बरखा सहेलियों संग मेले से वापस आ रही थी। प्यास के मारे गला सूख रहा था। घर को आने वाली राह पर न कोई पेड़ था और न कोई पानी पीने का जरिया। राह में एक गड्ढे में भरा पानी देखकर बरखा ने उसे पीने को सोचा, पर सहेलियों ने हिम्मत बंधाई।
घर की दूरी मेले से तीन किलोमीटर थी और दो किलोमीटर के लगभग चल चुकी थी। एक किलोमीटर का एक-एक कदम एक-एक मील-सा लग रहा था। धूप अपने चरम पर थी। दूर-दूर तक खेत थे।
तभी उसे कुछ दूर खेत में एक आदमी काम करते दिखा। उसने उसे आवाज दी- ऐ यहां आओ। उस व्यक्ति ने उसकी तरफ देखा और फिर काम में लग गया। उसने उसे दुबारा पुकारा। वह काम छोड़कर उसकी तरफ देखने लगा।
बरखा हाथों से इशारा करके उसे बुला रही थी।
उसने दूर से ही कहा- मैं, तो बरखा ने हां में सर हिला दिया।
वह जैसे-जैसे नजदीक आ रहा था बरखा को उम्मीद लग रही थी शायद कुछ पानी हो तो उसे मिल सके। पास आया तो देखा वह एक सत्रह-अठारह साल का नौजवान था।
बरखा ने बड़ी उम्मीद से पूछा- क्या थोड़ा पानी कहीं मिल जाएगा? वह बोला बिलकुल मिलेगा जरा यहीं ठहरो, मैं अभी लाया। वह खेत की ओर गया और जहां उसके पानी की बोतल रखी थी उसे उठाया और बरखा की ओर देखा।
बरखा बोली- जल्दी ले आओ। उसने न में सर हिलाया और खाली बोतल को जमीन की ओर पलट दिया। बरखा को उसका मतलब समझ आ चुका था। वह अब और नहीं चल सकती थी। उसे चक्कर आ गया और वह गिर गई। साथ में दो सहेलियां दृश्य देख घबरा गईं। वे खुद भी प्यास से परेशान थीं।
नवयुवक ने बरखा को गिरते देखा तो वह बोतल छोड़ बरखा की ओर भाग खड़ा हुआ। उसने उसे गोदी में उठाकर भागना शुरू किया। उसकी सहेली प्रश्न दाग रही थीं कि कहां लिए जा रहे हो?
नवयुवक बोला- देखो मेरा गांव नजदीक ही है। मैं वहां से अतिशीघ्र पानी का बंदोबस्त करूंगा, जो इसकी प्राणरक्षा के लिए अनिवार्य है।
सहेलियां पीछे दौड़ रही थीं कि तभी एक और युवती गिर गई। अब एक मात्र शेष युवती को देखकर उसने कहा देखो- तुम यहीं रुको और मैं पानी लेकर आता हूं, तब तक इसे देखना।
बरखा की सहेली ने उत्तर दिया अब अधिक मैं भी... कहकर गले पर हाथ फेरने लगी।
वह नवयुवक मंजिल की ओर चल पड़ा। बरखा को पानी के छींटें दिए और कुछ पानी मुंह में डाला तो वह होश में आ गई।
नवयुवक ने पूछा- क्या नाम है तुम्हारा?
वह बोली- बरखा।
नवयुवक ने उसकी तरफ घूरकर कहा- जल्दी से मेरे साथ चलो, नहीं तो तुम्हारी दोनों सहेलियां प्राण ताज देंगी।
बरखा अवाक होकर बोली- क्यों कहां हैं वे दोनों और कैसी हैं?
नवयुवक ने उत्तर दिया- जल्दी साथ आओ। यह कहकर उसने पानी का मग्घा उठाया और तेज गति से चल दिया। बरखा उसके पीछे थी। उसने देखा पेड़ के नीचे उसकी दोनों सहेलियां बेहोश पड़ी हैं जिसमें एक पानी-पानी बुदबुदा रही है। नवयुवक ने उन्हें जल्दी से पानी दिया। दोनों होश में आईं।
बरखा ने उस नवयुवक से पूछा- नाम क्या है? तो उसने कहा- बस यूं समझिए सागर ने बरखा को पानी पिलाया। और यह कहकर वह शांत हो गया। काफी देर वहीं शीतल छाया में चारों बातें करते रहे।
सागर ने कहा- जब बरखा बिना पानी के रहेगी तो क्या होगा?
बरखा ने बात काटते हुए कहा- होगा क्या बरखा सागर से पानी मांग लेगी। दोनों ने एक-दूसरे की तरफ घूरकर देखा। सड़क दूर थी।
सागर ने कहा- अब आप लोगों को अपने घर जाना चाहिए। चलो मैं छोड़ देता हूं।
बरखा ने कहा- छोड़ क्यों दोगे?
सागर ने कहा- क्या मतलब?
बरखा बोली- हम लोग किसी से डरते नहीं हैं।
सागर हंस पड़ा। सड़क अब भी कुछ दूरी पर थी। अपने खेत तक सागर साथ आया। वे तीनों चलने लगीं तो बरखा बोली- चलोगे नहीं?
सागर ने कहा- कहां चलना है?
बरखा ने उत्तर दिया- छोड़ने।
सागर फिर हंसा और साथ चल दिया। सागर ने अपने खेत में देखा कि खेत में काम करने के लिए वह जो कुछ लाया था, वह सब गायब था। बरखा ने जब यह जाना तो खूब हंसी।
बरखा की हंसी सागर के दिल में आकर्षण और प्रेम की लहरों पर तरंग-सी पैदा करने लगी।
सागर बोला- अब तो आपके घर तक चलूंगा।
बरखा बोली- क्यों?
सागर का जवाब था- तुम्हारे घर से गायब चीजों के पैसे लेने हैं।
सब घर पहुंचे। बरखा का घर पहले ही पड़ता था। सब वहीं पहुंचे। बरखा का पूरा घर परेशान था। उसके पिताजी तो ढूंढने को निकलने ही वाले थे। सहेलियों ने सब कथा कह डाली।
बरखा का घर बहुत बड़ा था। धन की कोई कमी न थी। उसके घर में चर्चा छिड़ गई। देखो खेतिहर का इतना नुकसान बहुत है। गरीब आदमी की तो वही संपत्ति।
सागर बोला- नहीं, इसमें गरीबी-अमीरी की कोई बात नहीं।
बरखा की मां बोली- अरे बेटे, मुझे तेरा नुकसान खल गया। बहुत पैसा है, कुछ मांग ही लेता।
आप अमूल्य वस्तु का मूल्य लगा रही हो, खैर। सागर ने सबके बीच में अचानक कहा और फिर कुछ रुककर कहा- अच्छा मेरे चोरी सामान के पैसे दो मैं चलूं।
बरखा चौंक पड़ी। वह खुश्की से अपने चोरी सामान का पैसा लेकर चल दिया। बरखा दरवाजे तक उसे भेजने बाहर आई और बोली- भाई जो तुम्हारा नुकसान हुआ, खेद है।
वह चला गया और बरखा निहारती रह गई। अगले दिन बरखा के बापू उसकी शादी देखने एक पड़ोस के गांव गए। बरखा की सहेलियों ने उससे मजाक शुरू कर दी।
बरखा बोली- देखो वह चित तो चुरा ही ले गया है, बाकी किस्मत में उससे अच्छा तो न आएगा।
सहेलियां भी उसकी पीड़ा समझ गईं। शाम को सूचना मिली कि रिश्ता पक्का हो गया। वो बरखा के घर से दस गुना अमीर है। उनके सामने बरखा के घर की कोई हैसियत नहीं।
गांव में इस शादी की चर्चा फैल गई। दिखाई पक्की हुई। बरखा निर्धारित जगह अपने परिवार और उन्हीं सहेलियों के साथ लड़का देखने पहुंची।
लड़के वाले आ गए और फिर लड़के का प्रवेश हुआ। बरखा सर ऊपर नहीं उठा रही थी। तभी आवाज आई अरे देख तुम भी लो। सहेलियों की यह ठिठौली उसे तनिक न भाई। वह लज्जा के बोझ मारे और झुक गई।
कुछ भी उत्तर वह कैसे दे पाती। शब्द-शब्द पर पहरे जो थे।
तभी सहेली फिर बोली- देखो बरखा को सागर ही तो पानी देता है, यह सुन बरखा क्रोध से लाल हो उठी तमतमाकर उसने सहेलियों को घूरा। देखने आया लड़का चुप्पी तोड़ते हुए बोला- ठीक ही है।
बरखा के कान यह आवाज सुनते ही कौतूहल और हर्ष में डूब उठे। सागर की यह आवाज उसके शरीर में बिजली बनकर कौंध गई। उसने प्रेमी को देखने के लिए अपनी पलकें उठाईं। वह उसके मुंह को देखने की तलब को शांत करने से खुद को रोक न पाई। आह! यही है वही महलों का चितचोर।
विधाता को धन्यवाद देते हुए वह खुद को बोलने से रोक न पाई। शब्दों पर लगे पहरे टूट गए। सामाजिक सारे बंधन उस प्रेम के सामने बौने थे। तुम कब आए? कहकर इधर-उधर देख फिर सकुचा गई।
लज्जा के पहरों ने फिर शब्दों पर बंदिशें लगा दीं। सहेलियों ने जोर से हंस दिया तो बरखा ने उन दोनों का हाथ पकड़कर जोर से दबाया। वे और जोर से हंस पड़ीं।
बरखा की मां के मुंह से कोई शब्द न निकल रहे थे। वह फटी आंखों से देख रही थी। वह सोच रही थी गरीब तो हम हैं दिल से भी और धन से भी। अमीर तो यही है धन से भी और दिल से भी। दिखाई की रस्म पूरी हो चुकी थी। शादी की तारीख पक्की हो गई।
बरखा और उसकी सहेलियां जश्न में डूबी थीं। उसी चितचोर की बातें होतीं। आपस में हंसी-मजाक सबका मुद्दा चितचोर होता। कभी-कभार बरखा नाराज भी हो उठती। अब उसका दिल बेसब्री से इंतजार कर रहा था। बरखा अधूरी और अस्तित्वहीन जो थी सागर के बिना।
जल्द ही वह अपने महलों के चितचोर के साथ जाने वाली थी एक सुखद जीवन की आस में। वह दिन-रात सोचती कितना सुंदर होगा मेरे चितचोर का महल!