पिछड़े राज्यों को विकास में हमकदम बनाना होगा

- डॉ. अमित मित्रा
आर्थिक क्षेत्र में भारत को दुनिया के पहले 10 देशों की जमात में खड़ा करने के लिए हमें 10 से 12 प्रतिशत की ग्रोथ रेट हासिल करनी होगी। उसके बिना विकास संभव नहीं है। यह संभव होगा कृषि क्षेत्र में दूसरी हरित क्रांति से। एग्रो प्रोसेसिंग और एग्रो बिजनेस को बढ़ावा देने से। विशाल असंगठित क्षेत्र की दशा सुधारने से। कृषि तथा उद्योग दोनों ही क्षेत्र में उच्च प्रौद्योगिकी के विकास से तथा नई पीढ़ी के उच्च शिक्षण-प्रशिक्षण के जरिए अच्छा मानव संसाधन तैयार करके।

आजादी के पहले 40 वर्षों तक हमने समाजवादी विचारधारा से प्रभावित आर्थिक विकास का
ND
मॉडल अपनाए रखा। इस मॉडल को चुनने वाले हमारे लोगों ने बड़ी गंभीरता से काम किया, पर हमारी ग्रोथ तीन से साढ़े तीन प्रतिशत तक सीमित रही। इससे न हम अपेक्षित विकास कर सके और न हमारी गरीबी दूर हुई। हमारे ही साथ विकास का सफर शुरू करने वाला देश दक्षिण कोरिया 10-12 प्रतिशत की सालाना वृद्धि करते हुए आज विकसित देशों की जमात में खड़ा है। नेहरूजी के दौर में आईआईटी और स्टील मिलों की स्थापना जैसे बड़े काम हुए, पर खेती का क्षेत्र पीछे छूट गया।

चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने पहले खेती का विकास किया, फिर इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया। हम सीधे इंडस्ट्री में चले गए और यह कहकर केवल पब्लिक सेक्टर को बढ़ावा दिया कि विकास निजी क्षेत्र के बस की चीज नहीं है। कुल मिलाकर नतीजे में हमारी ग्रोथ रेट के विकास के लिए दबाव बढ़ता रहा। राजीव गाँधी ने तकनीकी क्षेत्र में खुलापन लाकर अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी।

वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव और इस समय के प्रधानमंत्री और राव सरकार के वित्तमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह ने लाइसेंस व्यवस्था को एक झटके में खत्म कर एक नए युग की शुरुआत की। इसका परिणाम हम देख रहे हैं। आर्थिक वृद्धि 9 प्रतिशत तक पहुँच गई है। 9 पक्की नहीं तो 8 तो जरूर है। आने वाले समय में हम 10 से 12 प्रतिशत पर भी जा सकते हैं।

आज हम एक नए क्षितिज पर हैं। हमारी आबादी का 34 प्रतिशत हिस्सा गरीबी में जी रहा था। अब यह कम होकर आधिकारिक रूप में 22 प्रतिशत पर आ गया है। हमारा मानना है कि गरीब आबादी अब 19 प्रतिशत रह गई है।

देश में हर वर्ष 70-80 लाख लोग मोबाइल फोन खरीद रहे हैं। ये कोई अमीर नहीं हैं। हमने पिछले दिनों अपने मोहल्ले में देखा कि ठेले पर सब्जी बेचने वाला मोबाइल लिए हुए ऊपर चौथी मंजिल पर खड़ा महिला खरीददार से मोबाइल पर बात कर रहा था। महिला दूरबीन से सब्जियाँ देखकर उनकी जाँच और मोल-भाव कर रही थी। केरल के मछुआरे समुद्र के ऊपर से मोबाइल द्वारा मछली बाजार का भाव पूछते हैं। इस तरह देश में एक तकनीकी क्रांति आ रही है।

पर यह क्रांति केवल आईटी और टेलीकॉम क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि उद्योग और कृषि हर क्षेत्र में भी होनी चाहिए। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फल और सब्जी उत्पादक देश है, पर हमारा 40 प्रतिशत प्रोडक्शन प्रोसेसिंग के बिना नष्ट हो जाता है। हमारी एक सबसे बड़ी कमी मानव संसाधन की है। हम हर वर्ष लाखों इंजीनियरिंग और साइंस ग्रेजुएट तैयार करते हैं। उनमें से 30 प्रतिशत काम पर रखने लायक नहीं है। अमेरिका ने एक लाख नैनो टेक्नोलॉजी संस्थान स्थापित किए हैं, जबकि हमारे यहाँ कायदे के दस भी नहीं हैं।

यहाँ यह बहस ठीक नहीं है कि एमएनसी (बहुराष्ट्रीय कंपनियों) के आने से देश की आजादी खतरे में पड़ जाएगी। आज चीन का 68 प्रतिशत निर्यात और 80 प्रतिशत उच्च प्रौद्योगिकी निर्यात एमएनसी कंपनियों के जरिए हो रहा है तो क्या चीन ने अपनी संप्रभुता गिरवी रख दी है? भारत को उदारीकरण से डरने की जरूरत नहीं है। हमें अपने आंतरिक सुधार पर ध्यान देना चाहिए। अपने पैर मजबूत करने चाहिए, आर्थिक ताकत बढ़ानी चाहिए। हमारा असंगठित क्षेत्र 93 प्रतिशत लोगों को रोजगार दे रहा है।

एक अध्ययन है कि दुनिया में असंगठित क्षेत्र के पास 9.3 ट्रिलियन यानी 9300 अरब डॉलर की पूँजी है। भारत में भी असंगठित क्षेत्र के पास डेढ़ ट्रिलियन यानी डेढ़ हजार करोड़ डॉलर की पूँजी तो होनी ही चाहिए। लेकिन इस क्षेत्र की इकाइयों को बैंक से पैसा नहीं मिलता। जरूरत है उस क्षेत्र को संगठित करने की। फिक्की असंगठित क्षेत्र के बारे में डॉ. अर्जुन सेनगुप्त की रिपोर्ट पर आगे काम करेगा।

भारत को आर्थिक आजादी का पूरा फायदा उठाने के लिए अपने पिछड़े क्षेत्रों पर भी ध्यान देना होगा। मैं बिहार जैसे इलाकों में, गाँवों में काम कर चुका हूँ। मेरा यकीन है कि बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश की तरक्की के बिना देश की वास्तविक तरक्की नहीं होगी।

खुशी की बात है कि आज बिहार तरक्की कर रहा है। बिहार से आने वाले मजदूर बताते हैं कि उनके लिए वहाँ पटना से अपने गाँव पहुँचना पहले से आसान हो गया है। राज्य सरकार बुनियादी ढाँचे पर जोर दे रही है। इससे वहाँ उद्योग पनपेंगे। हम फिक्की के जरिए बिहार में औद्योगीकरण को प्रोत्साहित कर रहे हैं। मैं मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की एडवाइजरी काउंसिल का सदस्य हूँ। वहाँ एग्रो इंडस्ट्री और शकर मिल उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है।

बिहार में सुधार भी हो रहे हैं। वह अकेला ऐसा राज्य है जिसने पुराने मंडी कानून को खत्म कर दिया है। वहाँ व्यापारियों के लिए कृषि उपजों को मंडी से खरीदने की बाध्यता खत्म हो गई है। किसान किसी को भी माल बेचने को स्वतंत्र हैं। दूसरी हरित क्रांति, असंगठित क्षेत्र का सुधार, उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति और पिछड़े इलाकों का विकास ही हमारी आर्थिक आजादी की गारंटी है।
(लेखक उद्योग मंडल फिक्की के महासचिव हैं।)