वह एक विद्रोही....

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सिमोन द बोवुआर बीसवीं सदी की सर्वाधिक चर्चित और महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक हैं। एक दार्शनिक, चिंतक, उपन्यासकार और सक्रिय नारीवादी के रूप में उन्होंने अपना जीवन जिया। हजारों पृष्‍ठों में फैला सिमोन का लेखन एक स्त्री के निर्माण, उसके प्रतिरोध, अंतर्द्वंद्व और मानवीय संबंधों की गहरी पड़ताल है।

'द सेकंड सेक्स' के रूप में दुनिया के अब तक के इतिहास में सिमोन ने पहली बार स्त्री के सवाल को आर्थिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक, जैविक और ऐतिहासिक संदर्भों में विश्लेषित‍ किया। 'द सेकेंड सेक्स' के बारे में एलिस लिखती हैं, 'द सेकंड सेक्स' एक प्रकाश-स्तंभ की तरह है, जिसे सिमोन द बोवुआर ने इस सदी के दूसरे अर्द्धांश के अँधेरों में स्त्रियों को रास्ता दिखाने के लिए प्रज्ज्वलित किया था... पचासवें-साठवें दशक के अंधकार में, जबकि नव स्त्री-आंदोलन का उजास फैलना शुरू नहीं हुआ था, हम उभरती हुई महिलाओं के लिए 'द सेकेंड सेक्स' एक गुप्त संकेत की तरह था, जिसे हम एक-दूसरे को संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल करते थे।

9 जनवरी, 1908 को फ्राँस के एक मध्यमवर्गीय
  युवा होती मेधावी, बुद्धिमानी‍ पुत्री पिता की चिंता का कारण बनती जा रही थी। पिता के सामंती-पुरुषवादी पैमानों के हिसाब से वह सुंदर न थी, उससे कौन शादी करेगा? सिमोन ने बहुत छुटपन से ही स्त्री होने की इस पीड़ा को बहुत करी‍ब से देखा था।      
कैथलिक परिवार में सिमोन द बोवुआर का जन्म हुआ। उनके नाना एक नामी बैंकर थे। मगर हालात ऐसे बदले कि उनका धनाढ्‍य परिवार बदहाली की कगार पर पहुँच गया। उन्नीसवीं सदी के मध्य में एक परिवार के सामं‍ती, पितृसत्तात्मक मूल्यों ने यौवन की तरंगों से छलछलाती एक स्त्री का जीवन निगल लिया। फ्राँसुआज (सिमोन की माँ) घुमक्कड़ बनना चाहती थीं, लेकिन उस समय की तमाम स्त्रियों की तरह उसके भी हिस्से आया - विवाह, ऐयाश पति और दो बेटियों का बोझ। वह बेहद खूबसूरत थी और अपने मधुर गले से बहुत मीठा गाती थी, लेकिन सब खत्म। एक स्वप्न-दृष्टा, मगर धर्मभीरु स्त्री का जीवन समाप्त हो चुका था। अपने सपने उसने अपनी बेटी में पूरे होने की ख्वाइश की।

युवा होती मेधावी, बुद्धिमानी‍ पुत्री पिता की चिंता का कारण बनती जा रही थी। पिता के सामंती-पुरुषवादी पैमानों के हिसाब से वह सुंदर न थी, उससे कौन शादी करेगा? सिमोन ने बहुत छुटपन से ही स्त्री होने की इस पीड़ा को बहुत करी‍ब से देखा था और वह खुद भी घुटन महसूस करती थी। बहुत बाद में नेल्सन एल्ग्रेन को लिखे एक पत्र में सिमोन ने लिखा था, 'मैं एक खराब गृहिणी हूँ। घर और अच्छी पत्नी से जुड़ी हर चीज मुझे मृत्यु-सी भयावह लगती है।'

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सिमोन का बचपन अभावों में बीत‍ा। 'मेमॉयर्स ऑफ ए ड्‍यूटीफुल डॉटर' में सिमोन लिखती हैं, 'हमारे घर में कोई भी चीज बर्बाद नहीं जाती थी - न सम्मान में मिला कोई टिकट, न मुफ्त भोजन का कोई अवसर, न ब्रेड की एक फाँक, न रोटी का एक टुकड़ा।'

1913 में साढ़े पाँच साल की उम्र में एक कैथलिक स्कूल में सिमोन का ‍दाखिला कराया गया। 10 वर्ष की उम्र में सिमोन के जीवन में उसकी सबसे प्यारी सहेली जाजा का आगमन हुआ । संभवत: जाजा सिमोन का पहला गहरा आवेगमय प्रेम थी। एक बार जाजा के दो हफ्तों तक स्कूल न आने पर सिमोन बहुत व्यथित हो उठी थी। अपने संस्मरणों में वह लिखती हैं, 'आकाश की न‍ीलिमा धुँधली पड़ गई थी, कक्षा उबाऊ लगती। जब जाजा लौटी तो मेरी जबान में जैसे अचानक ही गति आ गई। खुशी से भरकर मैंने खुद से कहा, 'मुझे जाजा क‍ी जरूर‍त थी....' मैंने अपने भीतर उस आनंद की लहर को उठते महसूस किया था, जो किसी जल-प्रपात की तरह तरल और ताजगी से भरी थी।'

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बड़े होने के साथ-साथ पिता के साथ विद्रोही बेटी के संबंध बिगड़ते जा रहे थे। वह आम लड़कियों जैसी नहीं थी। यीशू और चर्च में आस्था नहीं रखती थी। उसमें कुछ भी आम पारंपरिक लड़कियों जैसा नहीं था।

1926 में सिमोन ने दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने के लिए सोरबोन विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। यहीं उसकी मुलाकात मॉ‍‍‍‍‍रिस मार्लो-पोंती से हुई। वह कैथलिक धर्म की आलोचना करता, सत्य की खोज के लिए उत्सुक जान पड़ता। सिमोन मॉरिस से विवाह के बारे में सोचती, लेकिन एक विचार उसे इस दिशा में आगे बढ़ने से रोकता था। सिमोन ने अपनी डायरी में लिखा, 'मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि एक ऐसा व्यक्ति, जो मेरा सबकुछ हो, मेरे तुल्य हो, उसका अस्तित्व ही नहीं है।'

यह युवावस्‍था की शुरुआत थी। सिमोन को एक भावनात्मक, प्रेममय, दैहिक और साथ ही बौद्धिक अंतरंगता की जरूरत महसूस होने लगी थी। इस बीच जाजा की मृत्यु हो गई। वह अपने एक करीबी रिश्ते के भाई से प्रेम करती थी, लेकिन रूढि़यों-परंपराओं के चलते दोनों का विवाह नहीं हो सकता था। एक सामंती, धार्मिक मूल्यों वाले परिवार की प्रतिष्‍ठा को बचाए रखने की कीमत जाजा को अपने प्राण देकर चुकानी पड़ी।

सिमोन बहुत अकेली पड़ गई थी और तभी उसके
  यह युवावस्‍था की शुरुआत थी। सिमोन को एक भावनात्मक, प्रेममय, दैहिक और साथ ही बौद्धिक अंतरंगता की जरूरत महसूस होने लगी थी। इस बीच जाजा की मृत्यु हो गई। वह अपने एक करीबी रिश्ते के भाई से प्रेम करती थी।      
जीवन में आगमन हुआ, अपने समय के सबसे प्रखर बुद्धिजीवी और अस्तित्ववादी दार्शनिक ज्यां पाल सार्त्र का। यह अपने समय की सबसे आदर्श जोड़ी थी। एक ऐसा संबंध, जो परिवार, समाज और सामंती मूल्यों की किसी बाध्यता के बावजूद आजीवन कायम रहा। 80 साल की उम्र में भी सार्त्र से बिछुड़ना सिमोन के लिए सबसे गहरी पीड़ी थी। 20 साल की उम्र में सिमोन ने लिखा था, 'मैं जानती थी कि अब वह दोबारा कभी मेरी जिंदगी से नहीं जाएगा।' और सार्त्र की मौत के बाद सिमोन ने लिखा, 'उसकी मृत्यु ने हमें विलग कर दिया, मेरी मृत्यु भी हमें दोबारा मिला नहीं सकेगी।'

सिमोन और सार्त्र का संबंध कोरी भावुकता और सामाजिक बाध्यता से ऊपर उठकर गहरी भावना और बौद्धिकता की जम‍ीन पर निर्मित हुआ संबंध था, जो एक साथ प्रेम, समता और स्वतंत्रता पर टिका हुआ था। यह संबंध कई पीढि़यों के लिए एक आदर्श था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब सिमोन नारीवादी आंदोलन में सक्रिय हुईं तो बहुत-सी रेडिकल नारीवादी स्त्रियों का मानना था कि एक पुरुष से संबद्ध होने के कारण सिमोन उनकी तरह जुझारू और संघर्षशील नहीं हो सकतीं, कि इस पितृसत्तात्मक समाज-व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के बीच वास्तविक समता पर टिके संबंधों का निर्माण संभव ही नहीं है। इसके बावजूद कि यह एक कठोर सच है, सिमोन के जीवन ने इसे झुठला दिया, कि सचमुच सिमोन और सार्त्र का संबंध एक आदश र् अपवाद था....

  सिमोन और सार्त्र का संबंध कोरी भावुकता और सामाजिक बाध्यता से ऊपर उठकर गहरी भावना और बौद्धिकता की जम‍ीन पर निर्मित हुआ संबंध था, जो एक साथ प्रेम, समता और स्वतंत्रता पर टिका हुआ था।      
20 वर्ष की आयु में सार्त्र से सिमोन की मुलाकात हुई सार्त्र से हुई और फिर दोनों में से एक के कब्र में जाने तक कोई उन्हें अलग नहीं कर सका।

सिमोन ने पहले ही अपने करियर का चुनाव कर लिया था। वह शिक्षिका बनना चाहती थीं। 1931 में 23 साल की उम्र में सिमोन दर्शनशास्त्र की अध्यापिका बन गईं। लीसे में दर्शनशास्त्र का शिक्षक नियुक्त होना गौरव की बात थी। अभी तक दर्शन सिर्फ पुरुष बुद्धिजीवियों का क्षेत्र माना जाता था। ज्यूल लाग्लो, हेनरी बर्गसां और गुस्ताव मोंद आदि जिसकी प्रमुख हस्तियाँ थीं। दर्शन के क्षेत्र में यह पहली स्त्री का आगमन था।

  सार्त्र के प्रति सिमोन का प्रेम बहुत गहरा और सच्चा था, लेकिन उन्होंने विवाह-बंधन में बँधना नहीं स्वीकार किया। विवाह और परिवार संस्था को वह पितृसत्तात्मक शोषण की बुनियादी इकाई मानती थीं। उन्होंने दासत्व के उस बंधन को अस्वीकार कर दिया।      
1932 में सिमोन की नियुक्ति रूआँ के लीसे जांदार्क में हो गई। सिमोन अपनी छात्राओं के बीच बहुत लोकप्रिय थीं। कक्षा में वह धार्मिक, सामंती मूल्यों और पारंपरिक स्त्रियोचित भूमिकाओं की आलोचना करतीं, अपनी छात्राओं को स्त्रीत्व की कारा से निकलकर एक स्वतं‍त्र, मुक्त मनुष्य का जीवन जीने के लिए प्रेरित करतीं। दर्शन की सिमोन की समझ और उसकी व्याख्या भी पारंपरिकता और विषय के अकादमिक रूप से बिलकुल हटकर थी। अपनी गहरी दृष्टि, विद्रोही तेवर, स्नेहिल व्यवहार और प्रभावपूर्ण अध्यापन से सिमोन ने जल्दी ही छात्राओं के बीच अपनी एक महत्वपूर्ण जगह बना ली थी। आज भी उनकी छात्राएँ उन्हें गहरे प्रेम और भावना से भरकर याद करती हैं।

स्त्री-मुक्ति की अपनी सैद्धांतिक समझ को सिमोन ने अपने व्यक्तिगत जीवन पर भी लागू किया। सार्त्र के प्रति सिमोन का प्रेम बहुत गहरा और सच्चा था, लेकिन उन्होंने विवाह-बंधन में बँधना नहीं स्वीकार किया। विवाह और परिवार संस्था को वह पितृसत्तात्मक शोषण की बुनियादी इकाई मानती थीं। उन्होंने दासत्व के उस बंधन को अस्वीकार कर दिया। बहुत स्नेहिल और प्रेममय होने के बावजूद मातृत्व की महानता का मिथ उन्हें पिघला न सका। उन्होंने माँ बनने से इंकार कर दिया। 'द सेकेंड सेक्स' में सिमोन पारिवारिक-आर्थिक ढाँचे के भीतर स्त्री की दशा और पुरुषों व बच्चों के साथ उसके अंतर्संबंधों को जिस तरह से विश्लेषित करती हैं, वह सारी बातें उनके अपने जीवन पर भी लागू होती हैं।

चौथे दशक के आख़िर में ही सिमोन द बोवुआर की मुलाक़ात एक अमेरिकी लेखक नेल्सन एल्ग्रेन से हुई। पहली ही मुलाक़ात में उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वे एक-दूसरे को चाहने लगे हैं। प्रेम धीरे-धीरे गहरा होता चला गया। यह एक गहरा, आवेगमय और रूमानी प्रेम था। सिमोन एल्ग्रेन को पत्र लिखतीं, 'मैं तुम्हारी बाँहों में पिघल जाने के लिए अधीर हूँ... मेरे सुदूर प्रेमी... हर दिन लंच के बाद मैं बिस्तर में कुछ देर आराम करती हूँ, बिना कुछ पढ़े, आधा सोए और आधा सपने देखते हुए, और हर दिन तुम चुपके से और बड़े प्यार से आते हो और मेरी बाँहों में समा जाते हो...'
  मेरे सुदूर प्रेमी... हर दिन लंच के बाद मैं बिस्तर में कुछ देर आराम करती हूँ, बिना कुछ पढ़े, आधा सोए और आधा सपने देखते हुए, और हर दिन तुम चुपके से और बड़े प्यार से आते हो और मेरी बाँहों में समा जाते हो...'      


एल्ग्रेन सिमोन से विवाह करना चाहता था, लेकिन सिमोन पत्नी बनने को तैयार न थीं... प्रेम के लिए अपनी स्वतंत्रता, अपने अस्तित्व और अपने प्यारे पेरिस का त्याग उन्हें मंजूर न था। एल्ग्रेन आहत होकर अमेरिका लौट गया। सिमोन का दुख भी कम गहरा न था। वह रातों में एल्ग्रेन को याद कर रोतीं।

द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद सिमोन और सार्त्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे। साठ के दशक में उन्होंने फ्रांस की औपनिवेशिक नीतियों का खुलकर विरोध किया और अल्जीरिया के स्वतंत्रता-आंदोलन में सक्रिय भागेदारी की। सिमोन बहुत व्यथित थीं, उन्होंने कहा, 'शर्म है एक फ्रांसीसी होने में सिमोन सार्वजनिक सभाओं में खुलकर गॉलिस्टों के खिलाफ़ बोल रही थीं और उनकी तीख़ी आलोचना कर रही थीं, जरूरत पड़ने पर वह हमेशा राज्य-सत्ता के ख़िलाफ भी उठ खड़ी हुई थीं।

अल्जीरिया के स्वतंत्रता-आंदोलन का पक्षधर होने के नाते उन्हें बहुत-सी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा। उन पर जानलेवा हमले हुए। सार्त्र के अपार्टमेंट पर बम फेंके गए, उन्हें मारने की कोशिशें हुईं।

  लाखों लोग सिमोन की आख़िरी शव-यात्रा में शामिल हुए। कब्र पर क्लांद लाजमाँ ने सिमोन की कृतियों के कुछ अंश पढ़े और अंत में उनकी कुछ बेहद मार्मिक पंक्तियाँ दोहराईं, 'उसकी मृत्यु ने हमें अलग कर दिया, मेरी मृत्यु भी हमें फिर से नहीं मिला सकेगी।'      
धीरे-धीरे समय आगे बढ़ रहा था। जीवन बहुत थोड़ा था और काम बहुत ज़्यादा। 1979 में बीसवीं सदी की यह आदर्श जोड़ी बिछुड़ गई। सार्त्र की मृत्यु-शैया पर बिलखती सिमोन खुद भी उसी चादर के भीतर लेट जाना चाहती थी, जहाँ आँखें मूँदे सार्त्र हमेशा-हमेशा के लिए सो चुके थे। यह विदाई असह्य थी, लेकिन सार्त्र के बाद भी वह जीवित रहीं और पूरी जीवंतता के साथ- हर दिन सक्रिय और बहुत सारे कामों में जुटीं। 'ला सेरेमनी जेदादिया' के रूप में सिमोन ने अपने आजीवन अभिन्न मित्र को अपनी आख़िरी श्रद्धांजलि अर्पित की। साथ ही सिमोन ने उन्हें लिखे सार्त्र के पत्रों को भी संपादित किया।

14 अप्रैल, 1986 को लंबी बीमारी के बाद सिमोन ने आख़िरकार इस दुनिया से अंतिम विदाई ली। 19 अप्रैल, 1980 को मोंपारनास के कब्रिस्तान में सार्त्र की कब्र बनाई गई थी। आज उसके बगल में एक और कब्र खोदी जा रही थी। लाखों लोग सिमोन की आख़िरी शव-यात्रा में शामिल हुए। कब्र पर क्लांद लाजमाँ ने सिमोन की कृतियों के कुछ अंश पढ़े और अंत में उनकी कुछ बेहद मार्मिक पंक्तियाँ दोहराईं, 'उसकी मृत्यु ने हमें अलग कर दिया, मेरी मृत्यु भी हमें फिर से नहीं मिला सकेगी।'

आज भी मोंपारनास के कब्रिस्तान में सार्त्र के बगल में सिमोन की कब्र है- समता, स्वतंत्रता और प्रेम की प्रतीक।