Hindu Raja : भारत के इन 7 योद्धाओं से कांपते थे मुगल आक्रांता

WD Feature Desk

गुरुवार, 4 जुलाई 2024 (14:44 IST)
Mughal history: सभी मुगल विदेशी थे जो तुर्क से आए थे। तुर्क से आकर उन्होंने भारत के एक बड़े भू-भाग पर लूटपाट और धर्मांतरण के साथ ही बाद में अपना शासन स्थापित किया था। ऐसा इतिहास से सिद्ध होता है। लेकिन मुगल कभी भी संपूर्ण भारत पर शासन नहीं कर पाए। भारत के 7 ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे और मुगल इनके नाम से ही कांपते थे।ALSO READ: महाराजा छत्रसाल, जिन्होंने मुगलों से कभी हार नहीं मानी, सदा विजेता रहे
 
मुगल शासक : बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब, बहादुर शाह प्रथम, बहादुर शाह जफर। 
 
1. महाराणा प्रताप : राजस्थान के मेवाड़ के वीर योद्धा और राजपूताना शान महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगलों के आगे घुटने नहीं टेके। विदेशी मुगल बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप को हर तरह से झुकाने और हराने का प्रयास किया परंतु वह ऐसा करने में सफल नहीं हो पाया। महाराणा प्रताप ने 20 साल जंगल में रहकर नए सिरे से अपनी फौज तैयार की और अकबर से युद्ध करके मेवाड़ का 85 प्रतिशत हिस्सा पुन: हासिल कर लिया था। 12 सालों के लंबे संघर्ष के बाद अकबर ने हार मान ली थी।ALSO READ: क्या मुगलों का संपूर्ण भारत पर राज था और क्या अंग्रेजों ने मुगलों से सत्ता छीनी थी?
 
2. छत्रपति शिवाजी महाराज : वीर मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज से तो मुगल थरथर कांपते थे। मुगलों ने हर तरह के षड्यंत्र किए लेकिन वे छत्रपति शिवाजी महाराज को हराने में कामयाब नहीं हो सके। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरम्भ किया था। उनकी इस युद्ध नीती से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंगल जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित 'शिव सूत्र' में मिलता है। गोरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रुसेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं। मुगल उनकी इस युद्ध नीति से बहुत घबराते थे।
 
3. महाराजा रणजीत सिंह जी : हिंदू धर्म रक्षक और सिखों की शान महराजा रणजीत सिंह ने पंजाब पर कई सालों तक राज किया। उनकी दहाड़ से दुश्मन थर्रा जाते थे। उन्हें शेरे पंजाब कहा जाता था। महाराजा रणजीत सिंह से अफगान, मुगल और अंग्रेज तीनों ही घबराते थे। 10 साल की उम्र में पहला युद्ध लड़ा था और 12 साल की उम्र में गद्दी संभाल ली थी। वहीं 18 साल की उम्र में लाहौर को जीत लिया था। 40 साल की उम्र तक उन्होंने अपने शासनकाल में अफगान, मुगलों और अंग्रेज़ों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया।
4. राणा सांगा : 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़ में जन्मे महाराणा संग्रामसिंह ऊर्फ राणा सांगा से बाबर और उनकी सेना डरती थी। राणा कुम्भा के पोत्र और राणा रायमल के पुत्र राणा सांगा अपने पिता के बाद सन् 1509 में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने। राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी, बाबर, महमूद खिलजी इस्लामिक शासकों के साथ युद्ध लड़ककर अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ बलिदान दे दिया था। राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी, महमूद खिलजी और बाबार के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी थी। उन्होंने सभी को धूल चटाई थी। युद्ध में उनके शरीर पर लगभग 80 घाव हो गए थे फिर भी वे लड़ते रहे।ALSO READ: Mughal harem stories : मुगल बादशाहों के हरम की 10 ऐसी बातें जिन्हें जानकर रह जाएंगे हैरान
 
5. पेशवा बाजीराव: पेशवा बाजीराव का जन्म 18 अगस्त सन् 1700 को एक भट्ट परिवार में पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधाबाई के घर में हुआ था। उनके पिताजी छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे। इतिहास के अनुसार बाजीराव घुड़सवारी करते हुए लड़ने में सबसे माहिर थे। महाराणा प्रताप और शिवाजी के बाद बाजीराव पेशवा का ही नाम आता है जिन्होंने मुगलों से लंबे समय तक लोहा लिया। पेशवा बाजीराव बल्लाल एक महान योद्धा थे उन्होंने अपने चालीस वर्ष के जीवन में बयालीस युद्ध लड़े और सभी में वह विजयी रहे। मुगल तो सपने में भी इनका नाम सुनकर कांप जाते थे। 19-20 साल के उस युवा बाजीराव ने 3 दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा था। मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई। यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गए। 'चीते की चाल, बाज़ की नज़र और बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते। कभी भी मात दे सकती है।' बाजीराव पहला ऐसा योद्धा था, जिसके समय में 70 से 80 फीसदी भारत पर उसका सिक्का चलता था। वो अकेला ऐसा राजा था जिसने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था। 
 
6. महाराजा छत्रसाल: बुंदेलखंड के शिवाजी के नाम से प्रख्यात छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया (3) संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वी को एक पहाड़ी ग्राम में हुआ था। एक समय ऐसा भी आया जब दिल्ली तख्त पर विराजमान औरंगजेब भी छत्रसाल के पौरुष और उसकी बढ़ती सैनिक शक्ति को देखकर चिंतित हो उठा। छत्रसाल की युद्ध नीति और कुशलतापूर्ण सैन्य संचालन से अनेक बार औरंगजेब की सेना को हार माननी पड़ी। बुंदेलखंड का शक्तिशाली राज्य छत्रसाल ने ही बनाया था। छतरपुर नगर छत्रसाल का बसाया हुआ नगर है। छत्रसाल की राजधानी महोबा थी। इस वीर योद्धा बहादुर छत्रसाल की 83 वर्ष की अवस्था में 14 दिसंबर 1731 ईस्वी को इहलीला समाप्त हुई।ALSO READ: छत्रपति शिवाजी महाराज की 10 अनसुनी बातें
 
छत्रसाल के लिए कहावत है -
'छत्ता तेरे राज में, धक-धक धरती होय।
जित-जित घोड़ा मुख करे, तित-तित फत्ते होय।'
 
7. सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य : हेमू हरियाणा में रेवाड़ी के रहने वाले थे। हेमू ने 50000 लोगों की अपनी सेना, 1000 हाथियों और 51 तोपों के साथ दिल्ली की तरफ जब कूच किया तो कालपी और आगरा के गवर्नर अब्दुल्लाह उजबेग खां और सिकंदर खां डर के मारे अपना शहर छोड़कर भाग निकले। हेमू 6 अक्तूबर, 1556 को दिल्ली पहुंचे और उन्होंने तुग़लकाबाद में अपनी फ़ौज के साथ डेरा डाला. अगले दिन उनकी और मुग़लों की सेना के बीच भिड़ंत हुई जिसमें मुग़लों की हार हुई और दिल्ली पर हेमू का कब्जा हो गया। फिर उन्होंने शाही छतरी लगाकर हिंदू राज की स्थापना की और नामी महाराजा विक्रमादित्य की पदवी गृहण करके अपने नाम से सिक्के गढ़वाए और दूरदराज के प्रांतों में गवर्नर नियुक्त किए।
 
पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच हुई। इस लड़ाई में हेमचन्द्र ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और वह जीत की ओर बढ़ रहे थे लेकिन लड़ाई में एक मौके ऐसा आया जब मुगलों की सेना ने हेमचंद्र ऊर्फ हेमू की आंख में एक तीर मारा और वह गिरकर बेहोश हो गया यह घटना युद्ध में जीत रहे हेमू की हार का कारण बन गई। अपने राजा को इस अवस्था में देखकर सेना में भगदड़ मच गई जिसका फायदा उठाकर मुगल सेना ने कत्लेआम करना शुरू कर दिया। इस दृश्य को देखकर हेमू की सेना भाग गई जिसके चलते अकबर या बैरमखां (अकबर का सेनापति) ने हेमचंद्र का सिर काट दिया। इसके बाद अकबर का दिल्ली और आगरा पर कब्जा हो गया।

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