भगवा रंग में "अखंड भारत" का नक़्शा था, जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश ही नहीं, श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल, भूटान, अफ़ग़ानिस्तान, तिब्बत को भी भारत का हिस्सा बताया गया था। वस्तुतः वह "मौर्यकालीन भारत" का नक़्शा था। किंतु कैप्शन लिखा था : "इन सभी विभाजनों के ज़िम्मेदार थे नेहरू!"
ऐसी बेसिरपैर की बातें करने के लिए ही तो वामपंथी लोग हिंदू राष्ट्रवादियों को "भक्त" बोलकर उनका मज़ाक उड़ाते हैं!
राष्ट्रों के निर्माण और विघटन को लेकर कुछ बुनियादी विचार होते हैं, जिन पर मनन करना ज़रूरी है।
अव्वल तो यही कि एकता के बजाय विघटन मनुष्य की अधिक बुनियादी प्रवृत्ति है, और भारत में तो सबसे ज़्यादा। ऐतिहासिक रूप से भारत को केवल "साम्राज्यवाद" और "औपनिवेशिकता" ही एक कर पाए हैं। आज जब क्रिकेट मैच होते हैं तो कुछ घंटों के लिए भारत एक हो जाता है! ऐसे "राष्ट्रीय चेतना" के बजाय "जातीय गर्व" और "क्षेत्रीय भावना" ही भारत के लिए अधिक स्वाभाविक रहे हैं।
"मौर्यकालीन अखंड भारत" तो दूर, मौजूदा भारत को ही जोड़कर रख पाएं तो बहुत!
इसको थोड़ा "ग्लोबल पर्सपेक्टिव" में समझते हैं!
स्पेन के "कातालोनिया" प्रांत के प्रेसिडेंट कार्लेस पुगदेमों भीषण अलगाववादी हैं और वे चाहते हैं कि "स्कॉटलैंड रेफ़रेंडम" की तर्ज पर कातालोनिया भी जल्द ही जनमत सर्वेक्षण की राह पर चले और बार्सीलोना एक नए राष्ट्र की राजधानी बने!
कातालोनिया की सबसे अच्छी फ़ुटबॉल टीम का नाम है "एफ़सी बार्सीलोना"। शेष स्पेन की सबसे अच्छी टीम है "रीयल मैड्रिड"। जब भी इन दोनों टीमों के बीच मैच होते हैं तो वैसी ही कड़ी प्रतिस्पर्धा देखी जाती है, जैसी कि भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैचों में होती है। "रीयल-बार्सा" टकरावों को "एल क्लैसिको" कहा जाता है और यह दुनिया का सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला स्पोर्टिंग इवेंट है। बार्सीलोना का पक्ष लेने वाले "मैड्रिडिस्ता" को "देशद्रोही" (ट्रेटर) तक कह दिया जाता है, जबकि वो एक ही देश है!
हर "यूके" में एक स्कॉटलैंड है, हर भारत में एक कश्मीर। हर स्पेन में कातालोनिया है, हर श्रीलंका में जाफ़ना। और हर "यूनाइटेड स्टेट्स" में गृहयुद्धों का "डीप साउथ" बसा हुआ है : मिसिसिपी, टेनसी, केंटकी!
अखंड क्या होता है? विखंडन के क्या मायने हैं?
जर्मनी और ऑस्ट्रिया दो पृथक राष्ट्र हैं, लेकिन दोनों में जर्मन भाषा बोली जाती है, दोनों ही जर्मन भावनाओं से ओतप्रोत हैं। पहले जर्मन "रायख़" यानी "होली रोमन एम्पायर" की गद्दी तो वियना में थी, बर्लिन में नहीं। बिस्मार्क ने इसी भावना के चलते 1871 में जर्मनी का एकीकरण किया। इसी का हवाला देकर नात्सियों ने 1938 में ऑस्ट्रिया को जर्मनी में मिला लिया था। विलियम शिरेर के स्मरणीय शब्दों में, "वियना हैड बिकम जस्ट अनादर जर्मन सिटी इन द थर्ड रायख़!"
इसकी तुलना में तो जर्मनी के दक्षिण में स्थित प्रांत "बवेरिया" उससे कहीं भिन्न है। बवेरियाई ख़ुद को जर्मन तक नहीं मानते। यानी दो भिन्न राष्ट्रों में भी ऐक्य हो सकता है और एक ही राष्ट्र के भीतर भी वैभिन्न्य हो सकता है! जर्मनी और ऑस्ट्रिया के बरअक़्स स्पेन और कातालोनिया!
कुछ समय पहले भाजपा महासचिव राम माधव ने एक ऐसे "अखंड भारत" की बात कही, जिसमें भारत-पाक-बंगदेश एक हों, (क्योंकि वे 47 के पहले भी एक थे) तो शायद एकता और अलगाव के तर्कों के आधार पर वे एक निराधार बात कर रहे थे, क्योंकि एकता और अलगाव के कोई सुनिश्चित तर्क होते ही नहीं हैं!
राम माधव ने कहा था, जब दो जर्मनी और दो वियतनाम एक हो सकते हैं तो भारत-पाक क्यों नहीं? उन्होंने यह नहीं बताया था कि आखिर "सोवियत संघ" क्यों टूटकर बिखर गया? सोवियत संघ टूटा और पंद्रह नए राष्ट्र अस्तित्व में आए! लेकिन सवाल तो यही उठता है कि आख़िर तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान और अज़रबैजान "इन द फ़र्स्ट प्लेस" सोवियत संघ में कर क्या रहे थे? कहां तो पूर्वी यूरोप में वर्चस्व की भावनाओं से ओतप्रोत मॉस्को-पीटर्सबर्ग, कहां मध्येशिया के ये मुसलमान मुल्क! ये तो जियो-पॉलिटिकल दृष्टि से भी एक भारी विडंबना थी। "द ग्रेट यूटोपियन यूनियन" को तो बिखरना ही था!
आख़िर "यूगोस्लाविया" क्यों टूट गया था? याद रहे, यूगोस्लाविया सर्ब्स, क्रोएट्स, स्लोवेन्स राजसत्ताओं के एक परिसंघ के रूप में बना था, जब वह टूटा तो सर्बिया, क्रोएशिया, स्लोवेनिया के रूप में नए राष्ट्र तो बने ही, मोंटेनीग्रो, मकदूनिया और बोस्निया-हर्जेगोविना भी अस्तित्व में आ गए! टूटन की प्रक्रिया और तीक्ष्ण साबित हुई! वियतनाम और जर्मनी में यदि नस्ली ऐक्य था तो वह तो कोरिया प्रायद्वीप में भी है, इसके बावजूद उत्तर और दक्षिण मिलने को तैयार नहीं!
ख़ुद "भारत-विभाजन" की थ्योरी बड़ी भ्रामक थी। हिंदुओं से अलग चौका-चूल्हा चाहने वालों में अलीगढ़ वालों का बोलबाला था और "मुस्लिम लीग" का हेडक्वार्टर लखनऊ में था। जब देश टूटा तो सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान का जो हिस्सा पाकिस्तान में गया, वह तो तुलनात्मक रूप से अधिक "प्रो-इंडिया" था। ज़्यादा "प्रो-पाकिस्तान" तो अलीगढ़, हैदराबाद, भोपाल थे, जो भारत में ही रह गए और आज तलक क़ायम हैं।
भारत में आर्य और द्रविड़ प्रांतों के स्पष्ट विभाजन हैं। विंध्य पर्वत की मेखला उत्तर और दक्षिण का विभाजन करती है। उनमें भी अनेक धाराएं-उपधाराएं हैं। पूर्वोत्तर को तो हमने कभी मुख्यधारा का हिस्सा माना नहीं। अगर यह देश टूटा था तो किन तर्कों के आधार पर टूटा था और अगर जुड़ा हुआ है तो किन तर्कों के आधार पर जुड़ा हुआ है? "चेन्नई सुपर किंग्स" के फ़ैन्स पूरे भारत में हैं, जबकि मद्रासियों को हिंदी भाषा से भी परहेज़ है!
"अखंड भारत" का सपना देखने वालों से मेरा एक सवाल है : अगर 1947 का "स्टेटस को" बहाल हो जाए तो क्या होगा?
पाकिस्तान और बांग्लादेश आज मुस्लिम बहुसंख्या वाले मुल्क बन चुके हैं, ये भारत में आकर मिले तो भीषण जनसांख्यिकीय असंतुलन निर्मित होगा। और डेमोग्राफ़ी का ही तो झगड़ा है!
जब अठारह परसेंट में ये हाल है तो बत्तीस परसेंट में क्या होगा?
सन् सैंतालीस में जिस रेलगाड़ी को हमने इतनी आसानी से जाने दिया था, वो अब आपसे इतनी दूर चली गई है कि आपको अंदाज़ा भी नहीं है!
कश्मीर के फ़साद के मूल में भी तो "डेमोग्राफ़ी" ही है। मुस्लिम बहुसंख्या वाला भारत का इकलौता राज्य, और नतीजा सामने है। कश्मीर की समस्या ये नहीं है कि पाकिस्तान उस पर कब्ज़ा करना चाहता है, कश्मीर की समस्या ये है कि ख़ुद घाटी के दिल में पाकिस्तान बसा है! कश्मीरी ही अगर ना जाना चाहें तो पाकिस्तान की क्या बिसात? कश्मीर एक मज़हबी समस्या है, डेमोग्राफ़िक प्रॉब्लम है, "अलगाववादी" तो उसको दिखावे के लिए बोला जाता है। पोलिटिकल करेक्टनेस!
"मौर्यकालीन अखंड भारत" तो दूर, आप तो कश्मीर को ही अपने पास रोककर दिखा दो तो मानें! कश्मीर में जब तक जनसांख्यिकीय समस्या है, उसका कोई हल नहीं है। ये जनसांख्यिकीय समस्या तब ख़त्म होगी, जब वहां पंडितों का पुनर्वास होगा और हिंदुओं के सेटलमेंट्स बढ़ेंगे, और जब तक धारा 370 है, ये होने से रहा। "मौर्यकालीन अखंड भारत" तो दूर, आप तो कश्मीर से धारा 370 ही ख़त्म करके दिखा दो! जिन कश्मीरियों ने अमरनाथ यात्रियों को सौ एकड़ ज़मीन नहीं लेने दी, वो क्या धारा 370 ख़त्म होने देंगे? जान लगा देंगे, सड़कों पर लाशें बिछ जाएंगी, लेकिन 370 नहीं हटाने देंगे।
आपको अभी अंदाज़ा नहीं है, आपका पाला कैसे दुश्मन से पड़ा है!
"अखंड भारत" सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन जो मुल्क़ एक "यूनिफ़ाइड टैक्सेशन सिस्टम" को ही स्वीकार नहीं कर पाता, जिसके राज्य "फ़ेडरल स्ट्रक्चर" का हवाला देकर मनमानी करते हैं, और जिसके मुख्यधारा के "इंटेलेक्चुअल्स" आतंकवाद, नक्सलवाद और पाकिस्तान के सामने बिछे हुए रहते हैं, वो क्या ख़ाक "अखंड" होगा!