जब उसे होश आया तो उसने देखा कि उसके दोनों पैर कट चुके हैं। उनमें से खून बह रहा। उसने सोचा कि अब तो जिंदगी के कुछ पल शेष हैं। उसने देखा कि पैर अभी पूरे नहीं कटे हैं, लटके हैं। उसने हिम्मत नहीं हारी। दोनों पैरों को उसने फिर से जमाया। पास ही उसका बैग पड़ा था। उसमें से गमछा निकालकर उसने किसी तरह बांध लिया। सांसें आधी-अधूरी-सी चल रही थीं। धीरे-धीरे बेहोशी छाने लगी और वह फिर से बेहोश हो गया। लगा सब कुछ खत्म! सुबह की पो फटने वाली थी।
जब उसे फिर होश आया तो एक ट्रेन की आवाज सुनाई दी। न जाने उसमें कहां से इतनी
शक्ति आ गई कि वह लुढ़ककर पटरियों के बाजू हो गया और खून से लथपथ शर्ट हिलाने लगा। ट्रेन के ड्राइवर ने उसे दूर से ही देख लिया और उसने ट्रेन रोकी। कुछ साहसी युवकों ने उसे ट्रेन में उठाकर चढ़ाया, तब तक वह बेहोश हो चुका था।