श्रीलंका का क्या है भारत से कनेक्शन, जानिए 10 खास बातें

अनिरुद्ध जोशी
सोमवार, 18 जुलाई 2022 (18:29 IST)
भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर में भारत से ही लगा हुआ एक द्वीप है जिसका नाम श्रीलंका है। लंका की दूरी भारत से मात्र 32 किलोमीटर है। 1972 तक इसका नाम सीलोन था, जिसे बदलकर लंका तथा 1978 में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द श्री जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। आखिर इस भूमि का क्या है भारत से कनेक्शन?
 
 
1. शिव की लंका : हिन्दू पौराणिक इतिहास अनुसार श्रीलंका को भगवान शिव ने बसाया था। शिव की आज्ञा से विश्वकर्मा ने यहां सोने का एक महल पार्वती जी के लिए बनवाया था। ऋषि विश्रवा ने शिव के भोलेपन का लाभ उठाकर उनसे लंकापुरी दान में मांग ली। तब पार्वती ने श्राप दिया कि महादेव का ही अंश एक दिन उस महल को जलाकर कोयला कर देगा और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरंभ हो जाएगा। विश्रवा से वह लंकापुरी अपने पुत्र कुबेर को मिली लेकिन रावण ने कुबेर को निकालकर लंका को हड़प लिया। शाप के कारण शिव के अवतार हनुमान जी ने लंका जलाई और विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण के कुल का विनाश हुआ। श्रीराम की शरण में होने से विभीषण बच गए।
 
 
2. शिव के पदचिन्ह : श्रीलंका में एक पर्वत है जिसे श्रीपद चोटी भी कहा जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान इसका नाम उन्होंने एडम पीक रख दिया था। हालांकि इस एडम पीक का पुराना नाम रतन द्वीप पहाड़ है। इस पहाड़ पर एक मंदिर बना है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यहां देवों के देव महादेव शंकर के पैरों के निशान हैं इसलिए इस स्थान को सिवानोलीपदम (शिव का प्रकाश) भी कहा जाता है। यह पदचिन्ह 5 फिट 7 इंच लंबे और 2 फिट 6 इंच चौड़ें हैं। यहां 2,224 मीटर की ऊंचाई पर स्‍थित इस 'श्रीपद' के दर्शन के लिए लाखों भक्त और सैलानी आते हैं। ईसाइयों ने इसके महत्व को समझते हुए यह प्रचारित कर दिया कि ये संत थॉमस के पैरों के चिह्न हैं। बौद्ध संप्रदाय के लोगों के अनुसार ये पद चिह्न गौतम बुद्ध के हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोगों के अनुसार पद चिह्न हजरत आदम के हैं। इस पहाड़ के बारे में कहा जाता है कि यह पहाड़ ही वह पहाड़ है, जो द्रोणागिरि का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे। श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में एक बहुत रोमांचित करने वाले इस पहाड़ को श्रीलंकाई लोग रहुमाशाला कांडा कहते हैं।
 
 
3. बौद्ध धर्म का प्रचार : हिन्दू सम्राट अशोक (269-232 ईसापूर्व) ने कई वर्षों की लड़ाई के बाद बौद्ध धर्म अपनाने के बाद युद्ध का बहिष्कार किया और शिकार करने पर पाबंदी लगाई। बौद्ध धर्म का तीसरा अधिवेशन अशोक के राज्यकाल के 17वें साल में संपन्न हुआ। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महिंद और पुत्री संघमित्रा को धर्मप्रचार के लिए श्रीलंका भेजा। इनके द्वारा श्रीलंका के राजा देवनामपिया तीस्सा ने बौद्ध धर्म अपनाया और वहां 'महाविहार' नामक बौद्ध मठ की स्थापना की। यह देश आधुनिक युग में भी थेरावदा बौद्ध धर्म का गढ़ है। श्रीलंका में हिन्दू और बौद्ध धर्म की जड़ें एक ही होने के कारण यहां हिन्दू और बौद्ध मिलजुल कर ही रहते थे लेकिन अंग्रेज काल में इन दोनों में फूट डालकर यहां का सामाजिक तानाबाना बिगाड़ दिया गया। कुमार दास (512-21ई.) लंका के राजा थे। इससे पहले 700 ईसापूर्व श्रीलंका में 'मलेराज की कथा' की कथा सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही, जो राम के जीवन से जुड़ी है।
4. तमिल और सिंहली दोनों भारतीय : भारत के दक्षिण में स्थित श्रीलंका में बड़ी संख्या में हिन्दू रहते थे। हालांकि अब यहां की जनसंख्या का करीब 12.60 प्रतिशत हिस्सा हिन्दुओं का है। एक डीएनए शोध के अनुसार श्रीलंका में रह रहे सिंहल जाति के लोगों का संबंध उत्तर भारतीय लोगों से है। सिंहल भाषा गुजराती और सिंधी भाषा से जुड़ी हुई है। श्री लंका का पिछले 3000 वर्ष का लिखित इतिहास उपलब्ध है। 125,000 वर्ष पूर्व यहां मानव बस्तियां होने के प्रमाण मिले हैं। 29 ईसा पूर्व में चतुर्थ बौद्ध संगीति के समय रचित बौद्ध ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं।
 
5. तमिल और सिंहली की सांझा संस्कृति : श्रीलंका में हिंदू और बौद्ध धर्म की साझा परंपरा और संस्कृति रही है। लेकिन इसे पुर्तगाली और अंग्रेज काल में खंडित कर दिया गया। लगभग 2000 से अधिक वर्षों की सभ्यता में श्रीलंका में हिंदू और बौद्धों में कभी विवाद नहीं रहा। श्रीलंकाई में हिंदू धर्म के शैव मत का प्रचलन रहा है। श्रीलंका को शिव के पांच निवास स्थानों का घर माना जाता है। मुरुगन अर्थात शिव के पुत्र कार्तिकेय यहां के सबसे लोकप्रिय हिंदू देवताओं में से एक हैं। इनकी पूजा न केवल तमिल हिंदू करते हैं बल्कि बौद्ध सिंहली और आदिवासी भी करते हैं। यहां कई ऐसे मंदिर हैं जो हिन्दू और बौद्धों की साझा संस्कृति को दर्शाते हैं।
 
 
6. तमिल और सिंहली के बीच फूट डाली : अंग्रेज काल में अंग्रेजों ने 'फूट डालो राज करो' की नीति के तहत तमिल और सिंहलियों के बीच सांप्रदायिक एकता को बिगाड़ा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। जब श्रीलंका आजाद हुआ तो सत्ता सिंहलियों के हाथ में देकर चले गए और तमिलों को हाशिए पर धकेल गए। लेकिन सिंहली यह नहीं जानते थे कि अंग्रेज और मुस्लिम सल्तनतें श्रीलंका को अशांत देखना चाहती थी। योजनाबद्ध तरीके से सिंहलियों के मन में तमिल हिन्दुओं के प्रति नफरत क्यों भरी गई?
 
 
7. मुस्लिम और ईसाई : श्रीलंका पर पहले पुर्तगालियों, फिर डच लोगों ने अधिकार कर शासन किया 1800 ईस्वी के प्रारंभ में अंग्रेजों ने इस पर आधिपत्य जमाना शुरू किया और 1818 में इसे अपने पूर्ण अधिकार में ले लिया। अंग्रेज काल में यहां जहां मिशनरियों को फलने-फूलने का मौका मिला वहीं, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव आदि जगहों से यहां पर तमिल क्षेत्र में मुसलमानों की बसाहट शुरू हो गई और धीरे-धीरे मस्जिदें, मदरसों की संख्या बढ़ती गई। आज तमिल क्षेत्र में हालात खराब हो चुके हैं।
 
 
8. तमिलों का विद्रोह : बहुत काल तक खुद को अगल थलग किए जाने के कारण तमिलों में असंतोष फैलने लगा। मई 1976 में प्रभारण ने लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (लिट्टे) का गठन किया गया और तमिलों के लिए अलग राष्ट्र की मांग की जाने लगी। हजारों निर्दोष सिंहलियों, उच्च पदों पर आसीन श्रीलंकाई नेताओं और भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का दोषी है लिट्टे। लेकिन बाद में सन 2009 में भारत में मनमोहन सिंह की सरकार के सहयोग से तमिल विद्रोहियों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया गया। 19 मई 2009 को प्रभाकरण को भी मार गिराया। इस अभियान में हजारों निर्दोष तमिलों की हत्या कर दी गई। श्रीलंकाई सेना द्वारा बर्बर तरीके से तमिलों की हत्या किए जाने के दौरान हजारों तमिल हिंदुओं ने भागकर भारत के तमिलनाडु में शरण ली, जो आज भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। 2009 में श्रीलंकाई सेना की कार्रवाई के बाद वहां के लाखों तमिल बेघर हुए जो आज भी दरबदर हैं।
 
 
9. आबादी : वर्तमान में श्रीलंका में करीब 2.2 करोड़ की आबादी है। देश की 70 फीसदी आबादी बौद्ध है। यहां 10 फीसदी आबादी मुस्लिम, 12 फीसदी हिंदू और 6 फीसदी कैथोलिक है। बौद्धों ने हिन्दू और ईसाइयों को धर्म की वजह से कभी निशाना नहीं बनाया लेकिन मुसलमानों को जरूर निशान बनाया गया है। इसके कई कारण है।
 
10. वर्तमान संघर्ष की शुरुआत : ऐसा आरोप लगाया जाता रहा है कि श्रीलंकाई शासन और तमिल अलगाववादियों के बीच चली लंबी लड़ाई का फायदा मुस्लिम कट्टरपंथियों और ईसाईयों ने उठाया और उन्होंने इस बीच अपने पैर जमाना शुरू कर दिए। इससे श्रीलंका के तमिल और सिंहली क्षेत्र में सामाजिक अशांति बढ़ने लगी। बांग्लादेश और पाकिस्तान की ओर से जहां वहां के मुसलमानों को अप्रत्यक्ष समर्थन मिला, वहीं श्रीलंका के गरीब क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों ने अपना अभियान जारी रखा। इसके चलते श्रीलंका के कट्टरपंथी बौद्धों ने एक और जहां चीन का पक्ष लेने प्रारंभ किया वहीं उन्होंने राष्‍ट्रवादी आंदोलन शुरु किया जिसके मुसलमानों की हत्या का नया दौर चला।
 
 
तमिल समस्या के खात्मे के बाद श्रीलंका में बौद्धों और मुस्लिमों के बीच तनाव की शुरुआत 2012 से हुई थी। कुछ कट्टरपंथी बौद्ध समूहों ने मुसलमानों पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने और बौद्ध मठों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। श्रीलंका में मुस्लिम केवल मुस्लिम नहीं हैं, वहां तमिल बोलने वाले मुस्लिम भी हैं और तमिलों का सिंहलियों से विवाद जगजाहिर है। इसके अलावा रोहिंग्या मुसलमानों की श्रीलंका में मौजूदगी भी विवादों की वजह है। श्रीलंका में मुसलमानों का मुस्लिम परंपरा के तहत मांसाहार या पालतू पशुओं को मारना बौद्ध समुदाय के लिए एक विवाद का मुद्दा रहा है। वर्तमान में इस्लामिक कट्टरपंथी नेशनल तौहीद जमात भी तनाव की एक वजह बन गया है।
 
 
हालांकि वर्तमान के आर्थिक हालातों के चलते श्रीलंका की कट्टरपंथी सरकार को जनता ने खारिज कर दिया है और वहां पर राजनीतिक अस्थिरता फैल गई है।

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