विज्ञान का हमारे देश से बहुत पुराना संबंध रहा है और इसकी पुष्टि हमारा इतिहास भी करता है। लेकिन इस तथ्य को भुलाकर हम सिर्फ यह कहते दिखाई देते हैं कि देश में विज्ञान का विकास अब होना शुरू हुआ है। वैदिक काल से ही भारत में विज्ञान ने अपना अस्तित्व बना लिया था। हालाँकि यह विकास उतनी तेज़ी से नहीं हुआ था, जितनी तेज़ी से आज हो रहा है। भारत के तत्वज्ञानियों ने कई साल पहले ही परमाणुवाद (एटोमिक थ्योरी) को विकसित कर लिया था। इस थ्योरी में ‘थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी’ भी शामिल थी। इस ‘थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी’ को तब ‘सपेक शवाद’ के नाम से जाना जाता था।
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि स्टेनलेस स्टील का निर्माण भी भारत में हुआ था, यहीं से इस स्टील का निर्यात भी किया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप ‘डोमेस्कस स्टील’ का निर्माण हुआ। ‘डोमेस्कस स्टील’ को 1100 ऐडी से लेकर 1700 ऐडी तक तलवार बनाने के लिए उपयोग किया जाता था।
भारत और विज्ञान का संबंध यहीं समाप्त नहीं होता। देश के महान गणितज्ञ आर्य भट्ट ने ‘आर्य भट्ट सिद्धांतों’ को विकसित किया जिसमें गुरुत्वाकर्षण, गृहपथ के बारे में जानकारी दी गई है और पृथ्वी के आकार के बारे में बताया गया है।
7वीं सदी में ब्रह्मगुप्त ने गुरुत्वाकर्षण को आकर्षण की शक्ति के रूप में पहचानकर दुनिया को इससे अवगत कराया। इसके साथ ही डेसिमल अंक ‘ज़ीरो’ के उपयोग के बारे में भी ब्रह्मगुप्त ने इसी सदी में बता दिया था।
फिर 12वीं सदी ने भी भारत में विज्ञान के विकास में योगदान दिया। इस सदी में ‘भास्कर’ ने अपने ‘सिद्धांत शिरोमणि’ के माध्यम से ग्रहों के लोंगिट्यूड, मून के क्रेसेंट आदि के बारे में कई रोचक तथ्य लोगों के सामने लाकर रख दिए।
इसके बाद 13वीं और 14वीं सदी में भी ‘केरल स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथेमेटिक्स’ ने गणित और एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास किए। इन सबके अलावा भी भारत में विज्ञान के लंबे समय से होने के बारे में कई रोचक तथ्य हैं जैसे-
* एस्ट्रोनॉमी : 2000बीसी में ऋग्वेद में एस्ट्रोनॉमी के बारे मे ज़िक्र है। * चिकित्सा : 800बीसी के आसपास सर्जरी के बारे में पहला सारांश पेश किया गया। * गणित : लेब्निज़ और न्यूटन से करीब 300 साल पहले केल्क्यूलस का विकास भारत में हो चुका था।
अगर भारत में विज्ञान के विकास के आज पर नज़र डाली जाए तो हमें यह देखने को मिलेगा कि देश ने विज्ञान के बलबूते पर विश्व के मानचित्र पर अपनी पहचान बना ली है। देश में विज्ञान के विकास को ध्यान में रखते हुए कई अनुसंधान केंद्र खोल दिए गए हैं जो अपने कार्यों को बखूबी निभा रहे हैं। ऐसे ही संस्थानों में से कुछ हैं- काउन्सिल ऑफ साइन्टिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च, इंडियन काउन्सिल ऑफ ऐग्रिकल्चर रिसर्च और इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आदि।
1983 में भारत सरकार द्वारा तकनीकी विकास को प्रोत्साहन देने के लिए एक नीति बनाई गई जिसका मकसद तकनीकी विकास को बढ़ावा देना और उस तकनीक को सही तरीके से उपयोग में लाना था।
इसके लिए भारत के विज्ञान एवं तकनीकी विभाग ने एक योजनापूर्ण कार्यक्रम बनाया। यह योजना मई 1971 से लागू की गई जिसका मुख्य मकसद तकनीक से संबंधित नए विचारों और विचारधारा वाले लोगों को बढ़ावा देना था।
यह योजना नए तकनीकी प्रोग्रामों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गई थी। वर्ष 1998 से लेकर 1999 के बीच इस योजना के माध्यम से 23 शोध कार्यक्रमों को आर्थिक सहायता के लिए मंज़ूरी दी गई।
आजादी के बाद भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ हासिल कीं वे बेमिसाल हैं। विशेषकर तब जबकि अनगिनत समस्याएँ सामने खड़ी थीं। आगामी वर्षों में भारत प्रगति की नई इबारत लिखेगा इसमें कोई संदेह नहीं है...
देश की आज़ादी के 50 साल पूरे होने पर सरकार ने एक ‘स्वर्ण जयंती प्रोग्राम’ शुरू किया जिसके ज़रिए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अग्रसर वैज्ञानिकों को विज्ञान संबंधी शोध के लिए बेहतर सुविधा प्राप्त कराई जा सके। वर्ष 1998 से लेकर 1999 तक 11 लोगों को यह सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ।
इस विकास को गतिशील करने के लिए विकास मंडल की सितंबर 1996 में स्थापना की गई। यह बोर्ड तकनीकी प्रोजेक्ट्स को आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए बनाया गया है।
देश में विज्ञान का विकास इसी तरह होता रहे और देश के नौजवान इस विकास में इसी तेज़ी से हिस्सा लेते रहें इसके लिए अनेक तकनीकी संस्थानों में एंटरप्रेन्योरशिप पार्क बनाए जा रहे है। देश के 13 विभिन्न संस्थानों में ऐसे पार्क बनाए गए हैं जो नए व्यावसायिक उद्यमियों के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।
आजादी के बाद भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ हासिल कीं वे बेमिसाल हैं। विशेषकर तब जबकि अनगिनत समस्याएँ सामने खड़ी थीं। आगामी वर्षों में भारत प्रगति की नई इबारत लिखेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।