वास्तु शास्त्र और आपकी उर्जा

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वास्तुशास्त्र में दिशा का बड़ा महत्व है क्योंकि पृथ्वी पर मुख्य उर्जा केवल सूर्य है। सूर्य की गति कारण घर की उर्जा बदलती रहती है। इसी सिद्धांत पर आग्नेय कोण की कल्पना की गई है। इसके लिए घर का दक्षिण पूर्व कोना उपयुक्त माना गया है। आग्नेय कोण पर घर की रसोई बनाने से घर फायदा मिलता है।

* उत्तर-पूर्व दिशा को 'ईशान' कहते हैं। अतः पूजाघर इसी कोण में होना चाहिए। अन्य रचनात्मक कार्य जैसे लेखन आदि भी इस कोण में किए जाएं तो निश्चित रूप से ज्यादा फायदा मिलता है।

* घर में ऊर्जा का प्रवेश मुख्य दरवाजे से होता है। पूर्व और उत्तर दिशा को उर्जा प्रधान दिशाएँ कहा जाता है। इसीलिए प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व में यदि रखा जाए तो उसमें रहने वाले काम में रूचि लेते हैं।

* घर में उर्जा को बनाए रखने के लिए अनावश्यक घर का मुख्यद्वार खोलकर नहीं रखना चाहिए। उर्जा का संतुलन बनाए रखने के लिए घर के कुल दरवाजों की संख्या सम होना चाहिए।

* यदि यह संख्या विषम है तो इसके कारण विपरित परिणाम होते हैं। घर में दरवाजों की ज्यादा संख्या अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करती है। इसलिए किसी घर में दस या दस के गुणक में जैसे बीस या तीस दरवाजे नहीं होना चाहिए।

* घर का केंद्रीय स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस स्थान को 'ब्रह्म स्थान' भी कहा जाता है। यह उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना मनुष्य के शरीर में हृदय। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि पूरे घर में ऊर्जा का प्रसार इसी जगह से होता है। इस जगह को हमेशा साफ रखना चाहिए। किसी भी तरह का बेकार या पुराना सामान यहाँ नहीं होना चाहिए।

* यहाँ पूजा घर भी बनाया जा सकता है। यदि संभव हो तो इस जगह एक तुलसी का पौधा लगाने से भी बेहतर परिणाम मिलते हैं। इस जगह रोशनी और हवा ठीक प्रकार से आती हो इसका ध्यान रखना चाहिए।

* घर में हमेशा एकता कायम रखने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को दिन में कभी भी एक बार इस जगह बैठ कर बातचीत करना चाहिए।

* नैऋत्य कोण में घर का टॉयलेट, बेडरूम या स्टोर रूम बनाना चाहिए। यह घर का दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र होता है। घर का वजनी सामान भी यहाँ रखा जा सकता है, लेकिन बेकार सामान यहाँ नहीं रखना चाहिए। इस कोण में घर का मेन गेट नहीं बनाना चाहिए।

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