हैरान-परेशान नमिता मुंबई स्टेशन पर बदहवास-सी खड़ी थी।
इंदौर से मुंबई अपने काकाजी की बेटी की शादी में हफ्ताभर पहले आने की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी। रात तक तो सब ठीक था। सुबह 6 बजे के करीब बोरीवली में नींद खुलते ही पाया कि दोनों बैग गायब हैं।
पतिदेव ने बैठाते समय चेताया भी था। काकाजी पुलिस स्टेशन जा चुके थे तथा अपने संपर्क से जुगाड़ बिठा रहे थे।
'किसी पर शक है?' के जवाब में नमिता रुलाई रोकते हुए सोच रही थी, सहयात्रियों में से कौन हो सकता है? सूरत में उतरने वाले भाई-बहन? नहीं-नहीं..., वो मराठी मां-बेटी, वो भी नहीं, वो अकेला युवक? न... न... वो तो शक्ल से ही खानदानी लग रहा था। तो फिर वो पान चबाते, बोरीवली में उतरने वाले पति-पत्नी में से पति ही उसे चोर लग रहा था।
कमबख्त! शक्ल-सूरत से ही किसी 'भाई' का आदमी लग रहा था। वो अभी सोच ही रही थी कि इंस्पेक्टर की आवाज से चौंकी। वो काकाजी के साथ उसी के पास आ रहा था, 'ये देखिए मैडम! ये बैग्स हैं क्या?'
'हां... हां...!' खुशी के अतिरेक से चीखी, 'थैंक गॉड! कहां मिले? कैसे? किसने चुराए? वो पान चबाते शातिर पति-पत्नी ही होंगे। डेफीनेटली।'
'नहीं मैडम! चोर ये है', कहते हुए इंस्पेक्टर उसके सहयात्री युवक के साथ दरवाजे पर खड़ा था।
'ये?... लेकिन... ये... कैसे... हो सकता है?' नमिता हकलाई, 'ये... तो... बड़ा... जेंटल... मैन है।'
'ये आप कैसे कह सकती हैं मैडम?' इंस्पेक्टर हैरान हुआ, 'क्या आप इसे पहले से जानती हैं? हाऊ डू यू नो?' मेरी चुप्पी पर उसने फिर पूछा।
'वो... दरअसल...' नमिता फिर हकलाई, 'वो... दरअसल... ये बड़ी... फर्राटे... दार अंग्रेजी... बोल... रहा... था... किसी... जेंटलमैन की तरह... इसीलिए...।'