पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से 18 परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण होने में सुन्नी संगठन तहरीक-ए-तालिबान का नाम सामने आ रहा है लेकिन पाकिस्तान के प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्जा ने पाकिस्तान की सेना पर यूरेनियम की चोरी को ईरान को तस्करी के एक बड़े षड्यंत्र के तहत अंजाम देने का आरोप लगाया है। मिर्जा ने दावा किया है कि पाकिस्तान की सेना लंबे समय से गुप्त रूप से परमाणु प्रौद्योगिकी को बेचती रही है,जिससे वैश्विक सुरक्षा खतरे में पड़ रही है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से इस घटना की स्वतंत्र जांच की अपील की है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका और इजराइल की टेढ़ी नजर रही है। इजराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद ईरान को परमाणु बम न बनाने देने के प्रति संकल्पबद्ध रही है और उसने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमलें भी किये है।
इन सबके बीच मोसाद के निशाने पर पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम भी रहा है। पाकिस्तान अपने परमाणु बम की इस्लामिक बम कहकर इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व करने का ख्वाब देखता रहा है। पाकिस्तान के परमाणु बम के निर्माता डॉ.खान ने 1990 के दशक के अंत से 2003 तक लीबिया को गुप्त रूप से एक सेंट्रीफ्यूज प्लांट और परमाणु हथियार डिजाइन की आपूर्ति की जिससे वहां हथियार कार्यक्रम बनाने में मदद मिल सके। उन्होंने 1990 के दशक में उत्तर कोरिया और ईरान को सेंट्रीफ्यूज तकनीक भी हस्तांतरित की थी। 1990 में ही खान की परमाणु प्रयोगशाला ने कथित तौर पर इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को एक पत्र भेजा था जिसमें परमाणु सेंट्रीफ्यूज बनाने में सहायता की पेशकश की गई थी। इसके साथ ही कम से कम दो पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों ने 2000 और 2001 में अल कायदा के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी।
पाकिस्तान में फौज का सभी संस्थानों पर गहरा नियन्त्रण है और सेना के अधिकारियों की जवाबदेही को लेकर पाकिस्तान में कोई स्वतंत्र और पारदर्शी निकाय काम नहीं करती है। पाकिस्तान और ईरान एक दूसरे से लम्बी सीमा साझा करते है और यह तस्करी का बड़ा केंद्र मानी जाती है। जिस खैबर पख्तूनख्वा के क्षेत्र से 18 परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण होने की घटना सामने आई है वहां शियाओं की अच्छी खासी आबादी रहती है। यहां पर ईरान समर्थित शिया आतंकवादी समूह जैनबियून ब्रिगेड का अच्छा खासा प्रभाव है। इस समूह को पाकिस्तान ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। सीरियाई गृहयुद्ध शुरू होने के बाद ईरान की आईआरजीसी द्वारा गठित जैनबियूं ब्रिगेड,जिसे लिवा जैनबियूं के नाम से भी जाना जाता है,ने पाकिस्तानी शिया आतंकवादियों को संगठित किया। जिन्हें बाद में ईरान और रूस के करीबी सहयोगी सीरियाई शासक बशर अल-असद के विरोधी बलों से लड़ने के लिए भेजा गया था।
जैनबियून ब्रिगेड हिजबुल्लाह का भी सहयोगी रहा है,जो लेबनान से इजराइल पर हमलें करता रहा है। हिजबुल्लाह ईरान का प्राक्सी समूह माना जाता है और इजराइल ईरान की तरह हिज्बूलाह को भी अपना बड़ा दुश्मन बताता रहा है। 2018 में इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने यह दावा कर सनसनी फैला दी की उनके पास तेहरान के एक गुप्त स्टोरेज से इस्राइली ख़ुफ़िया विभाग को मिली डेटा की कॉपियां हैं। इस डेटा में 55 हज़ार पन्नों के सबूत के साथ 183 सीडी और 55 हज़ार फाइलें हैं। नेतन्याहू ने इस डेटा को ईरान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम प्रोजेक्ट अमाद से संबंधित बताते हुए कहा था कि ईरान परमाणु समझौते को ठेंगा दिखाकर गुपचुप तरीके से परमाणु हथियारों का जखीरा बनाने की और अग्रसर है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही ट्रंप प्रशासन ने ईरान से समझौता तोड़ दिया था और उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिये थे। ईरान के परमाणु कार्यक्रम का प्रमुख वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह और ईरान के टॉप मिलिटरी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या मोसाद ने ही की थी। फ़ख़रज़ादे कई बार उत्तर कोरिया गए थे जहां उन्होंने अपनी परमाणु परीक्षण होते हुए देखा था। उन्होंने पाकिस्तान के परमाणु हथियार परियोजना के प्रमुख अब्दुल क़ादिर ख़ान से भी मुलाक़ात भी की थी। ख़ान ने ही ईरान को यूरेनियम परिष्कृत करने की तकनीक बेची थी।
पिछले साल ईरान पर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने यह आरोप लगाया था की ईरान अब हर महीने 60 प्रतिशत यूरेनियम-235 से समृद्ध लगभग नौ किलोग्राम यूरेनियम का उत्पादन कर रहा है। पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान में स्थित लक्की मरवत में यूरेनियम खनन स्थल से 16 परमाणु वैज्ञानिकों के अपहरण के साथ यूरेनियम के चोरी होने के तथ्य भी सामने आये है। पाकिस्तान के प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्जा के दावे को यदि सही माना जाएं और यदि यह यूरेनियम ईरान तक पहुंच जाता है तो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को फिर से गति मिल सकती है। पिछले अक्टूबर में इजरायली हमले में ईरान के पारचिन में एक सक्रिय सीक्रेट परमाणु हथियार रिसर्च फैसिलिटी को तबाह कर दिया गया था । इस हमलें से परमाणु हथियार अनुसंधान को फिर से शुरू करने के ईरान के प्रयास को एक बड़ा झटका माना गया था। लेकिन अब पाकिस्तान से यूरेनियम चोरी होने और परमाणु वैज्ञानिकों के अपहरण से ईरान को फायदा न पहुंचे,इस पर मोसाद की नजर निश्चित ही होगी। वहीं पाकिस्तान के अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में नाकाम रहने से ट्रम्प की नाराजगी बढ़ सकती है और इससे पाकिस्तान की मुश्किलें भी बढ़ सकती है।