इसी कारण राजिम भक्तिन माता जयंती 7 जनवरी को राजिम भक्तिन माता की याद में मनाई जाती है। छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर माता की पूजा करते हैं। राजिवलोचन मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार कलचुरी राजा जगपाल देव के शिलालेख में माता का उल्लेख मिलता है। 3 जनवरी 1145 को शिलालेख लगाया गया था। कहते हैं कि यहां साहू समाज के लोग एकत्र होते हैं।
एक स्थानीय दंतकथा के अनुसार इस स्थान का नाम 'राजिव' या 'राजिम' नामक एक तैलिक स्त्री के नाम से हुआ था। कुलेश्वर मंदिर के भीतर 'सतीचैरा' है, जिसका संबंध इसी स्त्री से हो सकता है। यहां भगवान रामचंद्र और कुलेश्वर महादेव के मंदिर के अलावा जगन्नाथ मन्दिर, भक्तमाता राजिम मन्दिर और सोमेश्वर महादेव मन्दिर भी है।
इस स्थान का नाम राजिम तेलिन के नाम पर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां के तैलिय वंश लोग तिलहन की खेती करते थे। इन्हीं तैलिन लोगों में एक धर्मदास भी था जिसकी पत्नी का नाम शांतिदेवी था। दोनों विष्णु के भक्त थे और उनकी बेटी का नाम राजिम था। राजिम का विवाह अमरदास नामक व्यक्ति से हुआ। राजिम भी विष्णु की भक्त थी जो मूर्ति विहीन राजीवलोचन मंदिर में जाकर पूजा करती थी। राजिम की भक्ति, त्याग और तपस्या के चलते ही वह संपूर्ण क्षेत्र में माता की तरह प्रसिद्ध हो गई। भगवान के प्रति अपार सेवाभाव रखने व पुण्य-प्रताप के कारण ही आज पूरे देश में राजिम भक्तिन माता की अलग पहचान है और संपूर्ण क्षेत्र को ही राजिम कहा जाता है।
राजिम का मेला : राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु इस मेले में जुटते हैं। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। इसे राजिम कुंभ मेला भी कहते हैं। महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। हालांकि अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेला कहा जाता है।