चीन ने भारत के कितने भू-भाग पर कर रखा है कब्जा और क्या है LAC एवं मैकमोहन रेखा?

अनिरुद्ध जोशी
बुधवार, 17 जून 2020 (14:21 IST)
चीन के साथ 1962 का युद्ध, पाकिस्तान के साथ 1947, 1965 और 1971 का युद्ध और 1999 के कारगिल का युद्ध हमें गहरे दर्द दे गया है। भारत विभाजन से पहले और बाद में चीन और पाकिस्तान ने मिलकर भारत को बहुत दर्द दिया है और उन्होंने हमारे एक बहुत बड़े भूभाग कर कब्जा कर रखा है।
 
1. इन क्षे‍त्रों में है चीन का कब्जा : अरुणाचल, सिक्किम, लेह-लद्दाख (गिलगिट-बाल्टिस्तान सहित), कश्मीर और अक्साई चिन के एक बहुत बड़े भू-भाग पर चीन का कब्जा है। सरकने की नीति के तहत चीन घुसता ही जा रहा है और यह क्रम अभी भी जारी है।
 
2. 'हिंदी चीनी भाई भाई' : जवाहरलाल नेहरू के शासन में चीन ने 1962 में भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया था तब भारतीय नेतृत्व को समझ में नहीं आया कि अब क्या करें। उस वक्त 'हिंदी चीनी भाई भाई' का नारा देने वाले चीन के प्रधामंत्री चाऊ-एन-लाई ने नेहरू को धोखे में रखा और चुपके से चीनी सेना को भारतीय क्षेत्र में घुसने का आदेश दे दिया।
 
3. 1962 भारत-चीन युद्ध का कारण : सन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद वर्ष 1959 में तिब्बत में हुए तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन भड़क गया और भारत-चीन सीमा पर हिंसक घटनाएं होना शुरू हो गई।
 
युद्ध का दूसरा कारण हिमालय क्षेत्र का सीमा विवाद था। भारत इस भ्रम में रहा कि सीमा का निर्धारण ब्रिटिश सरकार के समय सुलझा लिया गया है लेकिन चीन इससे इनकार करता रहा। भारत ने चीन की बातों को कभी गंभीरता से नहीं लिया। इसके चलते चीन ने भारतीय सीमा के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के लद्दाख वाले हिस्से के अक्साई-चिन और अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों पर अपना दावा जताया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और माओत्से तुंग के बीच कई वार्ताओं के बाद भी मसला नहीं सुलझा, जिसका परिणाम युद्ध के रूप में सामने आया।
 
4. भारत-चीन युद्ध : भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 को लड़ा गया था। दोनों देशों के बीच ये युद्ध करीब एक महीने तक चला, जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कड़ी आलोचना हुई। दूसरी ओर नेहरू चीन के साथ नरमी से पेश आए जिसके चलते भारत को अपना बहुत बड़ा भू-भाग खोना पड़ा।
 
चीनी सेना ने 20 अक्टूबर, 1962 को लद्दाख और पूर्वोत्तर में अरुणाचल के क्षेत्रों की पारम्परिक सीमा का उल्लंघन करते हुए 'मैकमोहन रेखा' के पार एक साथ हमले किए और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में त्वांग पर कब्जा कर लिया। कब्जे के बाद चीन की सेना ने 20 नवम्बर, 1962 को एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
 
एक गैर आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत-चीन युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक मारे गए, जबकि 1047 घायल हुए। इसके अलावा 1700 सैनिक आज तक लापता हैं और 3968 सैनिकों को चीन ने गिरफ्तार कर लिया था। वहीं दूसरी ओर चीन के कुल 722 सैनिक मारे गए और 1697 घायल हुए। इस युद्ध में भारत की ओर से मात्र बारह हजार सैनिक चीन के 80 हजार सैनिकों से मुकाबला कर रहे थे।
 
5. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल : भारत के यह चाहने के बावजूद कि एक निश्चित सीमांकन हो, चीन को ऐसी सीमा मंजूर नहीं थी। चीन का मन बदल गया और उसने युद्धविराम के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा को सीमा के रूप में घोषित कर दिया।
 
चीन ने लद्दाख और पूर्वोत्तर में अरुणाचल के क्षेत्रों की पारम्परिक सीमा का उल्लंघन किया। ये सीमाएं भी चीन के लिए पूरी तरह मान्य नहीं थीं। कोलंबो शक्तियों ने 1962 के युद्ध के बाद हस्तक्षेप किया और भारत तथा चीन दोनों को वहां से 26.5 मीटर पीछे जाने के लिए कहा, जहां उनकी सेनाएं खड़ी थीं। भारत इसी के अनुसार पीछे हट गया, लेकिन चीन नहीं हटा। उसकी सेनाओं ने अभी तक उन सीमाओं पर कब्जा कर रखा है।
 
त्वांग से 60 किमी की दूरी पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) है। यह अरुणाचल का हिस्सा है, लेकिन चीन लगातार अरुणाचल में घुसने का प्रयास करता रहा। अरुणाचल प्रदेश को अपने देश में सम्मिलित करने की कई बार कोशिश की है लेकिन राज्य की जनता के विरोध के चलते उसे अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिल पाई है।
 
अरुणाचल प्रदेश को उसने अपने कब्जे वाले तिब्बत का हिस्सा माना है। तिब्बत के साथ अंग्रेजों के शासनकाल में 1913-14 में सर हेनरी मैकमोहन के नेतृत्व में भारत का समझौता हुआ। 4057 मिटर की ऊंचाई वाली हिमालय की चोटियों पर चीन का नियंत्रण है। नीचे भारत की सैनाएं हैं। 1963 में पाकिस्तान ने चीन को कश्मीर का 4000 किलोमीटर का हिस्सा सौंप दिया था, जिस पर चीन ने कराकोरम हाइवे बनाया था।
 
चीन जम्मू-कश्मीर के लद्दाख से अक्साई चिन तक तथा पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश को वह अपना हिस्सा मानता है। लगभग स्वीटजरलैंड के बराबर वाले भाग अक्साई चिन के कुछ हिस्सों पर चीन ने अधिकार कर रखा है जबकि यह भारत का हिस्सा है। उसने 1957 में अक्साई चिन में निर्माण कार्य भी किया जिसका पता भारत को करीब एक साल बाद चीन का नक्शा देखकर चला। चीन ने काराकोरम पास के जरिए तिब्बत और जिनसियांग प्रांत को जोड़ने वाले एकमात्र मार्ग पर भी कब्जा कर लिया है।
 
अक्साई चिन नामक क्षेत्र जो पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भाग था, पाक अधिकृत कश्मीर में नहीं आता है। ये 1962 से चीनी नियंत्रण में है। जम्मू एवं कश्मीर को अक्साई चिन क्षेत्र से अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा कहलाती है- LAC...।
 
6. मैकमोहन रेखा : 1914 में शिमला में उस समय के ब्रिटिश भारत सम्राजय, तिब्बत और चीन के बीच तिब्बत की स्थिति को निर्धारित करने के लिए विवादित समझौता हुआ था। बाद में चीन इस बातचीत से हट गया था और इस समझौते की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया था। इसी समझौते के तहत ब्रिटिश भारत और तिब्बत की सीमा को निर्धारित करने के लिये इस समझौते को कराने वाले ब्रिटिश सचिव सर मैकमोहन के नाम पर 890 किलोमीटर लम्बी मैकमोहन रेखा बनाई गई। भारत जहां इस रेखा को तिब्बत और चीन से अधिकारिक सीमा मानता है वहीं चीन इसे अवैध करार देता रहा है।
 
सर मैकमोहन ने भारत और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची। इसे मैकमोहन लाइन नाम दिया गया था। तिब्बत से 1959 में दलाई लामा के निर्वासन के बाद चीन तथा भारत के बीच तनाव बढ़ा और जिस चीन को 1951 में सबसे पहले भारत ने विश्व मंच पर राजनयिक मान्यता दी थी उसी ने 1962 में भारत के पंचशील जैसे शांति सिद्धांत को ठुकराते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत का कहना है कि विवादित क्षेत्र का क्षेत्रफल 4,000 किलोमीटर है जबकि चीन इसे 2,000 किलोमीटर बताता है। यह विवाद अरुणाचल प्रदेश में है जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है।
 
7. चीन को दिया कश्मीर : 1963 में पाकिस्तान ने चीन को कश्मीर का 4000 किलोमीटर का हिस्सा सौंप दिया था, जिस पर चीन ने कराकोरम हाइवे बनाया था। चीन की इस हाइवे के साथ ही रेलवे लाइन बनाने की योजना है।
 
पूर्व कश्मीर राज्य के कुछ भाग, ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिए जाने का भारत ने विरोध किया था लेकिन विरोध करने से क्या होता है? शेष क्षेत्र को दो भागों में विलय किया गया था उत्तरी क्षेत्र (गिलगिट-बाल्टिस्तान) एवं आजाद कश्मीर।
 
मार्च 1963 में पाकिस्तान ने पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान वाले हिस्से में से एक इलाका चाइना को गिफ्ट कर दिया। ये करीब 1,900 वर्ग मील से कुछ ज्यादा था।
 
-चाइना को गिफ्ट देने के बाद पाकिस्तान ने 2009 में बचे हुए पीओके के 2 टुकड़े कर दिए। एक का नाम गिलगित-बाल्टिस्तान रहा, तो दूसरे का नाम 'आजाद कश्मीर'। यह 'आजाद कश्मीर' दरअसल जम्मू का ही एक हिस्सा है। गिफ्टेड चाइना, अक्साई चिन, गिलगित-बाल्टिस्तान और भारत प्रशासित कश्मीर के बीच एक हिस्सा है, जिसे सियाचिन ग्लेशियर कहते हैं, उस पर भारत का ही अधिकार है। वह भी कश्मीर का ही एक हिस्सा है।
 
-मतलब यह कि पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान 2 क्षेत्र हो गए। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के पास अनुमानित 5,134 वर्ग मील यानी करीब 13 हजार 296 वर्ग किलोमीटर इलाका है। मुजफ्फराबाद इसकी राजधानी है और इसमें 10 जिले हैं, वहीं गिलगित बाल्टिस्तान में 28 हजार 174 वर्ग मील यानी करीब 72 हजार 970 वर्ग किलोमीटर इलाका है। गिलगित-बाल्टिस्तान में भी 10 जिले हैं। इसकी राजधानी गिलगित है। इन दोनों इलाकों की कुल आबादी 60 लाख के करीब बताई जाती है। मतलब यह कि गिलगित-बाल्टिस्तान पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर का 85 प्रतिशत इलाका है।

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