होलिका दहन का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन होलिका दहन के साथ-साथ होला माता की पूजा का भी विधान है। बहुत कम लोग जानते हैं कि होलिका और होला माता दोनों अलग-अलग हैं। आइए जानते हैं कौन हैं होला माता और क्यों की जाती है इनकी पूजा।
कौन हैं होला माता?
पौराणिक कथा के अनुसार, भक्त प्रहलाद को करने के लिए उनकी बुआ होलिका उन्हें गोद में लेकर अग्नि के बीच बैठ गई। होलिका को वरदान था कि अग्नि उन्हें जला नहीं सकती लेकिन उनका यह वरदान पूरा नहीं हुआ और वह जलकर भस्म हो गई। लेकिन प्रहलाद पूरी तरह सुरक्षित रहे।
मान्यता के अनुसार होलिका अग्नि से जलकर भस्म तो हो गई लेकिन उनकी नकारात्मक ऊर्जा वातावरण को प्रभावित करने लगी। तब अग्नि देव ने इस नकारात्मक ऊर्जा का नाश करने के लिए एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण किया। अग्नि से उत्पन्न होने के कारण ये ऊर्जा अग्नि पुत्री कहलाई। ब्रह्मा जी ने उन्हें होला नाम दिया, जिसका अर्थ है होली की नकारात्मकताओं को नष्ट करने वाली। तभी से होलिका दहन के दिन होला माता की पूजा का विधान स्थापित हुआ।
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होला माता की पूजा से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इनकी पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। होला माता की पूजा से घर में धन-धान्य का वास बना रहता है। इनकी पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है।
होलिका दहन के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
होला माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
उन्हें फूल, फल, मिठाई और धूप-दीप अर्पित करें।
होला माता की आरती करें और मंत्रों का जाप करें।
अंत में, क्षमा प्रार्थना करें और आशीर्वाद मांगें।
होला माता की पूजा होलिका दहन के दिन बहुत महत्वपूर्ण है। यह पूजा घर में सकारात्मक ऊर्जा लाती है और नकारात्मकता को दूर करती है।
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