जानिए कैसे मंगोल शासक अल्तान खान की वजह से शुरू हुई थी लामा परंपरा? क्या है दलाई लामा का इतिहास

WD Feature Desk

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 (15:44 IST)
Dalai Lama history: जब भी हम 'दलाई लामा' का नाम सुनते हैं, तो हमारे मन में तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता की छवि उभर आती है। पिछले दिनों अगले दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर काफी चर्चाएं हुईं। एक तरफ जहां दलाई लामा ने उनके उत्तराधिकारी को लेकर अपनी बात स्पष्ट कर दी है वहीं चीन भी अपनी ओर से अगले 'दलाई लामा' को नियुक्त करने की बात कह रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस प्रतिष्ठित उपाधि और लामा परंपरा की नींव कैसे पड़ी? इसके पीछे एक रोचक इतिहास छिपा है, जो मंगोल शासक अल्तान खान से जुड़ा है। आइए, गहराई से जानते हैं क्या है दलाई लामा का इतिहास, दलाई लामा का अर्थ और इस परंपरा की शुरुआत की कहानी।

अल्तान खान: वह मंगोल सरदार जिसने बदली तिब्बत की तकदीर
बात 16वीं शताब्दी की है। तिब्बत में विभिन्न बौद्ध संप्रदायों के बीच वर्चस्व की होड़ लगी हुई थी। ऐसे में, मंगोलिया के शक्तिशाली सरदार अल्तान खान (जन्म 1507 – मृत्यु 1582) ने तिब्बत की ओर रुख किया। अल्तान खान कोई साधारण शासक नहीं था; वह चंगेज़ खान के प्रत्यक्ष वंशज थे और मंगोल साम्राज्य को पुनर्जीवित करने का सपना देखते थे। राजनीतिक और सैन्य प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से, अल्तान खान ने बौद्ध धर्म को एक एकीकृत शक्ति के रूप में देखा।

1578 में, अल्तान खान ने तिब्बत के प्रभावशाली गेलुगपा संप्रदाय के एक विद्वान और नेता सोनम ग्यात्सो को अपने दरबार में आमंत्रित किया। सोनम ग्यात्सो अपनी विद्वत्ता और आध्यात्मिक शक्ति के लिए जाने जाते थे। अल्तान खान उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने सोनम ग्यात्सो को एक विशेष उपाधि से नवाजा।

'दलाई लामा' का उद्भव और इसका अर्थ
यह 1580 की बात है जब मंगोल सरदार अल्तान खान की ओर से तीसरे दलाई लामा, सोनम ग्यात्सो को पहली बार 'दलाई लामा' की उपाधि दी गई थी। 'दलाई' एक मंगोलियाई शब्द है जिसका अर्थ है 'महासागर' या 'विशाल'। 'लामा' तिब्बती शब्द है जिसका अर्थ है 'गुरु'। इस प्रकार, 'दलाई लामा' का शाब्दिक अर्थ है 'महासागर के समान गुरु' या 'ज्ञान का विशाल सागर रखने वाले गुरु'। यह उपाधि सोनम ग्यात्सो की ज्ञान की गहराई और आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाती थी। अल्तान खान ने इस उपाधि के माध्यम से गेलुगपा संप्रदाय के प्रमुख के रूप में सोनम ग्यात्सो की स्थिति को मजबूत किया, और बदले में सोनम ग्यात्सो ने अल्तान खान को धर्म के संरक्षक के रूप में मान्यता दी।
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प्रथम दलाई लामा: गेदुन त्रुप्पा को मरणोपरांत मिली मान्यता
हालांकि सोनम ग्यात्सो को यह उपाधि सबसे पहले मिली थी, लेकिन उन्हें तीसरा दलाई लामा माना गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बाद में, उनकी आध्यात्मिक वंशावली को पीछे की ओर खोजा गया। गेदुन त्रुप्पा (जन्म 1391), जो गेलुगपा संप्रदाय के संस्थापक ज़ोंगकापा के मुख्य शिष्य थे, को बहुत बाद में (मरणोपरांत) प्रथम दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई। उनके शिष्य गेदुन ग्यात्सो को दूसरा दलाई लामा माना गया, और इस तरह सोनम ग्यात्सो तीसरे दलाई लामा बने। यह दलाई लामा की पुनर्जन्म परंपरा का एक अभिन्न अंग बन गया।

चखोरग्याल मठ की स्थापना और लामा परंपरा का विस्तार
इस ऐतिहासिक मुलाकात के बाद, बौद्ध धर्म मंगोलिया में तेजी से फैला। अल्तान खान ने बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म घोषित किया और तिब्बती लामाओं को मंगोलिया आमंत्रित किया। इस दौरान, बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए कई महत्वपूर्ण मठों की स्थापना हुई। हालाँकि, चखोरग्याल मठ का सीधा संबंध अल्तान खान द्वारा दलाई लामा उपाधि दिए जाने से नहीं है, यह मठ तिब्बत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसका संबंध दलाई लामाओं की पहचान और भविष्यवाणी से रहा है।

संक्षेप में, अल्तान खान का सोनम ग्यात्सो को 'दलाई लामा' की उपाधि देना केवल एक उपाधि का प्रदान करना नहीं था, बल्कि यह एक ऐसा क्षण था जिसने तिब्बत और मंगोलिया के बीच संबंधों को हमेशा के लिए बदल दिया और दलाई लामा संस्था की नींव रखी, जो आज भी तिब्बती बौद्ध धर्म के केंद्र में है। यह दिखाता है कि कैसे एक राजनीतिक और सैन्य कदम ने एक महान आध्यात्मिक परंपरा को जन्म दिया।


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