हिरण्यकश्यप के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वरदान दिया था कि उसको देव, दानव, किन्नर, मनुष्य कोई भी नहीं मार सकता, साथ ही किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसको कोई मार नहीं सकता। न दिन में मरेगा, न रात में। अंदर मरेगा, न बाहर। ऐसा वरदान प्राप्त होने के बाद हिरण्यकश्यप ने विष्णु भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। वह अपने को सर्वस्व मानता था। उसी के घर पुत्र के रूप में विष्णु भक्त प्रहलाद ने जन्म लिया था।
हिरण्यकश्यप उसको विष्णुजी की भक्ति का मना करता था, परंतु भक्त प्रहलाद विष्णुजी की भक्ति में लीन रहते थे, साथ ही हिरण्यकश्यप को समझाते थे कि भगवान विष्णु ही तीनों लोक के देवता हैं पिताजी। उनकी सेवा-भक्ति से आपका भी उद्धार हो जाएगा। ऐसे व्यवहार से हिरण्यकश्यप प्रहलाद को अपना दुश्मन मानता था।
भक्त प्रहलाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने नाना प्रकार के प्रयास किए, पर हर बार प्रहलाद भगवान भक्ति के कारण बच जाते थे। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि उसको अग्नि नहीं जला सकती अत: हिरण्यकश्यप ने उसे बोलकर प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठा दिया, परंतु भक्त प्रहलाद जिंदा रहे व उनकी बहन अग्नि में भस्म हो गई। उसी दिन से होलिका का दहन कर भक्त लोग खुशी मनाते हैं । असत्य पर सत्य की विजय के रूप में इस त्योहार को मनाया जाता है। सारी बुराइयां भूलकर लोग एक-दूसरे को गले लगाकर खुशी मनाते हैं।
होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को किया जाता है। दहन के लिए शुभ मुहूर्त देखना चाहिए। इस वर्ष हम होलिका दहन किस समय करें, जानिए-