विवेकानंद (Swami Vivekananda) जी भयभीत होकर खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बंदर कहां मानने वाले थे, वे तो मानो विवेकानंद के पीछे ही पड़ गए और उन्हें दौड़ाने लगे। वहीं पास ही खड़े एक बुजुर्ग संन्यासी यह सब देख रहे थे। उसने स्वामी जी को रोका, टोका और बोला, 'रुको! उनका सामना करो!'