होलिका की कैसे करते हैं पूजा और क्या होता है होली का डांडा
Holika dahan 2023
वर्ष 2023 में होलाष्टक 27 फरवरी, सोमवार से शुरू हो रहा है। कैलेंडर के मतानुसार इस बार होलाष्टक आठ दिन की जगह नौ दिनों तक रहेगा। इस समयावधि को अशुभ माना जाता है, अत: इस दौरान शुभ एवं मांगलिक कार्य बंद रहेंगे। यह होलाष्टक 7 मार्च 2023, मंगलवार को समाप्त होगा।
आइए यहां जानते हैं होली का डांडा गाड़ने, होलाष्टक तथा होलिका पूजन (Holika Dahan 2023) से संबंधित विशेष जानकारी-Holi worship
होलिका पूजन की सरल विधि-Holika Puja Vidhi
- सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें।
- अब अपने आस-पास पानी की बूंदें छिड़कें।
- गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं।
- थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक कलश पानी रखें।
- नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए प्रतिमाओं पर रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें।
- अब सभी सामान लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं।
- अग्नि जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान श्री गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें।
- इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं।
- भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं।
- अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं।
- कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें।
- आखिर में गुलाल डालकर चांदी या तांबे के कलश से जल चढ़ाएं।
- होलिका दहन के समय मौजूद सभी को रोली का तिलक लगाएं और शुभकामनाएं दें।
क्या होता है होली का डांडा, जानिए इन खास बातों से-
1. क्या होता है होली का डांडा : होलिका दहन के पूर्व होली का डंडा या डांडा चौराहे पर गाड़ना होता है। होली का डंडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेम का पौधा कहते हैं। इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद इन डांडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है।
2. कब गाड़ा जाता है होली डांडा : भारत में कई जगह तो फाल्गुन मास प्रारंभ होते ही होली का डांडा रोपड़ कर होली उत्सव का प्रारंभ हो जाता है तो कई जगहों पर होलाष्टक पर डांडा रोपण करके इस उत्सव की शुरुआत की जाता ही। कई जगह पर माघ पूर्णिमा के दिन से ही होली का डांडा रोप दिया जाता है। हालांकि अब अधिकांश जगह यह डांडा होलिका दहन के एक दिन पूर्व ही रोपण कर खानापूर्ति की जाती है। जबकि असल में यह डांडा होली से ठीक एक महीने पहले 'माघ पूर्णिमा' को रोपण होता है।
वसंत ऋतु के प्रारंभ होते ही इस त्योहार की शुरुआत हो जाती है। कई जगह पर 'माघ पूर्णिमा' से ही इस त्योहार की शुरुआत हो जाती है। ब्रजमंडल में खासकर मथुरा में लगभग 45 दिन के होली के पर्व का आरंभ वसंत पंचमी से ही हो जाता है। बसंत पंचमी पर ब्रज में भगवान बांकेबिहारी ने भक्तों के साथ होली खेलकर होली महोत्सव की शुरुआत की जाती है।
3. क्यों गाड़ते हैं यह डांडा : एक स्थान पर दो डांडा स्थापित किए जाते हैं। जिनमें से एक डांडा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का प्रतीक तो दूसरा डांडा उसके पुत्र प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर होलिका अग्नि में बैठ गई थी। होलिका तो जल गई लेकिन श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए थे। इसी की याद में होलिका डांडा गाड़ा जाता है और उसे होलिका दहन के दिन जला दिया जाता है।
4. डंडा गाड़ने के बाद क्या करते हैं : इस डांडे के आसपास लकड़ी और कंडे जमाकर रंगोली बनाई जाती और फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है। कंडे में विशेष प्रकार के होते हैं जिन्हें भरभोलिए कहते हैं। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूंज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं।
फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के पहले होली के डांडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डांडा लगाया जाता है। फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है और अंत में उसे जला दिया जाता है।
5. क्या करते हैं भरभोलिए का : होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। अत: होली में आग लगाने से पहले या होलिका दहन के पूर्व इस भरभोलिए की माला को भाइयों के सिर के ऊपर से 7 बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए। इस तरह होलिका दहन संपन्न होता है।