मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी पुस्तक 'आजादी की कहानी' में भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में लिखा है कि कांग्रेस कार्यसमिति का प्रस्ताव प्रकाशित होते ही सारे देश में बिजली की लहर सी दौड़ गई।
लोग यह भी न सोच पाए कि इस प्रस्ताव में क्या-क्या बातें निहित हैं, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि कांग्रेस अँग्रेजों को हिन्दुस्तान से हटाने के लिए जन आंदोलन शुरू कर रही है। शीघ्र ही जनता और सरकार दोनों ही इसकी चर्चा 'भारत छोड़ो आंदोलन' के रूप में करने लगे।
इस प्रस्ताव को पास करने के बाद कार्यसमिति ने सरकार की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया। यदि सरकार ने यह माँग स्वीकार कर ली अथवा कम से कम समझौता करने की प्रवृत्ति दिखाई तो आगामी विचार-विमर्श के लिए गुंजाइश होगी और यदि सरकार ने माँग अस्वीकार कर दी, तो गाँधीजी के नेतृत्व में संघर्ष शुरू कर दिया जाएगा।
विदेशी संवाददाता बड़ी संख्या में वर्धा आ पहुँचे थे क्योंकि उनकी यह जानने की प्रबल लालसा थी कि कार्यसमिति ने क्या निर्णय लिया है। 15 जुलाई को गाँधीजी ने एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि यदि आंदोलन प्रारंभ हुआ, तो यह ब्रिटिश सत्ता के विरुद्घ एक अहिंसात्मक क्रांति होगी।
मैं यह स्वीकार करता हूँ कि इस स्थिति से मैं प्रसन्न नहीं था। मैंने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया, जिसमें सीधी कार्रवाई पर जोर दिया गया था, परंतु मैं इस प्रस्ताव के परिणाम के बारे में अधिक आशावान नहीं था।
मैंने अनुमान लगा लिया था कि सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी। इसलिए जब वायसराय ने गाँधीजी या उनके प्रतिनिधि से मिलने से इंकार कर दिया, तो मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। इस घटना से मैंने यह निर्णय लिया कि अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की एक बैठक बुलाई जाए, जो इस मुद्दे पर अधिक गंभीरता से विचार करे।
7 अगस्त 1942 को मुंबई में बैठक बुलाई गई। गाँधीजी ने भी इस बैठक में अपना भाषण दिया। इस विषय पर दो दिन तक विचार-विमर्श चलता रहा और अंत में कुछ साम्यवादियों के विरोध के बाद 8 अगस्त की शाम को 'भारत छोड़ो' का ऐतिहासिक प्रस्ताव पास हो गया।