अलाउद्दीन खिलजी को लैंड रेवेन्यू यानी भूमि राजस्व में सुधार के लिए जाना जाता है लेकिन ये बात सरासर झूठी है। अलाउद्दीन से सैकड़ों वर्ष पहले आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र लिखा था जिसमें भूमि राजस्व सुधार संबंधी कई बातों का जिक्र है। मौर्य और गुप्तकालीन भारत में किसानों की दशा मध्यकाल के किसानों से बेहतर थी।
खिलजी की अर्थव्यवस्था लूटपाट पर आधारित थी। उसके शासन में गंगा-जमनी तहजीब नहीं थी। सैयद अतहर अब्बास रिजवी द्वारा अनुवादित 'खिलजीकालीन भारत' नामक किताब के पेज नंबर 71 पर उल्लेख मिलता है कि सुल्तान अलाउद्दीन ने काजी मुगीस से तीसरा मसला ये पूछा कि मैंने उस समय, जब मैं मलिक था, जो धन-संपत्ति इतने खून-खराबे के बाद देवगिरी से प्राप्त की थी, वो मेरी है या कि मुसलमानों के बैतुलमाल (राजकोष) की?
काजी मुगीज से उत्तर दिया कि मेरे लिए सिंहासन के सामने सत्य बोलने के अलावा कोई उपाय नहीं। जो धन-संपत्ति अन्नदाता देवगी से लाए हैं, वो सब इस्लामी सेना की मेहनत से प्राप्त हुई है, वो मुसलमानों के बैतुलमाल का हक है। यदि अन्नदाता कहीं से अकेले कुछ धन-संपत्ति प्राप्त करे तो वो शारा के नियम से अन्नदाता की ही होगी और अन्नदाता के लिए शारा के अनुसार हलाल होगी।
सुल्तान अलाउद्दीन काजी मुगीसुद्दीन से इस पर बड़ा नाराज हुआ था और उससे कहा कि तू क्या बकता है? तुझे पता नहीं कि जो धन-संपत्ति मैंने अपने प्राणों पर खेलकर और अपने कर्मचारियों को डर दिखाकर हिन्दुओं से प्राप्त की है, जिनके विषय में दिल्ली में कोई जानकारी भी नहीं थी और जिसे मैंने बादशाह के खजाने में भी नहीं भेजा और जो मैंने स्वयं खर्च करनी आरंभ कर दी, वह किस प्रकार बैतुलमाल की हो सकती है?
इसी किताब के पेज नंबर 94 पर लिखा है कि मलिक नायब ने तिलंग की सीमा पर पहुंचकर आसपास के कस्बों और देहातों का विध्वंस कर दिया। उन स्थानों के रायों और मुकद्दमों ने इस्लामी सेना की लूटमार देखकर मार्ग के सभी किले छोड़ दिए और अरंगल पहुंचकर किले में घुस गए। पेज नंबर 79 पर लिखा है कि दुआब और उसके आसपास के 100 कोस के प्रदेश में इस प्रकार खिराज निश्चित किया गया कि प्रजा दस मन से अधिक अनाज एकत्रित नहीं कर सकती थी और खिराज वसूल करने में इतनी कठोरता दिखाई जाती थी कि प्रजा को अनाज खलिहान ही में बंजारों के हाथ बेचने पर विवश हो जाना पड़ता था।
सैयद अतहर अब्बास रिजवी द्वारा अनुवादित 'खिलजीकालीन भारत' नामक किताब में बादशाह खिजली से वेतनप्राप्त इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी, अमीर खुसरो, एसामी, इब्ने बतूता, याया, फरिश्ता और अब्दुल्ला के लिखे वाकयों का संकलन है। ये इतिहासकार खिलजी की प्रशंसा में लिखते थे लेकिन बहुत-सी जगह इन्होंने खिलजी की पोल भी खोल दी है।
इन इतिहासकारों ने मध्यकाल में फारसी में ये इतिहास लिखा था जिसका हिन्दी में बाद में अनुवाद किया गया। 'खिलजीकालीन भारत' नामक इस किताब के पेज नंबर 74 पर एक घटना का जिक्र है। ये घटना जियाउद्दीन बरनी ने अपनी किताब 'तारीख-ए-फिरोजशाही में लिखी है।
इस किताब के अनुसार मैंने बादशाह के 2-3 ऐसे गुण सुने हैं, जो कि धर्मनिष्ठ बादशाहों में होने चाहिए। ये गुण इस युग और इस काल के बादशाह में भी पाए जाते हैं। उनमें से एक ये है कि हिन्दुओं को लज्जित, पतित, अपमानित और दरिद्र बना दिया गया है। मैंने सुना है कि हिन्दुओं की स्त्रियां तथा बालक मुसलमानों के द्वार पर भीख मांगा करते हैं।
ऐ बादशाहे इस्लाम! तेरी ये धर्मनिष्ठा प्रशंसनीय है और तू हजरत मोहम्मद साहब के धर्म की खूब रक्षा कर रहा है। यही इसी आचरण के कारण तेरे सभी पापों में से जो आकाश से पाताल तक के पापों से भी अधिक हों, तो चिड़िया के एक पंख के बराबर भी बख्शे जाने से रह जाएं तो कल तू कयामत में मेरा दामन पकड़ लेना।
इस किताब में अमीर खुसरो की किताब मिफ्ताहुल फूतहू का भी अनुवाद है। इस किताब के पेज नंबर 153 पर राजस्थान के झायन में हुई एक लूट का जिक्र है। ये जगह आज राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में है। इसमें लिखा है कि तीसरे दिन दोपहर में सुल्तान झायन पहुंचा और राय के महल में उतरा। महल की सजावट और कारीगरी देखकर वो हैरान रह गया। वह महल हिन्दुओं का स्वर्ग मालूम पड़ता है। चूने की दीवारें आईने के समान थीं। उसमें चंदन की लकड़ियां लगी हुई थीं। बादशाह उस महल में कुछ समय रहकर बड़ा प्रसन्न हुआ।
वहां से निकलकर उसने उद्यानों और मंदिरों की सैर की। मूर्तियों को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया। उस दिन तो वह मूर्तियों को देखकर वापस हो गया लेकिन दूसरे दिन उसने सोने की मूर्तियां पत्थर से तुड़वा डालीं। 2 पीतल की मूर्तियां जिसमें से प्रत्येक 1-1 हजार मन की थीं, तुड़वा डाली गईं और उनके टुकड़ों को लोगों को दे दिया गया। महल, किला तथा मंदिर तुड़वा डाले गए। लकड़ी के खंभों को जलवा दिया गया। झायन की जमीन इस प्रकार खोद डाली गई कि सैनिक मालामाल हो गए। मंदिरों से यह आवाज आने लगी कि शायद कोई अन्य महमूद (गजनवी) जीवित हो गया।
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1296 में दिल्ली के सुल्तान बने अलाउद्दीन खिलजी की चार पत्नियां थीं जिनमें से एक राजपूत राजा की पूर्व पत्नी और दूसरी यादव राजा की बेटी थीं। 1316 तक दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन खिलजी ने कई छोटी राजपूत रियासतों पर हमले कर उन्हें सल्तनत में शामिल कर लिया था। अलाउद्दीन खिलजी ने राजपूतों को युद्ध में हरा दिया था और उन्होंने गुजरात के शहरों और मंदिरों को लूटा था।
गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार मरकंद मेहता के अनुसार 1299 में खिलजी की सेनाओं ने गुजरात पर बड़ा हमला किया था। इस हमले में गुजरात के वाघेला राजपूत राजा कर्ण वाघेला की बुरी हार हुई थी। इस हार में कर्ण ने अपने साम्राज्य और संपत्तियों के अलावा अपनी पत्नी को भी गंवा दिया था। इस संबंध में पद्मनाभ ने 1455-1456 में कान्हणदे प्रबंध लिखी थी जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित थी। इसमें भी राजपूत राजा कर्ण की कहानी का वर्णन है।