फ़रवरी 1999 में नवाज़ शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच लाहौर में एक समझौता हुआ था जिसके मुताबिक दोनों देशों ने बातचीत के जरिए एक नए रिश्ते की शुरुआत करने की प्रतिबद्धता दिखाई थी। इसी के तहत समजौता एक्सप्रेस ट्रेन भी चलाई गई थी परंतु भारत का क्या पता था कि इस समजौते की आड़ में पाकिस्तान कारगिल में कुछ और ही खेल खेल रहा था जिसका पता 3 मई को चला और 8 मई को कारगिल युद्ध की नींव पड़ी।
करीब 3 महीने चले इस युद्ध में भारत के 562 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए थे, जबकि पाकिस्तान के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार 600 से ज्यादा सैनिक मारे गए और जबकि 1500 से अधिक घायल हुए। अनाधिकृत आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान के 3000 सैनिकों के मारे जाने की बात कही जाती है। कई सूत्रों से यह ज्ञात हुआ कि पाकिस्तान के 3 हजार से ज्यादा सैनिक और इतने ही आतंकी मारे गए थे।
कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की बुरी तरह हार के कारण वहां पर तख्ता पलट हो गया। परवेज मुशर्रफ ने देश की कमान अपने हाथों में ले ली। कारगिल युद्ध को पाकिस्तान के चार जनरलों ने मिल कर अंजाम दिया था। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, मेजर जनरल जावेद हसन, जनरल अजीज ख़ान और जनरल महमूद अहमद।