शायद आप नहीं जानते होंगे कौन थे भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु...

* भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु जानिए कौन थे (अर्थसहित) 
 
प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह में भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं, इसीलिए उन्हें 'परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु' और 'श्रीगुरुदेवदत्त' भी कहा जाता हैं। भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए। 
 
वे कहते थे कि जिस किसी से भी जितना सीखने को मिले, हमें अवश्य ही उन्हें सीखने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। उनके 24 गुरुओं में कबूतर, पृथ्वी, सूर्य, पिंगला, वायु, मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, अग्नि, चंद्रमा, कुमारी कन्या, सर्प, तीर (बाण) बनाने वाला, मकडी़, भृंगी, अजगर और भौंरा (भ्रमर) हैं। आइए जानत‍े हैं कौन हैं भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु :-  
 
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु और उनके अर्थ 
 
सूर्य- भगवान दत्तात्रेय ने सूर्य से सीखा कि जिस तरह एक होने पर भी अलग-अलग माध्यमों से सूर्य अलग-अलग दिखाई देता है, वैसे ही आत्मा भी एक ही है, लेकिन वह कई रूपों में हमें दिखाई देती है।
 
पृथ्वी- पृथ्वी से हम सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। कई लोग पृथ्वी पर अनेक प्रकार के आघात करते हैं, उत्पात एवं खनन के कार्य करते हैं, लेकिन पृथ्वी माता हर आघात को परोपकार की भावना से सहन करती है।
 
पिंगला- दत्तात्रेयजी ने पिंगला नाम की वेश्या से यह सबक लिया कि हमें केवल पैसों के लिए नहीं जीना चाहिए। जब वह वेश्या धन की कामना में सो नहीं पाती थी, तब एक दिन उसके मन में वैराग्य जागा और उसे समझ में आया कि असली सुख पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में है, तब कहीं उसे सुख की नींद आई।
 
कबूतर- दत्त भगवान ने यह भी जाना कि जब कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है, तो इससे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख की वजह बनता है।
 
वायु- दत्तात्रेय के अनुसार जिस प्रकार कहीं भी अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद भी वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है, उसी प्रकार हमें अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी अपनी अच्छाइयों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
 
मृग- मृग अपनी मौज-मस्ती, उछल-कूद में इतना ज्यादा खो जाता है कि उसे अपने आसपास अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे जीवन में यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में ज्यादा लापरवाह नहीं होना चाहिए।
 
समुद्र- जैसे समुद्र के पानी की लहर निरंतर गतिशील रहती है, वैसे ही जीवन के उतार-चढ़ाव में हमें भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।
 
पतंगा- जैसे पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है, उसी प्रकार रंग-रूप के आकर्षण और झूठे मोहजाल में हमें उलझना नहीं चाहिए। 
 
हाथी- जैसे कोई हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है, अत: हाथी से सीखा जा सकता है कि तपस्वी पुरुष और संन्यासी को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।
 
आकाश- भगवान दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, परिस्थिति तथा काल में लगाव से दूर रहना चाहिए।
 
जल- भगवान दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।
 
मधुमक्खी- जब मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती हैं और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला आकर सारा शहद ले जाता है, तो हमें इस बात से यह सीखना चाहिए कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।
 
मछली- जिस प्रकार मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अपने प्राण गंवा देती है, वैसे ही हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। हमें ऐसा ही भोजन करना चाहिए, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा हो। 
 
कुरर पक्षी- जिस प्रकार कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है और जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को उससे छीन लेते हैं, तब मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है। उसी तरह हमें कुरर पक्षी से यह सीखना चाहिए कि ज्यादा चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। 
 
बालक- जैसे छोटे बच्चे हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न दिखाई देते हैं, वैसे ही हमें भी हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।
 
आग- दत्तात्रेयजी ने आग से सीखा कि जीवन में कैसे भी हालात हो, हमारा उन हालातों में ढल जाना ही उचित है। 
 
चन्द्रमा- हमारी आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे चंद्रमा के घटने या बढ़ने से उसकी चमक और शीतलता नहीं बदलती, हमेशा एक जैसी रहती है, वैसे आत्मा भी किसी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है।
 
कुमारी कन्या- भगवान दत्तात्रेय ने एक बार एक कुमारी कन्या देखी, जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। बाहर मेहमान बैठे थे जिन्हें चूड़ियों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़िया ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। उसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया अत: हमें भी एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। 
 
तीर बनाने वाला- दत्तात्रेय ने एक ऐसा तीर बनाने वाला देखा, जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ। अत: हमें अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। 
 
सांप- भगवान दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। कभी भी एक ही स्थान पर न रुकते हुए जगह-जगह जाकर ज्ञान बांटते रहना चाहिए।
 
मकड़ी- दत्तात्रेय ने मकड़ी से सीखा कि भगवान भी मायाजाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है। ठीक इसी तरह भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।
 
भृंगी कीड़ा- दत्तात्रेय ने इस कीड़े से सीखा कि अच्छी हो या बुरी, हम जहां जैसी सोच में अपना मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है।
 
भौंरा- भगवान दत्तात्रेय ने भौंरे से सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले, उसे तत्काल ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौंरे अलग-अलग फूलों से पराग ले लेता है।
 
अजगर- भगवान दत्तात्रेय ने अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए और जो मिल जाए, उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना ही हमारा धर्म होना चाहिए।

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