बार-बार आग्रह करने पर नारद ने बताया, इस वृक्ष पर जितने पत्ते हैं उतने ही वर्ष और लगेंगे। नारदजी की बात सुनकर तपस्वी निराश होकर बोला- वर्षों तप करने के बाद भी अभी और तप करना होगा? इससे तो अच्छा था कि मैं गृहस्थी में रहकर पुण्य कमाता तो उससे ज्यादा फल मिलता। मैं बेकार ही तप करने आ गया। नारदजी उसकी बात सुनकर वहां से चले गए।