहे हैं लेकिन बच्चों के लिए नाटक बहुत कम लिखे जा रहे हैं। बच्चों के लिए नए और प्रासंगिक विषयों पर नाटकों की बहुत ज़रूरत है। मैंने बच्चों या नौजवानों के लिए प्रासंगिक नाटकों के लेखन की विनम्र कोशिश की है ताकि बच्चे हंसते-खेलते सीखे और संस्कारित हों सके। यह बात रंगमंच से जुड़े रहे रचनाधर्मी लेखक,पत्रकार शकील अख़्तर ने कही। वे जंगल सिटी', 'ब्लू व्हेल: एक ख़तरनाक खेल', 'मोनिया दि ग्रेट' और 'हैलो शेक्सपियर' जैसे 5 नाटकों का लेखन कर चुके हैं। उनके लिखे दो नाटकों का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली में मंचन हो चुका है। उनके नाट्य लेखन पर हाल ही में इमेज रिफलेक्शन, दिल्ली के संपादक लोकमित्र ने बातचीत की। उसी बातचीत के विशेष अंश।
रंगमंच के माध्यम से शिक्षा और संस्कार :
शकील अख़्तर ने कहा-रंगमंच के माध्यम से शिक्षा और संस्कार को लेकर नई शिक्षा नीति में भी ध्यान दिया गया है। एनसीआरटी से लेकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने इस दिशा में बहुत से प्रयास किए हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का थियेटर इन एजुकेशन प्रोग्राम ही इसी विषय को समर्पित है। मुझे ख़ुशी है कि इस काम में मुझे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली के अनुभवी निर्देशकों और प्रशासकीय प्रमुखों का सहयोग मिला। 'ब्लू व्हेल:एक ख़तरनाक खेल' और 'मोनिया दि ग्रेट' का लेखन और मंचनों से जुड़ने का मुझे यहीं पर मौका मिला। दोनों के मूल नाट्यालेख यहां बच्चों के साथ काम करते हुए लिखे गए। इनका निर्देशन हफ़ीज़ ख़ान ने किया। इस काम में दिल्ली और एनसीआर के बाल कलाकार जुड़े।
ऑनलाइन गेम के ख़तरों से सचेत करता नाटक ब्लू व्हेल:
नाटक ब्लू व्हेल के बारे में पूछे जाने पर शकील अख़्तर ने कहा, आप जानते ही हैं, 2015-16 में ब्लू व्हेल नाम के एक ऑनलाइन गेम की वजह से दुनिया भर के बच्चों के सुसाइड से जुड़ी ख़बरें आने लगी थीं। भारत में भी ऐसे 13 केस अलग-अलग राज्यों में सामने आये थे। उस वक्त अभिभावक और स्कूल बहुत चिंतित थे। केंद्र सरकार ने भी तब बच्चों को जागरूक बनाने को लेकर राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया था। उस वक्त मुझे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में बच्चों की कार्यशाला के दौरान यह नाटक लिखने का अवसर मिला। नाटक में ब्लू व्हेल जैसे ऑनलाइन गेम और गैजेट्स की वजह से बाल मन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को अच्छे और बुरे पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था। नाटक का मंचन सफल रहा। इसमें काम करने वाले बाल कलाकारों के साथ बाल दर्शकों ने भी बहुत कुछ सीखा।
महात्मा गांधी के बचपन पर आधारित मोनिया दि ग्रेट:
इसी तरह महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष में हमने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नाटक 'मोनिया दि ग्रेट' का मंचन किया। इसमें 6 साल से लेकर 18 साल तक के गांधी का जीवन था। इस नाटक के मंचन के बाद बच्चों ने कहा, 'हमने गांधी को किताब से जितना नहीं सीखा, उससे कहीं ज़्यादा हमने उन्हें इस नाटक से जाना।' असल में गाँधी जी की जयंति वर्ष में यह बात ध्यान में आई कि बैरिस्टर गांधी को दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से उतारे जाने से लेकर उनकी हत्या किए जाने तक तो बहुत काम और विमर्श हुआ है। साहित्य रचा गया, फ़िल्में बनीं। मगर उनके बचपन पर तुलनात्मक रूप से कम ही काम हुआ है। विशेषकर नाटक में। इसी दृष्टि से उनकी आत्मकथा में उल्लेखित बातें और गांधी स्मृति दर्शन ग्रंथालय और राजघाट से मिली पुस्तकें मेरे अध्धयन और शोध का आधार बनीं। बच्चों के लिए यह एक प्रेरक और शिक्षाप्रद नाटक बन सका। लॉकडाउन से पहले इसके बड़ोदरा,ग्वालियर में मंचन हुए।
प्राणियों के प्रति संवेदनशील बनाता नाटक जंगल सिटी:
अपने नए नाटक 'जंगल सिटी' के बारे में शकील अख़्तर ने कहा- कोरोना संकट के समय में मनुष्यों को बचाने को लेकर तो बहुत हाहाकार मचा लेकिन प्राणियों की तरफ हमारा कम ही ध्यान गया। लॉकडाउन के वक्त शहर में प्राणी भूखे-प्यासे फिरते रहे। जंगल से सटे इलाकों में सुनसान देखकर आए जानवर इंसानी ज़ुल्म का शिकार बन गए। प्राणियों के प्रति संवेदना जगाते इस नाटक की यही कहानी है। इस संगीतमयी नाटक की राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के एक्टिंग,डायरेक्शन डीन डॉ.अभिलाष पिल्लई ने सराहना की है। मध्य प्रदेश नाट्य स्कूल के पूर्व निदेशक आलोक चटर्जी ने कहा है, इस नाटक के देश में अधिकाधिक मंचन होना चाहिए। नाटक प्राणियों की तरफ से दर्शकों को संदेश देता है कि वे केवल मर्डर का गीत या पिंजरे का संगीत नहीं है। उन्हें भी इस धरती पर इंसानों की तरह रहने और जीने का हक़ है।
मंच पर साढ़े चार सौ साल बाद शेक्सपियर !
'हैलो शेक्सपियर' एक एजुकेशनल प्ले है। नाटक की कल्पना वरिष्ठ रंग व्यक्तित्व हफीज़ ख़ान की है। नाटक में मंच पर ख़ुद शेक्सपियर एक लेखक और एक अभिनेता के रूप में मंच पर है। आप जानते ही हैं कि अंग्रेज़ी साहित्य में शेक्सपियर के नाटकों और सॉनेट्स (रचनाओं) को पढ़ाया जाता है। इस नाटक की खूबी है कि इस मंच पर देखकर आप शेक्सपियर के व्यक्तित्व, जीवन, लेखन के साथ ही उसके छह महत्वपूर्ण नाटकों से परिचित होते हैं। ये नाटक हैं, किंगलियर,हैमलेट,मैकबेथ,ऑथेलो,रोमियो जूलियट और जूलियस सीजर। इन नाटकों के प्रमुख दृश्य नाटक में शामिल है। डेढ़ घंटे के इस प्रयोगवादी नाटक की खूबी है कि आप इसे सिम्बॉलिक रूप में मंच पर खेल सकते हैं। कला वसुधा नाम की साहित्यिक पत्रिका ने अपने सौ नाटकों के विशेषांक में इसकी प्रशंसा की है। आलोचक और कवि प्रो.आशुतोष दुबे ने नाटक को रंगमंच के लिए एक अनूठा प्रयोग बताया है।
नाटकों को नए शिल्प और तेवर की ज़रूरत :
शकील अख़्तर का नाट्य लेखन पारंपरिक नाटकों से हटकर हैं। इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं, 'असल में मुझे अख़बार,रेडियो,टीवी,फ़िल्म,विज्ञापन और संगीत के क्षेत्रों में लेखन और अभिनय करने का मौका मिला है। एक कलाकार के रूप में मैंने इंदौर,ग्वालियर की नाट्य संस्थाओं में काम किया है। मेरे बहुत से गीत संगीतबद्ध हुए हैं। यह बैकग्राउंड मेरे नाट्य लेखन में काम आता है। इसके अलावा आज का युग और विषय अलग है। इसलिए भी नया लेखन ज़रूरी है।
शकील अख़्तर ने बताया, हाल ही में मेरी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक वामन केंद्रे से रंगमंच के वर्तमान परिदृश्य पर बातचीत हुई। उन्होंने कहा, हमें आज के दर्शकों के हिसाब से नाट्य लेखन की रचने की ज़रूरत है। साथ ही शिल्प के घिसे-पिटे ढर्रे को तोड़ना ज़रूरी है। नई समझ और तकनीक को अपनाने की ज़रूरत है। मुझे केंद्रे साहब की यह बात अच्छी लगी। एक लेखक के रूप में मैंने इस दिशा में छोटी सी कोशिश की है। मैं यह मानता हूं कि नए रंगमंच के लिए नये रक्त संचार की ज़रूरत है। पुराने नाटकों को दोहराने की जगह हमें नये प्रयोगों के खतरे उठाने होंगे। ताकि नए दौर के हिसाब से नए नाटक, नए शिल्प और नए रंग-रूप के साथ सामने आ सकें।
बचपन से रही नाटकों के प्रति दिलचस्पी :
स्कूली दिनों से ही नाटकों में काम करने वाले शकील अख़्तर इंदौर और ग्वालियर की कई नाट्य संस्थाओं के कलाकार रहे। राजेंद्र गुप्त और बीएम शाह जैसी नाट्य हस्तियों के निर्देशन में उन्होंने नाटकों में काम किया। परंतु जब वे पत्रकारिता में आये, उन्होंने रंगमंच,संगीत जैसे कला विषयों पर लेखन शुरू किया। उन्होंने हिन्दी बेल्ट के प्रमुख पत्रों में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया और फिर इंडिया टीवी में बतौर सीनियर एडिटर सेवारत रहे। अब वे कलाकारों पर एकाग्र इंदौर स्टुडियो वेबसाइट का संपादकीय दायित्व संभालते हैं। उन्होंने कहा, एक लेखक के रूप में मैं अपने स्तर पर कुछ बेहतर कर सकूं, यह मेरी कोशिश है। मैं चाहता हूं कि मैं नये विषयों पर प्रमुख निर्देशकों के साथ काम कर सकूँ। मैं बाल रंगमंच को लेकर अध्धयन भी करना चाहता हूं ताकि रंगमंच और शिक्षा को मेरे अध्ययन का लाभ मिल सके।