मंगल का जन्मस्थान उज्जैन या अमलनेर? जानिए क्या कहते हैं पौराणिक तथ्य
मंगलवार, 3 जनवरी 2023 (07:39 IST)
Mangal dev mandir ujjain: धरती माता के पुत्र मंगलदेव का जन्म कहां हुआ था? मध्यप्रदेश के उज्जैन में मंगलनाथ नामक स्थान पर या कि महाराष्ट्र के जलगांव के पास स्थित अमलनेर में, जहां श्री मंगल देव का प्राचीन और पवित्र स्थान है? आखिर क्या है पौराणिक और लोक मान्यता? कहां जन्म हुआ मंगल का? अमलनेर या उज्जैन? जानिए विशेष पड़ताल।
मंगल देव का परिचय | Introduction to Mangal Dev: पुराणों में मंगल देव को भूमि का पुत्र माना गया है। भूमिदेवी को वराह देव की पत्नि माना गया है। मंगलदेव को शिव का अंश माना गया है। कई जगह पर मंगलदेव को ब्रह्मचारी माना गया है लेकिन कुछ जगह पर उनकी संगिनी ज्वालिनी देवी को माना है। मंगल देव का वाहन भेड़ है और वे हाथों में त्रिशूल, गदा, पद्म और भाला या शूल धारण किए हुए हैं। मंगल देवता, देवों के सेनापति हैं।
मंगल ग्रह और देवता | Mangal Grah and Dev: मंगल देव मंगल ग्रह और युद्ध के देवता हैं। मंगल देव का रंग लाल है। मंगल ग्रह का भी रंग लाल होने के कारण उसे अंगारक भी कहते हैं। मंगल देव की प्रकृति तमस गुण वाली है। मंगल साहस, आत्मविश्वास और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंगल ग्रह या मंगलदेव का वार मंगलवार है। मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। दसवें भाव में यानी मकर में मंगल उच्च का होता है और सिंह में नीच का।
मंगलदेव मंदिर, अमलनेर | Mangal Dev Mandir Amalner : ब्रह्मवैवर्त पुराण में मंगल देव की कथा विस्तार से मिलती है। अमलनेर में श्री मंगल देवता के स्थान को प्राचीन और जागृत स्थान माना जाता है। यहां पर मांगलिक दोष से मुक्ति, रोग मुक्ति और जीवन में सफलता हेतु हर मंगलवार को हजारों भक्त अभिषेक कराने आते हैं। माना जाता है कि यहां स्थित मंदिर का पहली बार 1933 में जीर्णोद्धार हुआ था। हालांकि यहां पर मूर्ति की स्थापना कब और किसने की इस बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिलती है। 1999 में इस जगह को पूर्ण रूप से साफ और स्वच्छ करके एक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया गया।
यहां पर मंगल देवी की मूर्ति उन्हीं के पौराणिक रूप में विद्यमान हैं। यह देश दुनिया की एकमात्र ऐसी मूर्ति है जो मंगलदेव के स्वरूप में हैं। यहां पर 'भूमाता' और 'पंचमुखी हनुमान' मंदिर भी है। विश्व का पहला भूमाता मंदिर यहीं पर स्थित होना माना जाता है। भूदेवी यानी भूमाता का संबंध दक्षिण भारत से अधिकतर माना जाता है। श्री भूवराहनाथ स्वामी मंदिर कर्नाटक में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। वराह अवतार का संबंध भी दक्षिण भारत से ज्यादा रहा है। उनके भी प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर उधर ही है। इस आधार पर यह भी माना जा सकता है कि मंगलदेव का उत्पत्ति स्थान भी दक्षिण में ही हो सकता है। अमलनेर या अमळनेर एक प्राचीन स्थान माना जाता है। अमलनेर के पास ताप्ती नदी के किनारे सारंगखेड़ा नामक एक स्थान है जहां पर पांडव अपने वनवास के दौरान रुके थे।
श्री मंगलनाथ मंदिर, उज्जैन | Mangal Dev Mandir Ujjain : मत्स्य पुराण में मंगल ग्रह को भूमि पुत्र कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसे मंगल ग्रह की जन्मभूमि माना गया है। मंगल ग्रह की शांति, शिव कृपा, ऋणमुक्ति तथा धन प्राप्ति हेतु श्री मंगलनाथजी की महादेव के रूप में प्राय: उपासना की जाती है। यहां पर मंगलशांति हेतु भात-पूजा तथा रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है। हालांकि यहां पर मंगलदेव की पूजा शिवलिंग और महादेव के रूप में की जाती है। यहां पर मंगलदेव की पूजा और अभिषेक उस तरह नहीं होता है जिस तरह अमलनेर में होता है। इस एक तर्क के आधार पर यह भी माना जाता है कि मंगलदेव की उत्पत्ति का स्थान संभवत: अमलनेर में हो?
कैसे पहुंचे श्री मंगल देव मंदिर अमलनेर महाराष्ट्र | how to reach shri mangal dev graha mandir amalner maharashtra:
- पुणे और मुंबई से अमलनेर की दूरी | Distance of Amalner from Pune and Mumba: अमलनेर पुणे से लगभग 451 किलोमीटर दूर है। मुंबई से यह जगह करीब 492 किलोमीटर दूर है। यहां के लिए ट्रेन और बस दोनों ही साधन उपलब्ध है।
- जलगांव से अमलनेर की दूरी | jalgaon to amalner distance: यहां पहुंचने के लिए आप महाराष्ट्र के जलगांव पहुंचे। अमलनेर जलगांव जिले में ही स्थित एक गांव है। अमलनेर जलगांव से 58.1 किमी दूर है।
- धुले से अमलनेर की दूरी | dhule to amalner distance: आप यहां जाना चाहते हैं तो धुले नामक शहर पहुंचकर भी यहां से सड़क मार्ग से जा सकते हैं। धुले अमलनेर 36.4 किलोमीटर की दूरी पर है।
- अमलनेर से मंगलदेव मंदिर की दूरी | amalner to mangal dev mandir distance: अमलनेर गांव से श्री मंगल ग्रह के लिए मंदिर रास्ता करीब 2.5 किलोमीटर दूर का है। मंदिर तक के लिए कई वाहन उपलब्ध हैं।
पूरा पता है- मंगल ग्रह मंदिर, चौपड़ा रोड़, धनगर गली, अमलनेर, जिला जलगांव, महाराष्ट्र-425401 | Mangal Grah Mandir, Chopra Rd, Dhangar Galli, Amalner, Maharashtra 425401
मंगल उत्पत्ति की पौराणिक कथा | Mythology of Mars Origin:
1. पहली कथा : ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया। भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की। पृथ्वी सकाम रूप में आकर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे। पृथ्वी के मनोहर आकर्षक रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की। इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है। देवी भागवत में भी इसी कथा का वर्णन है। इस कथा के मुख्य स्थान को अमलनेर से जोड़कर देखा जाता है।
2. दूसरी कथा : मंगल ग्रह की उत्पत्ति का एक पौराणिक वृत्तांत स्कंदपुराण के अवंतिका खण्ड में मिलता है। एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था। उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था। एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युद्ध कर उसे मार गिराया। उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गए। इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन कर अपनी अवस्था उन्हें बताई और रक्षा की प्रार्थना की, भगवन! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिए। इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ।
अंगारक, रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामों से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है। मत्स्य पुराण में लिखा है कि 'अवन्त्यांच कुजोजातों मगधेच हिमाशुन:'। तथा संकल्प में अवन्तिनदेशोतभव भो भोम'