युवाओं में ड्रग्स की लत पर केन्द्रित उपन्यास जायरा की लेखिका प्रोफेसर विनिता भटनागर से बातचीत
गुरुवार, 30 जनवरी 2025 (15:15 IST)
- डॉ. सर्जना चतुर्वेदी
एक बच्चा जब बड़ा होता है तो कुछ ख्वाब अपने लिए बुनता है और कुछ अपनों के लिए कि वह जिंदगी में कुछ बेहतर करके अपनी जिंदगी को ऊंचे मुकाम पर लेकर जाएगा और अपने माता-पिता का नाम रोशन करेगा। लेकिन जब वही युवा छोटी उम्र में ही किसी भी तरह के नशे की गिरफ्त में आ जाता है तो वह न सिर्फ अपना बल्कि अपने पूरे परिवार का जीवन दांव पर लगा देता है। नशे की हालत में अपनों पर वार करने से लेकर परिवार की संपत्ति प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने की घटनाएं यदि हम देखें तो हर छोटे से लेकर बड़े शहर में आम हैं।
कभी कोई कूल दिखने के लिए शुरुआत करता है, कोई यह साबित करने के लिए कि अब मैं बड़ा हो गया हूं, तो कोई अपनी जिंदगी के डिप्रेशन या अकेलेपन से तंग आकर इसमें अपने जीवन का सुकून तलाशता है और एक बार इसके गर्त में जब आए तो किस तरह दलदल में धंसते चले जाते हैं।
समाज की इसी हकीकत को लेखिका प्रोफेसर विनिता डोंडियाल भटनागर ने अपने अंग्रेजी उपन्यास जायरा के माध्यम से सामने रखने की कोशिश की है। राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल में ह्यमेनिटी की प्रोफेसर विनिता स्टोरी टेलिंग के माध्यम से वेदों की रचनाओं से लेकर अंग्रेजी साहित्य की खूबसूरत कहानियों को अदाकारी के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं।
आइए जानते हैं प्रोफेसर विनिता से उनके इस उपन्यास और अब तक की लेखन यात्रा के बारे में...
सवाल- अपने इस उपन्यास के बारे में बताइए?
जवाब- उपन्यास की कहानी भोपाल की एक युवा महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी आदर्श अभिनेत्री लैला की तरह ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध होना चाहती है। लेकिन अपनी पसंदीदा नायिका की मौत की सच्चाई का पता लगाते हुए उसे ड्रग्स के बड़े रैकेट की सच्चाई पता चलती है। इस कहानी में दोस्ती, ड्रग्स की वजह से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी जिक्र है। इसमें ग्लैमर की चकाचौंध, अपराध की दुनिया जैसे कई पहलू शामिल हैं।
सवाल- आपने उपन्यास के लिए इस विषय का चुनाव क्यों किया? आपको इस उपन्यास को लिखने के लिए किस तरह का रिसर्च करना पड़ा?
जवाब- मैं लंबे समय से उपन्यास लिखना चाहती थी। मैंने बहुत पहले एक उपन्यास लिखा भी था। उसके बाद फिर से लिखना शुरू किया लेकिन कई बार रिजेक्ट होते रहे। समय के साथ प्रकाशन कराना अब आसान हुआ है। मेरी एक दोस्त संपादक है उसने मुझे मोटीवेट किया और मैंने दोबारा से लिखने का निर्णय लिया।
अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी, एमफिल की वजह से मुझे साहित्य में हमेशा से रुचि रही है और महिला अध्ययन से भी जुड़ी हूं, इसलिए ऐसा नहीं लिख पाती जो समाज से अलग हो। हमेशा ऐसे विषय पर लिखना पसंद है, जो समाज से जुड़ा हुआ हो। इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय में पढ़ा रही हूं, एक बेटे की मां हूं इसलिए युवाओं की समस्याओं को अक्सर देखती हूं। मैंने कुछ ड्रग्स के बुरे प्रभाव पढ़े या देखें उसके बाद इसे लेकर निर्णय लिया। मैंने अलग से कोई अध्ययन या रिसर्च नहीं किया। हां समाज में जो घटनाएं हो रही हैं उसका ही विश्लेषण किया है।
सवाल- आपके उपन्यास में जायरा संघर्ष करने के बाद जीत जाती है लेकिन निजी जिंदगी में अक्सर नशे की लत की घटनाओं का अंत बुरा होता है। इसके बारे में आपके क्या कहना चाहेंगी?
जवाब- उपन्यास और वास्तविकता में यही अंतर होता है कि जब हम किसी कहानी को कह रहे होते हैं तो उसका अंत हम अपने हिसाब से तय कर लेते हैं। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता है। ड्रग्स के नशे के बुरे परिणाम का चित्रण उपन्यास में भी है लेकिन जायरा संघर्ष के बाद आखिर जीत जाती है। असल जिंदगी में यह सब तभी संभव होता है जब नशे के शिकार व्यक्ति का परिवार, दोस्त, आसपास के लोग, समाज सब हर कदम पर साथ दें उसे उस स्थिति से बाहर निकालने के लिए हर संभव प्रयास करें तभी सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
ड्रग्स सिर्फ किसी व्यक्ति के परिवार और दोस्तों की नहीं बल्कि यह पूरे समाज की समस्या है। इससे निपटने के लिए सभी को मिलकर अपना योगदान देना होगा, क्योंकि इससे सिर्फ व्यक्ति और परिवार नहीं पूरा समाज प्रभावित और पीड़ित होता है। कोई इंसान ड्रग्स या किसी भी गंभीर समस्या से अकेले नहीं जूझ सकता है। अकेला होने पर व्यक्ति टूटेगा, उसे साथ की जरूरत होगी। ऐसे व़क्त में सिर्फ परिवार और दोस्तों की नहीं पूरे समाज की जिम्मेदारी है कि वह इस स्थिति में बाहर आने में उसे हर संभव सहयोग करें।
सवाल- युवाओं में नशे की समस्या और उसे दूर करने को लेकर आपके क्या विचार हैं?
जवाब- मेरा मानना है कि आज के युवाओं का पियर प्रेशर पहले की तुलना में बहुत अधिक है। खुद को बेहतर साबित करना हो या फिर एक्सपोजर सबकुछ बहुत ज्यादा है। ऐसे में नशे से दूर रहना बहुत जरूरी है क्योंकि नशे का ब्रेन सेल्स पर असर होता है। वह व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति को खत्म कर देता है। प्रतिष्ठा मान सम्मान, सुख शांति सब कुछ धूमिल कर देता है।
निजी अनुभव बताऊं तो मैंने एक बच्चे को देखा था जो बहुत इंटेलीजेंट था लेकिन ड्रग्स की लत ने उसके पूरे जीवन को तबाह कर दिया। वह एक बेहतर सफल इंसान बन सकता था, अपने माता-पिता के सपने पूरे कर सकता था। वह पूरी तरह तबाह हो गया। मैं उसकी मां के करीब आई उनसे दोस्ती कि तो देखा कि वह कितनी परेशान और बेबस थीं। ब्रेन में कई तरह के केमिकल चेंज होने से वह मानसिक तौर पर बेहद बीमार हो गया था।
सवाल- युवाओं को इस उपन्यास के माध्यम से क्या संदेश देना चाहेंगी?
जवाब- नशा जीवन संघर्ष को और अधिक बड़ा देता है। इसलिए युवाओं को इससे दूर रहना बहुत जरूरी है और अपने इस उपन्यास के माध्यम से मैं यही संदेश देना चाहती हूं। अगर कोई व्यक्ति नशे की लत में है तो उसे दुनिया से छिपाने के बजाय दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। ऐसी बहुत सी संस्थाएं हैं जो रीहेबिटेशन और रीएडिक्शन के लिए काम कर रही हैं।
अगर ऐसी समस्या हो तो जरूर मदद लेनी चाहिए। इसे कोई स्टिग्मा या कलंक नहीं समझना चाहिए। बच्चे से गलती हो गई है, तो उसे सुधारना जरूरी है। मैंने यह किताब इसलिए ही लिखी है क्योंकि प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर। ड्रग्स का इलाज भी काफी महंगा है।
ड्रग्स की लत लगने के बाद इससे बाहर निकलना आसान नहीं है। इसके प्रति जागरूकता के लिए ही मैंने यह उपन्यास लिखा है। यह समस्या सिर्फ उस परिवार को नहीं बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करेगी क्योंकि जब ड्रग्स की लत लग जाएगी तो वह बच्चा उसे पाने के लिए, तो कभी उसके प्रभाव में आकर कई तरह के अपराध का सहारा लेगा। इसलिए इसे रोकने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।
Edited By : Rajashri Kasliwal
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