नफरतों की बर्फ दिल से पिघलाकर मिलें आओ हम प्यार की धूप में आकर मिलें सर्द रिश्तों को चलो हम गुनगुना कर लें बुझे हुए सौहार्द में कुछ आंच भर लें इसमें अभी प्रेम की चिंगारी दबी है इंसानियत की राख को फिर आग कर लें भाईचारे का अलाव सुलगा कर मिलें चिड़िया चहकने दें, फूलों को हंसने दें आजादी की हवा बागों में बहने दें दहशत का दावानल रोकें, निर्भय करें बच्चों की आंखों में तितलियां चमकने दें इक-दूजे की चोटों को सहलाकर मिलें सपनों को पालें, आंखों से बहने न दें कुछ नहीं असंभव, दिल को ना कहने न दें गत को भूलें हम आगत का करें स्वागत आगे बढ़ें पांव को पीछे हटने न दें देखें उजली भोर, रात बिसरा कर मिलें।