जंग-ए-आजादी में साहित्यकारों की भूमिका

संजय सिन्हा
 
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जांऊ 
चाह नहीं मैं गुंथू अलकों में विंध प्यारी को ललचांऊ 
चाह नहीं सम्राटों के द्राव पर हे हरि ! डाला जांऊ ! 
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूं, भाग्य पर इतराऊं 
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक 
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक.....
देशभक्ति से ओत-प्रोत यह एक ऐसी रचना है, जिसके जरिए कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने आजादी की बलि-वेदी पर शहीद हुए वीर सपूतों के प्रति अगाध श्रद्धा दिखाई है और बलिदानों को सर्वोपरि बताया है। एक फूल के माध्यम से उन्होंने अपनी बातों को जिस सशक्तता व उत्कृष्टता के साथ कहा है, वह बेहद सराहनीय है। इसी तरह जंगे आजादी में अपनी रचनाओं के माध्यम से विशेष भूमिका निभाने वाले साहित्यकारों की एक लंबी फेहरिस्त है।
 
प्रबुद्ध कवि मैथिलीशण गुप्त ने अपनी रचनाओं में देशप्रेम और जनचेतना की ऐसी लौ जलाई, जिससे प्रेरित होकर समाज के हर वर्ग से लोग स्वतंत्रता संग्राम में कूदने लगे। सोई हुई भारतीयता को जगाते हुए उन्होंने लिखा - 
 
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं, नरपशु निरा है और मृतक समान है....
 
भारतेन्दु हरीश्चन्द्र ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों द्वारा निरीह भारतीय जनता पर जुल्मों सितम व लूट-खसोट का उन्होंने बढ़-चढ़कर विरोध किया। उन्हें इस बात का क्षोभ था कि अंग्रेज यहां से सारी संपत्ति लूट कर विदेश ले जा रहे थे। इस लूटपाट और भारत की बदहाली पर उन्होंने काफी कुछ लिखा। अंधेर नगरी चौपट राजा नामक व्यंग्य के माध्यम से भारतेंदु ने तत्कालीन राजाओं की निरंकुच्चता, अंधेरगर्दी और उनकी मूढ़ता का सटीक वर्णन किया है। अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है -
 
रोबहु सब मिली अबहु भारत भाई
 हा-हा भारत दुर्दशा न देखी जाई.... 
 
इसी प्रकार राधाकृष्ण दास, बद्री नारायण चौधरी, प्रताप नारायण मिश्रा, पंडि‍त अंबिका दत्त व्यास, बाबू राम किशन वर्मा, ठाकुर जगमोहन सिंह, राम नरेश त्रिपाठी, सुभद्रा कुमारी चौहान एवं बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' जैसे प्रबुद्ध रचनाकारों ने राष्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की ऐसी गंगा बहाई, जिसके तीव्र आवेग से जहां विदेशी हुक्मरानों की नींव हिलने लगी, वहीं नौ जवानों के अंतस में अपनी पवित्र मातृ भूमि के प्यार का जज्बा गहराता चला गया। एक ओर बंकिमचन्द्र चटर्जी ने आनंद मठ व वन्दे मातरम्‌ जैसी कालजयी रचनाओं का सृजन किया, तो कविवर जयशंकर प्रसाद की कलम भी बोल उठी -
 
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती.... 
 
कथा सम्राट मुंच्ची प्रेमचंद भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाने में पीछे नहीं रहे और मृत प्राय: भारतीय-जनमानस में भी उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए एक नई ताकत, एक नई ऊर्जा का संचार किया। प्रेमचंद की कहानियों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक तीव्र विरोध तो दिखा ही इसके अलावा दबी-कुचली शोषि‍त व अफसशाही के बोझ से दबी जनता के मन में कर्त्तव्य-बोध का एक ऐसा बीज अंकुरित हुआ, जिसने सबको अंदोलित कर दिया। प्रेमचंद ने जन जागरण का एक ऐसा अलख जगाया कि जनता हुंकार उठी। सरफरोशी का जज्बा जगाती प्रेमचंद की बहुत सारी रचनाओं को अंग्रेजी शासन के रोष का शिकार होना पड़ा। न जाने कितनी रचनाओं पर रोक लगा दी गई और उन्हें जब्त कर लिया गया। कई रचनाओं को जला दिया गया। परंतु इन सब बातों की परवाह न करते हुए लिखते रहे...अनवरत।
 
 उन पर कई तरह के दबाव भी डाले गए और नवाब राय की स्वीकृति पर उन्हें डराया धमकाया भी गया। लेकिन इन कोशि‍शों व दमनकारी नीतियों के आगे प्रेमचंद  ने कभी हथियार नहीं डाले। उनकी रचना 'सोजे वतन' पर अंग्रेज अफसरों ने कड़ी आपति जताई और उन्हें अंग्रेजी खुफिया विभाग ने पूछताछ के लिए तलब किया। अंग्रेजी शासन का खुफिया विभाग अंत तक उनके पीछे लगा रहा। परंतु प्रेमचंद की लेखनी रूकी नहीं, बल्कि और प्रखर होकर स्वतंत्रता आंदोलन में विस्फोटक का काम करती रही। उन्होंने लिखा- 
 
मैं विद्रोही हूं जग में विद्रोह कराने आया हूं
क्रांति-क्रांति का सरल सुनहरा राग सुनाने आया हूं...
 
कविवर रामधारी सिंह दिनकर भी कहां खामोश रहने वाले थे। मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते प्राणोत्सर्ग करने वाले बहादुर वीरों व रणबांकुरों की शान में उन्होंने कहा-
 
कमल आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां बारी-बारी
छिटकाई जिसने चिंगारी जो चढ़ गए पुण्य-वेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल...
 
हिन्दी के अलावा बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तमिल व अन्य भाषाओं में भी माइकेल मधुसूदन, नर्मद, चिपूलूंठाकर, भारती आदि कवियों व साहित्यकारों ने राष्ट्र-प्रेम की भावनाएं जागृत की और जनमानस को अंदोलित किया। 
 
कवि गोपालदास नीरज का राष्ट्र प्रेम भी उनकी रचनाओं में साफ परिलक्षित होता है। जुल्मों-सितम के आगे घुटने न टेकने की प्रेरणा उनकी रचनाओं से प्राप्त होती रही। उन्होंने लोगों को उत्साहित करते हुए लिखा है -
 
देखना है जुल्म की रफ्तार बढ़ती है कहां तक
देखना है बम की बौछार है कहां तक...

 
आजादी के बाद के हालातों को स्पष्ट करते हुए नीरज ने कई रचनाएं लिखी हैं। बतौर बानगी-
 
चंद मछेरों ने मिलकर सागर की संपदा चुरा ली
कांटों ने माली से मिलकर फूलों की कुर्की करवा ली
खुशि‍यों की हड़ताल हुई है, सुख की तालाबंदी हुई
आने को आई आजादी, मगर उजाला बंदी है...
 
आज शयामलाल गुप्त पार्षद का यह गीत, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा,  भले हम गुनगुना रहे हों और इकबाल की यह नज्म भी कि, सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा... लेकिन देश की मौजूदा परिस्थिति इससे भिन्न है। आज के समय में भी वैसी ही धारदार रचनाओं की जरूरत है, जो जन-जन को आंदोलित कर सके, उनमें जागृति ला सके। भष्टाचार व अराजकता को दूर कर हर हृदय में भारतीय-गौरव-बोध एवं मानवीय-मूल्यों का संचार कर सके।

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