पुराण क्या है, जानिए महत्व

पुराण भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। कोई भी व्यक्ति इस कथन की सत्यता से इंकार नहीं कर सकता। इसके कारण हैं। वेदों ने भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। वेदों में निहित बीज-सूत्रों ने उपनिषदों की चिंतन धारा को उद्गम दिया जिससे भारतीय दर्शन की सुरसरि प्रवाहित हुई। किंतु इनसे भारतीय दर्शन, भारतीय चिंतन तथा भारतीय आध्यात्मिक विचार प्रणाली ही निर्मित हुई। भारतीय जीवन को जीवन-रस, जीवनशैली, जीवन-व्यवहार, जीवन की धड़कन तथा लोक-व्यवहार और लोक-जीवन का व्यवस्थित स्वरूप दिया पुराणों ने।
 
भारतीय पुराण साहित्य विशाल है, विस्तृत है, गहन है। उसे सचमुच ही जीवन व्यवहार-सिंधु की उपमा दी जा सकती है। जीवन-व्यवहार के अनंत क्रिया-कलापों, घटनाओं, कर्तव्यों-अकर्तव्यों तथा कार्य-विधियों, कार्य-प्रणालियों में ऐसा कोई भी पक्ष या पहलू नहीं बचा है, जो पुराणकारों की नजरों से ओझल हुआ हो या जिस पर उनकी लेखनी ने प्रकाश न दिया हो। यह प्रकाश उन्होंने दिया है व्याख्याओं या विवेचनाओं के रूप में, प्रश्नों और उत्तरों के रूप में, कथाओं या
 
वार्ताओं के रूप में, आख्यानों, उपाख्यानों या दृष्टांतों के रूप में। अब यह सब भारत के लोक-जीवन में इस प्रकार रच-बस गया है कि इन सबका प्रात्यक्षिक रूप ‍दैनिक जीवन व्यवहार में देखकर जब पुराणों को पढ़ते समय इनके सैद्धांतिक रूप की वहां पहले से ही उपस्‍थिति से साक्षात्कार होता है तो मन चमत्कृत हो जाता है और लोक-जीवन की हर धड़कन में इनकी गहरी पैठ देखकर मन आश्चर्यचकित, रोमांचित और गदगद हुए बिना नहीं रहता। दीर्घकाल से व्यवहार में घिसते-घिसते निश्चय ही बहुत सी चिंतन धाराओं का स्वरूप मुड़-तुड़कर अपना मूल स्वरूप खो चुका है फिर भी यह बात समझने में देर नहीं लगती कि इनकी जड़ें पुराणों में हैं। ऊपर कहा जा चुका है कि पुराण साहित्य अत्यंत विशाल, विस्तृत व गहन है। अत: कोई भी जिज्ञासु अपने किसी भी प्रश्न या शंका का उत्तर पुराणों के विश्वकोष में खोज सकता है। हां, यह सही है कि वह उत्तर पुराणकारों की तत्कालीन चिंतन धाराओं और चिंतन स्तरों के अनुकूल ही होगा। बाद में चिंतकों द्वारा किए गए संशोधनों के प्रभाव दिखाई देंगे ही।
 
पुराणों की विषयवस्तु
 
पुराणों में गाथाएं हैं, कथाएं हैं। सृष्टि की रचना और प्रलय की प्रक्रिया के संबंध में कल्पना की अद्भुत उड़ानें हैं। जीवन के प्रेय व श्रेय, कर्म-अकर्म, धर्म-अधर्म, बंधन-मोक्ष, लोक-परलोक, सुमार्ग-कुमार्ग और स्वर्ग-नरक के विश्लेषणात्मक विवरण हैं। प्रवृत्ति-निवृत्ति (कर्म-संन्यास), विधि-निषेध, यम-नियम के विस्तृत विवेचन हैं और विभिन्न अवतारों, देवताओं, तीर्थों, पहाड़ों, पर्वों व अनुष्ठानों की आवश्यकताओं और माहात्म्य के अर्थपूर्ण विवरण हैं। सम्राटों व राजाओं के वंशों व कार्यों, उनके उत्थान-पतन, उनकी उपलब्धियों व भूलों की अर्थगर्भित कहानियां हैं तथा भूगोल, खगोल, ज्योतिष, सामुद्रिक, स्थापत्य, व्याकरण, छंद विज्ञान, आयुर्वेद, प्रेत-कल्प, अध्यात्म, ब्रह्मविद्या आदि अनेकानेक विषयों के अवलोकन, चिंतन व कल्पना पर आधारित अद्भुत विवरण हैं।
 
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पुराण भारतीय जीवनशैली के आधार हैं...
 
पुराण कोष ज्ञान के, कथाओं के, सीखों के,
पुराण विविध विद्याओं के विशद आगार हैं।
 
पुराण झरोखे हैं अमर भारतीय संस्कृति के,
पुराण दिव्य गाथाओं के अनोखे भंडार हैं।
 
पुराण दिग्दर्श हैं विविध विधि-विधानों के,
पुराण सभी वेदों के, उपनिषदों के सार हैं।
 
पुराण व्यावहारिक निचोड़ हैं ऋषि चिंतन के,
पुराण भारतीय जीवनशैली के आधार हैं।


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