प्रस्तुति: डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
'अंग्रेजी नववर्ष नहीं मनेगा... देश का धर्म नहीं बदलेगा...' जुलूस पूरे जोश में था। देखते ही मालूम हो रहा था कि उनका उद्देश्य देशप्रेम और स्वदेशी के प्रति जागरूकता फैलाना है। वहीं से एक राष्ट्रभक्त गुजर रहा था। जुलूस को देखकर वह भी उनके साथ मिलकर नारे लगाते हुए चलने लगा।
'हां! मैं स्कॉच लाऊंगा, चाइनीज और कोल्ड ड्रिंक की जिम्मेदारी तेरी।'
उसे क्रोध आ गया, वह और जोर से नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया और वहां उसे फुसफुसाहट सुनाई दी, 'बेटी नई जींस की रट लगाए हुए है, सोच रहा हूं कि...'
'तो क्या आजकल के बच्चों को ओल्ड फैशन सलवार-कुर्ता पहनाओगे?'
वह हड़बड़ा गया। अब वह सबसे आगे पहुंच गया था, जहां खादी पहने एक हिन्दी विद्यालय के शाकाहारी प्राचार्य जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। वह उनके साथ और अधिक जोश में नारे लगाने लगा।
तभी प्राचार्यजी का फोन बजा। वे 'अंतरराष्ट्रीय स्तर' के फोन पर बात करते हुए कह रहे थे, 'हां हुजूर, सब ठीक है, लेकिन इस बार रुपया नहीं डॉलर चाहिए, बेटे से मिलने अमेरिका जाना है।'
सुनकर वह चुप हो गया। लेकिन उसके मन में नारों की आवाज बंद नहीं हो रही थी। उसने अपनी जेब से बुखार की अंग्रेजी दवाई निकाली। उसे कुछ क्षणों तक देखा, फिर उसके चेहरे पर मजबूरी के भाव आए और उसने फिर से दवाई अपनी जेब में रख दी।