रिमझिम फुहारें बरसना अभी बस बंद ही हुई थीं। बगीचे के वृक्षों की पत्तियों पर बूँदें मोती की तरह अटकी हुई थीं। ठंडी हवा के झोंके, चाय का प्याला, नजर उपन्यास पर तो कभी राह से गुजरने वाले इक्का-दुक्का लोगों पर ठहर जाती।
'ले लोऽऽ बरसाती...छोटे बच्चों की!' मीठी सी हाँक सुनाई दी। जब देखा तो चेहरे पर हँसी बिखर गई, बेचने वाला खुद ही एक छोटा सा बच्चा था। नजरों से नजरें मिलीं और उसके कदम गेट तक आ गए।
'बरसाती चाहिए? छोटे बच्चों की?' बिलकुल मुसीबत से उबारने वाला अंदाज।
रिमझिम फुहारें बरसना अभी बस बंद ही हुई थीं। बगीचे के वृक्षों की पत्तियों पर बूँदें मोती की तरह अटकी हुई थीं। ठंडी हवा के झोंके, चाय का प्याला, नजर उपन्यास पर तो कभी राह से गुजरने वाले इक्का-दुक्का लोगों पर ठहर जाती।
'नहीं, जब घर में छोटा बच्चा ही नहीं है तो बरसाती का क्या उपयोग?'
'अच्छा' कदम पलटे।
'सुनो! तुम क्यों नहीं ओढ़ लेते एक बरसाती? भीग रहे हो।' माथे पर छितरे बाल और चेहरे पर चमकते-लुढ़कते मोती देखकर रहा न गया।
'क्लऽऽच!' बेकार में टाइम खोटी कर दिया जैसे कुछ भाव चेहरे पर थे और वातावरण में देर तक गूँजता रहा उसका प्रश्न- 'मैं कोई छोटा बच्चा हूँ क्या?'