Diwali bonus history in india: भारत में दिवाली सबसे बड़ा त्योहार है। बाजारों में इस त्योहार की धूम और रोनक देखते ही बनती है। जिस तरह दिवाली हा इंतजार किया जाता है वैसे ही इंतजार होता है दिवाली बोनस का। यह त्योहार की खुशियों को दोगुना कर देता है। कर्मचारी के खाते में जमा ये बोनस बाजार में खरीदी को बढ़ाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि बोनस दिवाली पर ही क्यों दिया जाता है और इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई। असल में दिवाली बोनस सिर्फ परंपरा नहीं है बल्कि कानूनों अधिकार भी है। आइये आज आपको दिवाली बोनस की परम्परा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण और रोचक बातें बताते हैं।
1940 का 'वेतन विवाद' कैसे बना दिवालीबोनस की नींव
माना जाता है कि भारत में दिवाली बोनस की परंपरा की शुरुआत 1940 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। आजादी से पहले देश में सभी संस्थानों में कर्मचारियों को हर हफ्ते वेतन दिया जाता था। इस तरह कर्मचारियों को एक साल में 52 बार वेतन मिलता था। ब्रिटिश सरकार ने अचानक मासिक वेतन प्रणाली लागू करने का फैसला लिया। इस तरह कर्मचारियों को 12 महीनों का, मतलब 48 सप्ताह का, वेतन दिया जाने लगा और उन्हें साल में चार हफ्तों की सैलरी का नुकसान होने लगा। इस बदलाव के खिलाफ कर्मचारियों ने कड़ा विरोध-प्रदर्शन किया।
कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने और उनके विरोध को शांत करने के लिए, ब्रिटिश सरकार ने एक मध्य मार्ग अपनाया। उन्होंने यह ऐलान किया कि दिवाली के अवसर पर 4 हफ्तों की सैलरी एक बोनस के रूप में दी जाएगी।
यह बोनस न केवल कर्मचारियों को आर्थिक राहत देता था, बल्कि भारत के सबसे बड़े त्योहार, दिवाली के अवसर पर मानसिक संतोष और उत्साह भी भरता था। इस प्रकार, एक विरोध ने एक ऐसी परंपरा की नींव रखी जो आज भी जारी है।
पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट 1965
आज़ादी के बाद भी दिवाली पर बोनस देने की यह प्रथा जारी रही, लेकिन इसे कानूनी अधिकार का रूप मिला 1965 में। 1965 में भारत सरकार ने 'पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट' (Payment of Bonus Act, 1965) पारित किया। इस अधिनियम ने बोनस को केवल परंपरा तक सीमित न रखकर इसे कर्मचारियों का कानूनी हक बना दिया। इस एक्ट के तहत, उन सभी कारखानों और संस्थानों पर यह कानून लागू होता है, जहां 20 या उससे अधिक लोग काम करते हैं।
इस एक्ट ने कंपनियों को अपने कर्मचारियों को मुनाफे का कम से कम 8.33% बोनस देना अनिवार्य कर दिया। यह प्रतिशत कर्मचारी की सैलरी और कंपनी के मुनाफे से निर्धारित होता है, जिसकी अधिकतम सीमा 20% तक हो सकती है। वर्तमान नियमों के अनुसार, यह बोनस उन कर्मचारियों को मिलता है जिनका मासिक वेतन ₹21,000 (मूल वेतन + महंगाई भत्ता) से ज़्यादा नहीं है और जिन्होंने उस वित्तीय वर्ष में कम से कम 30 दिन काम किया हो।
सरकारी कर्मचारियों का बोनस
केंद्र सरकार और राज्य सरकार के कर्मचारियों को अक्सर 'एड-हॉक' (Ad-Hoc) या 'नॉन-प्रोडक्टिविटी लिंक्ड बोनस' मिलता है, जो आमतौर पर 30 दिन की सैलरी के बराबर होता है। यह बोनस दिवाली से पहले या दशहरे के आसपास दिया जाता है, जिसका मकसद त्योहारों पर उनकी खरीद क्षमता को बढ़ाना और उन्हें राहत देना होता है।
इस तरह, दिवाली बोनस एक लंबी ऐतिहासिक यात्रा तय करके आज कर्मचारियों के लिए वित्तीय सुरक्षा और त्योहारी सद्भाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। यह उनके परिश्रम का सम्मान करने और आर्थिक चक्र को गति देने का एक प्रभावी तरीका भी है।