भोजन के तीन प्रकार होते हैं- 1.सात्विक 2.राजसिक और 3. तामसिक। जिस भोजन को करने से मुंह से दुर्गंध आती हो वह भोजन तामसिक ही माना जाता है। लहसुन और प्याज को राजसिक और तामसिक भोजन में शामिल किया गया है, जो आपके भीतर रक्त के प्रभाव को बढ़ाने या घटाने की क्षमता रखते हैं। इसलिए इसे वे लोग नहीं खाते हैं जो धर्म के मार्ग पर चलकर ध्यान, तप, योग या व्रत कर रहे हैं। श्रीमद् भगवद्गीता में 17वें अध्याय में भी कहा गया है व्यक्ति जैसा भोजन खाता है, वैसी अपनी प्रकृति (शरीर) का निर्माण करता है।
प्याज पर पौराणिक मान्यता : भगवान विष्णु द्वारा राहु और केतू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिरों से अमृत की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं, जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। यह दोनों खाद्य पदार्थ अमृत की बूंदों से उपजे हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान भी हैं और यह राक्षसों के मुख से होकर गिरे हैं इसलिए इनमें तेज गंध है और ये अपवित्र भी हैं। इसका औषधि और मसालों के रूप में सेवन अमृत के समान है परंतु इसका अति सेवक करना तामसिक गुणों को विकसित करना है। अत: कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मजबूत तो हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं।
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