प्रतिद्वंद्वी और पितृदोष

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ताजी सिंकती रोटियों की खुशबू नथुनों में भरकर वह उस काले कुत्ते से रश्क कर रहे थे। किसी के कहने से काले कुत्ते के लिए प्रतिदिन रोटी रखी जाने लगी। जब वह दरवाजे पर आता, खिला देते।

धीरे-धीरे वह काला कुत्ता रोटी की सुगंध उठते ही दरवाजे के बाहर नमूदार हो जाने लगा। 'हाँ-हाँ' सबसे पहले तुझे ही देना होगा।' कुछ ताने, कुछ लाड़ से बहू उसके सामने रोटी डाल देती।

उनकी बहुत इच्छा होती कि तवे से उतरकर आग पर सिंकी कुरकुरी रोटी सीधे उनकी थाली में आ जाए। बहू पूरे जतन से साढ़े नौ बजे के
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पहले उनका पूरा खाना हॉटकेस में पैक कर टेबल पर रख जाती। बहू को परिवार के हर सदस्य की तैयारी के साथ स्वयं के भी समय से दफ्तर पहुँचने की तैयारी करनी पड़ती है।

जब उनकी पत्नी जीवित थी तब बना हुआ खाना गर्म कर देती थी बस। इससे अधिक वह भी कुछ न कर पाती। समय की नजाकत को देखकर वह मन मारकर चुप रहते। पर जब से यह काला कुत्ता पितृदोष से परिवार को बचाने आने लगा है, उन्हें वह अपना प्रतिद्वंद्वी लगने लगा है।