आजादी के 61 वर्ष बाद बच्चे

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बच्चों को देश का भविष्य कहा गया है। यदि बच्चे स्वस्थ और सेहतमंद होंगे तो राष्ट्र की नींव मजबूत होगी परंतु संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल कोश के साथ कार्य करने वाले कुपोषण से संबंधित अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ. माइकल गोल्डन ने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि देश में लगभग 80 लाख बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं, जिसमें से 10 लाख से अधिक बच्चे तो अकेले हमारे म.प्र. में हैं।

डॉ. गोल्डन का यह खुलासा हमें सकते में डालने वाला है। म.प्र. जैसे राज्य में यदि यह स्थि‍ति है तो अन्य राज्यों में क्या हालात होंगे? इसका प्रत्युत्तर भी स्वयं डॉ. गोल्डन देते हुए कहते हैं कि उ.प्र. और बिहार में तो यह आँकड़ा 20 लाख से अधिक है।

यह देश की सरकार के लिए निश्चित ही चिंता का विषय है कि वह आजादी के 60 वर्षों बाद भी देश के नौनिहालों को कुपोषण की दासता से मुक्त नहीं करा पाई है। सरकार के करोड़ों-अरबों रुपए भी कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए खर्च कर दिए जाने के बावजूद नतीजे उतने सुखद नहीं हैं जितने कि होना चाहिए थे।

यूनिसेफ के पोषण संबंधी मामलों के प्रमुख डॉ. विक्यर अनुयाओ के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत में बच्चों के कुपोषण का प्रतिशत 46 था। भारत में 6 करोड़, 10 लाख बच्चों का विकास कुपोषण से थमा है तो 2 करोड़ 5 लाख बच्चे जिंदा लाश की तरह जीने को अभिशप्त हैं।

यह स्थिति निश्चित ही मु‍श्किलें पैदा करने वाली है क्योंकि या तो सरकार बच्चों में कुपोषण की समस्या के प्रति गंभीर नहीं है या फिर उसके प्रयासों का लाभ उन बच्चों को नहीं मिल पाया है, जिन्हें उनकी नितांत जरूरत है।

कहा जा रहा है कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए लगातार पंचवर्षीय योजनाओं में प्रावधान किया जा रहा है। आजादी के बाद से जितनी भी योजनाएँ बनी हैं, उनमें इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है परंतु नतीजे संतोषप्रद नहीं रहे।

बच्चों में कुपोषण के कारणों को रेखांकित करते हुए डॉ. गोल्डन कहते हैं कि ऊर्जा, प्रोटीन व अन्य पोषक तत्वों की कमी की वजह से बच्चे विभिन्न प्रकार के कुपोषण से ग्रसित हैं। इसमें गरीबी और आर्थिक समस्या भी एक बड़ा कारण है।

देश का नौनिहाल स्वतंत्रता प्राप्ति के 60 वर्षों बाद भी यदि कुपोषण से संघर्ष करता नजर आए तो यह एक शर्मसार कर देने वाला विषय है। यह समस्या इस मौके पर और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है जब हम अपनी आजादी की वर्षगाँठ मनाते हुए अपनी उपलब्धियों पर गौरवान्वित हैं परंतु लाख टके का सवाल तो यह है कि जिस देश का भविष्य 60 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद भी कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाया है तो आगामी वर्षों में उसका भविष्य क्या होगा?

इस नैराश्य के बीच आशा की किरण यह है कि राज्य के दौरे पर आए यूनिसेफ के दल ने यह भी कहा है कि -'कुपोषण से निपटने में मदद के लिए म.प्र. में बेहतर गुणवत्ता वाला मानव संसाधन उपलब्ध है।

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