लघुकथा : दान से आई बसंती मुस्कान

ऑफिस के बाहर बूढ़ी भिक्षुक महिला जिसके फटेहाल देख निष्ठुर मन भी एक पल को पिघल जाए। सुहानी उसे देख पर्स से अपना टिफिन निकाल कर देने लगी। परन्तु उसने नहीं चाहिए का इशारा कर दिया।
 
 "अम्मा मना मत करो ये खाने की चीज है, ले लो तुम्हारा पेट भरेगा।"
 
"अम्मा अपने बर्तन और झोले में रखा खाना दिखाते हुए बोली - बेटी! मैं अकेली कितना खाऊँ? इस बुढे़ तन को भूख-प्यास के अलावा जिंदा रखने के लिए दवाई भी चाहिए।"
 
"भिक्षा में रुपये ना देने का संकल्प करने वाली सुहानी ने लरज़ते हाथों से दवा का पर्चा ले लिया और थोड़ी देर बाद जब दवा के साथ पहुँची तो झुर्रियों भरे चेहरे पर बसंती मुस्कान थी।"
 
©®सपना सी.पी.साहू "स्वप्निल"

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